उद्योग
हि.प्र. में औद्योगीकरण-
आजादी से पूर्व की स्थिति-औद्योगिक दृष्टि से हिमाचल, भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा पिछड़ा हुआ है। प्रदेश में परम्परागत कुटीर उद्योग (शॉल निर्माण आदि) हैं परन्तु बड़े उद्योगों का प्रायः अभाव सा है। आजादी से पहले सोलन बूरी और नाहन लौह-ढलाई के मध्यम स्तर के कुछ कारखाने यहाँ अवश्य थे परन्तु समग्रतः औद्योगिक विकास नहीं हुआ। इस पिछड़ेपन का कारण यातायात एवं आवागमन के साधनों की कमी, पूँजी को अनुपलब्धता और राजनीतिक इच्छाशक्ति का न होना भी रहा।
1948 से 1966 के बीच की स्थिति-1948 से 1966 तक, आजादी के पश्चात् विभिन्न सरकारों ने उद्योगों के विकास का निरन्तर प्रयास किया। पौंटा साहब में एक औद्योगिक केन्द्र स्थापित किया गया। नाहन के ढलाई कारखाने विकास किया गया। सोलन और पौंटा साहब में लगे लघु औद्योगिक इकाईयों में थर्मामीटर, सूक्ष्मदर्शी यन्त्र, प्रयोगशालाओं में प्रयुक्त होने वाला सामान, हल्की यान्त्रिकी की वस्तुएँ. कपड़े, जूते, खनिजों पर आधारित पदार्थ जैसे बाइराइट पाउडर तथा चूने के पत्थर पर आधारित बुझा हुआ चूना प्रमुख है। दो अन्य औद्योगिक केन्द्र भी स्थापित किए गए। एक, पिजोर के निकट बरोटीवाला में तथा दूसरा चण्डीगढ़ के निकट परवाणु में। एक नवम्बर, 1966 तक प्रदेश में लघु उद्योगों की संख्या 750 हो गई। सरकार ने ऐसे 60 प्रशिक्षण एवं उत्पादन केन्द्रों की स्थापना की जहाँ पर परम्परागत कारीगरों जैसे शॉल बनाने, जूते बनाने और गलीचे बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था और इन वस्तुओं का उत्पादन भी होता था।
1966 से अब तक उद्योगों का विकास-1966 में पंजाब पुनर्गठन के पश्चात् अनेक नए क्षेत्र हिमाचल में आए। 1967 से प्रदेश सरकार ने औद्योगिक विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जिसके अच्छे परिणाम निकले। 1976 तक लघु-उद्योगों की संख्या बढ़कर 1663 हो गई। 1990-91 तक हिमाचल में 1309 पंजीकृत उद्योग थे जिनमें 3,37,391 लोग कार्यरत थे। कुटीर तथा ग्रामीण उद्योग जो अधिकतर कृषि आधारित हैं जैसे फल विधायन, मत्स्य पालन, रेशमी कीड़ों का पालन, कुकुट पालन, मौनपालन आदि में 2005 तक 299 मध्यम आकार की तथा 31384 लघु मध्यम आकार की इकाइयाँ कार्यरत हैं जिनमें 1.70 लाख लोगों को रोजगार मिला है। प्रदेश में 31.12.2017 तक 45,597 औद्योगिक इकाइयाँ कार्यरत हैं इसमें 138 बडे और 484 मध्यम स्तर के उद्योग शामिल हैं।
• हि.प्र. में 31.3.2018 तक उद्योगों की कुल संख्या 46201 थी जिसमें 26249 करोड़ रुपये का निवेश किया गया था। इन औद्योगिक इकाइयों में 3,73,098 लोग कार्यरत थे। लघु उद्योगों की कुल संख्या 45,576 थी जिसमें 12744 करोड़ रुपये का निवेश था। इसमें 295874 लोग काम कर रहे थे। मध्यम स्तर के 487 उद्योगों में 6651 करोड़ के निवेश के साथ 48142 लोग कार्यरत थे। बड़े उद्योगों की संख्या 31.3.2018 तक 138 थी जिसमें 6853 करोड़ रुपये का निवेश था। बड़े उद्योगों में 29082 लोग कार्यरत थे। हि.प्र. में सर्वाधिक लघु उद्योग काँगड़ा जिले में तथा सर्वाधिक बड़े उद्योग व फैक्टरियाँ सोलन जिले में स्थित हैं। राज्य में 2017 तक 43 औद्योगिक बस्तियाँ (Industrial Areas) और 15 औद्योगिक एस्टेट्स की स्थापना की गई थी। हि.प्र. में 2008 से प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। हि.प्र. में सबसे कम उद्योगों वाला जिला लाहौल-स्पीति है। हि.प्र. का सबसे बड़ा औद्योगिक शहर बद्दी (सोलन) है।
हि.प्र. की औद्योगिक नीतियाँ
1991 की औद्योगिक नीति- हिमाचल सरकार ने 1991 को अपनी नई औद्योगिक नीति के अंतर्गत उद्योगों के विकास के लिए अनेक प्रावधान सरकार का प्रमुख उद्देश्य औद्योगिक विकास के साथ-साथ बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलाना भी है। इसलिए सरकार ने सभी प्रकार के उद्योगों को प्रोत्साहन देने हेतु नई नीति लागू की है। इसमें बड़े उद्यागों से लेकर लघु तथा कुटीर उद्योगों को ध्यान में रखा गया है। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार ने प्राथमिकता के आधार पर सभी प्रकार के उद्योगों को पाँच भागों में विभाजित किया। पहले तथा दूसरे वर्ग में उन उद्योगों को रखा गया है, जो व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। ऐसे उद्योग स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर व्यापारिक वस्तुएँ तैयार करेंगी इन उद्योगों को स्थापना में सरकार उच्चोगपतियों को भूमि के अतिरिक्त पानी, बिजली, कच्चे माल आदि की सुविधाएं उपलब्ध करवाएगी। ऐसे उद्योगों की स्थापना से बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलने की सम्भावना बड़ जायेगी। तीसरे वर्ग में उन उद्योगों को प्राथमिकता दी जायेगी जिनमें स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुएँ निर्मित की जायेंगी। चौथे वर्ग में उन उद्योगों को शामिल किया गया है, जिनमें निर्माण में प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं के लिए कच्चा माल सरकार कोटे के आधार पर उपलब्ध करवाएगी। इसके लिए सरकार के पास कन्चे माल का उपलब्ध होना आवश्यक है। पांचवें वर्ग में उन उद्योगों को रखा है जिनके निर्माण में बाहर से आने वाले साधनों को प्रयोग होगा तथा उनकी मांग भी स्थानीय क्षेत्रों की अपेक्षा बाहर अधिक होगी।
उद्योगों को सुविधाएँ (Facilitics to Industries) - भारत सरकार ने हिमाचल को औद्योगिक विकास के आधार पर पिछड़ा हुआ घोषित किया
है तथा इसी आधार को सामुख रसकर केन्द्रीय सरकार राज्य सरकार को सुविधाएँ प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त हिमाचल सरकार ने भी उद्योग
को स्थापना तथा विकास हेतु उद्योगों को अओक सुविधाएँ प्रदान की हैं जैसे
(1) उद्योगपत्तियों को सस्ती दर पर भूमि उपलब्ध करवाई जाती है।
(2) उद्यमियों को उद्योगों के विकास हेतु सस्ती बिजली दी जाती है।
(3) उन्हें बिक्री कर, चुंगी कर में छूट दी जा रही है ताकि उद्योगपति प्रतिस्पर्धा में पिछड़ न सकें।
(4) प्राथमिकता के आधार पर बिजली के कनैक्शन दिये जाते हैं। स्थानीय लोगों द्वारा बनाई गई वस्तुओं को सरकारी खरौद में प्राथमिकता दी जाती हैं।
(6) उद्यमियों की कठिनाईयों के निवारण हेतु एक ही छत के नीचे सुविधा प्रणाली स्थापित की गई है।
(7) सरकार ने उद्यमियों की सुविधा हेतु एक व्यक्ति द्वारा स्वीकृति (Single man clearance) प्रणाली शुरू की है, ताकि उन्हें अलग-अलग एजेंसियां से प्रमाण पत्र लेने की दुविधा न हो।
हि.प्र. की 2004 की औद्योगिक नीति -2004 को राज्य सरकार की औद्योगिक नीति के अंतर्गत् उद्योगों के विकास तथा नये उद्योगों को शीघ्र
स्वीकृति देने का लक्ष्य निश्चित किया गया है। इसके लिए अन्य का लक्ष्यों को सरकार ने ध्यान में रखा है जैसे, 2010 तक 6100 मैगावाट अतिरिक्त बिजली उपलब्ध करवाना. 100 प्रतिशत उत्पादन को निर्यात करने वाले यूनिटों को प्राथमिकता के आधार पर बिजली उपलब्ध करवाना, औद्योगिक विकास हेतु राज्य सरकार को केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राप्त सहायता द्वारा उद्योगों को विशेष पैकेज प्रदान करना, प्रमुख औद्योगिक केन्द्रों जैसे-बद्दी, परवाणु, पांवटा साहिब, संसारपुर आदि में मुख्यमंत्री को अध्यक्षता में सिंगल विंडो सिस्टम (Single window system) को लागू करना, वार्षिक जाँच तथा रजिस्टरों के रख-रखाव हेतु श्रम विभाग में सुधार लाना, औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि के स्थानान्तरण को सरल बनाना आदि शामिल हैं। केन्द्रीय सरकार ने हिमाचल प्रदेश के प्रोत्साहन हेतु 2003 में विशेष पैकेज दिया है ताकि औद्योगिक विकास की गति तेज हो सके। इसके अंतर्गत चालू औद्योगिक इकाइयों, निर्वातक इकाइयों, फूट प्रोसैसिंग इकाइयों को 10 वर्षों के लिए शत-प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी से छूट दी गई है। इसके अतिरिक्त इन्हें 5 वर्षों के लिए शत-प्रतिशत आय कर से भी छूट दी गई है। पाँच वर्षों के बाद यह छूट कम्पनियों को 30% तथा अन्य को 20 प्रतिशत की जायेगी। यह छूट तब से मिलने लगेगी, जब ये इकाइयाँ व्यापारिक उत्पादन शुरू करेंगी। इस प्रकार राज्य सरकार तथा केन्द्रीय सरकार दोनों मिलकर हिमाचल के औद्योगिक विकास के लिए तत्पर हैं। प्रत्येक नई इकाई को अपने पूँजी निवेश का 15% अनुदान दिया जाता था जिसकी अधिकतम सीमा 30 लाख रुपए यो। पहले से लगे उद्योग यदि बई परिवर्तन कर काम बढ़ाते है तो उन्हें भी ये सुविधाएँ मिलनी थीं। 70% हिमाचलियों को नौकरियाँ देने पर ही यह सुविधाएं उद्योगों को
हि.प्र. की 2013 को औद्योगिक नीति-
• विजन-हि.प्र. को मॉडल औद्योगिक पहाड़ी राज्य बनाना जो पर्यावरण टिकाऊ समावेशी विकास, आमदनी, रोजगार, कौशल विकास के
• मिशन-हि.प्र. में Micro, Small, Medium एवं Large Industries को बढ़ावा देने एवं विकसित करने के लिए इको-फ्रेन्डली तथा
हिस्से में बढ़ोतरी हो। स्थानीय संसाधन आधारित उद्योगों पर जोर देकर आदर्श हिल राज्य बनाना जिससे रोजगार में वृद्धि हो और राज्य की GDP में उद्योगों के
प्रदान की जाती हैं।
उद्देश्य-
1.12वीं पंचवर्षीय योजना में राज्य GDP में 9% वृद्धि के साथ 15% वार्षिक औद्योगिक वृद्धि दर हासिल करने का लक्ष्या वर्ष 2022 तक राज्य सकल घरेलू उत्पाद (SGDP) में विनिर्मित क्षेत्र का 25% योगदान का लक्ष्य।
2 पूरे राज्य में एक समान औद्योगिक विकास सुनिश्चित करने के लिए हि.प्र. को सबसे पसंदीदा निवेश गंतव्य के रूप में बढ़ावा देना।
3 स्टेट ऑफ इंडस्ट्रीयल एवं बुनियादी ढांचे के निर्माण पर बल देना।
4. व्यापार करने और सेवाओं की समयबद्ध डिलीवरी को आसान बनाने के लिए अनुकूल निवेश वातावरण बनाना।
5. कौशल एवं उद्यमशीलता में वृद्धि कर वर्ष 2022 तक लगभग 3 लाख लोगों के लिए अतिरिक्त रोजगार के अवसर बनाना।
6. पारिस्थितिक अनुकूल और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करना।
प्रमुख उद्योग-
बिरोजा फैक्टरियाँ -बिरोजा की पहली फैक्टरी की स्थापना 1948 में को गई थी। इसको प्रमुख फैक्टरियाँ रघुनाथपुरा (बिलासपुर) व नाहन (सिरमौर)
में स्थापित की गई है। इन फैक्टरियों में 2012-13 में 4809 टन बिरोजा तैयार किया गया था।
नाहन फाऊंडी (सिरमौर)- यह हिमाचली क्षेत्र में अपनी प्रकार का पहला उद्योग था. जिसे 1867 ई. में राजा शमशेर प्रकाश ने स्थापित किया था।.यहाँ पम्पिंग सैट, मोहरें व लोहे का अन्य सामान बनाया जाता था, परन्तु अब इसे बन्द करने की घोषणा कर दी गई है।
अन्य उद्योग- मोहन मीकिंग चूरी शराब बनाने का कारखाना सोलन में है। हि.प्र. का सबसे बड़ा मुर्गीपालन केन्द्र पिजेहरा (सोलन) में है। मेहतपुर (ऊना) में देशी शराब सयंत्र है। मेहतपुर ऊना का सबसे बड़ा औद्योगिक शहर है। टी.वी. निर्माण कार्य सोलन में किया जाता है। परवाणू और पीटा.साहिब में थर्मामीटर और माइक्रोस्कोप बनाए जाते हैं। परवाणु में फल प्रसंस्करण उद्योग है।
फर्श पर बिछाने वाले कालीन को खरच पुकारा जाता है। किन्नौर में ऊन से कालीन, शाल, मफलर, पायजामे आदि बनाने का काम किया जाता हैतथा इन पर अलग-अलग डिजाइन बनाये जाते हैं। लाहौल-स्पीति में भी ऊन से वस्त्र बनाने का काम किया जाता है। हस्तशिल्प तथा हथकरघा के विकास के लिए हिमाचल सरकार ने हस्तशिल्प तथा हथकरघा निगम की स्थापना की है जो दस्तकारों की कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास करना है तथा उन्हें सुविधाएँ प्रदान करने का काम करता है। इसके अतिरिक्त कुटीर उद्योगों के विकास के लिए एक बोर्ड का गठन किया गया है।
हि.प्र. में आद्योगिक विकास की संभावना- हिमाचल प्रदेश का स्वच्छ वातावरण, विशाल वन संपदा, पर्याप्त खनिज संपदा और कृषि-विकास, भविष्य में उद्योगों के लिए सहायक सिद्ध हो सकते हैं। वन और कृषि पर आधारित उद्योगों के साथ-साथ इलेक्ट्रोनिक सामान, प्रयोगशाला यन्त्र, घड़ियाँ तथा दूरबीन
आदि बनाने के कारखाने लग सकते हैं। अभी तक इस दिशा में बहुत कम प्रगति हुई है। अखबारी कागज का उत्पादन भी एक बड़े उद्योग का रूप ले सकता है। इसमें प्रयुक्त वृक्षों की जगह नए वृक्ष लगाने का काम और भारी धन राशि इस काम को कठिन बना रही है। प्रदेश में उपलब्ध जड़ी-बूटियाँ की विविधता और विशाल भडार, अनेक आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में सहायक हो सकता है।
हिमाचल प्रदेश सरकार को प्रदेश के लोगों को उद्यमी बनाने के लिए विशेष कदम उठाने होंगे। अब तक दी जा रही सुविधाएँ अपर्याप्त हैं उन्हें अधिक आकर्षक बनाना होगा तथा पड़ोसी राज्यों के मुकाबले में जो अधिक कठिनाइयाँ हैं उनका निवारण करना होगा। हिमाचल प्रदेश में औद्योगिक इकाइयाँ लगाने के लिए मिलने वाली सहायता को लेकर भी लोगों की ओर से अनेक शिकायतें मिली हैं। प्रदेश के उद्यमियों से मिलकर इन समस्याओं का समाधान किया हिमाचल में विद्युत ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है और पड़ोसी राज्यों की अपेक्षा सस्ती है। यह उद्यमियों के लिए प्रदेश में उद्योग लगाने की उत्प्रेरक बन सकती है। प्रदेश के उद्यागों को कच्चा माल कम कीमत पर दिया जाना चाहिए और प्राथमिकता के आधार पर आंबटित किया जाए। पड़ोसी पजाब के किसान भी अपने उत्पाद पर अनुदान प्राप्त करते हैं। उनमें से अनेक ने हिमाचल में उद्योग स्थापित किए हैं। नालागढ़ में पंजाब के अनेक उद्योगपतियों ने अपने उद्योग स्थापित किए हैं। 2003 प्रदेश को अन्य पहाड़ी राज्यों के साथ औद्योगिक पैकेज मिला था जिससे बद्दी में सैंकड़ों इकाइयाँ लगीं जिनमें Katin विविधतापूर्ण औद्योगिक आधार-हिमाचल प्रदेश में औद्योगिक आधार को विविधतायुक्त बनाने में 'खनिज एवं औद्योगिक विकास निगम', 'हिमाचलप्रदेश फल विधायन एवं विपणन निगम' तथा हिमाचल प्रदेश के 'हस्तशिल्प एवं हथकरघा निगम' ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिमाचल प्रदेश सरकार केन्द्र द्वारा दिए जाने वाले अनुदानों और सुविधाओं के अलावा भी उद्यमियों को प्रोत्साहनार्थ सुविधाएँ दे रही है। प्रदेश में अनेक नए उद्योग स्थापित हुए हैं। दानेदार खाद, मिल बोर्ड और घास बोर्ड, कागज और कागज बनाने का गूदा, फिल्टर एलिमेंट और रेलवे फिल्टर, रसायनिक पदार्थ, टूट-फूट से बनी फौलाद, ऊनी वस्त्र, टी.वी. सैट, घड़ियाँ, शीशे की बोतलें, चीनी के बर्तन, ब्रांडी, बीयर और वाईन, कृषि के औजार, मोटरों के पुजों के सहायक कारखाने तथा फौलाद और एल्युमिनियम की अनेक वस्तुओं के कारखाने लगे हैं। प्रदेश में खनिज पदार्थों का विशाल भण्डार है। विशेषकर चूने के पत्थरों का। प्रदेश में सीमेंट के अनेक कारखाने लगे हैं। लघु, मध्यम और विशाल उद्योग परियोजनाओं में ट्रैक्टर, दानेदार खाद, बिरोजा और तारपीन, वनस्पति घी, फौलाद के गोलाकार पिण्ड, बिजली के मीटर आदि के कारखाने लगे हैं। सहायक उद्योगों को स्थापना के लिए भी यहाँ पर्याप्त अवसर हैं।
औद्योगिक क्षेत्र/सम्पदा का विकास -वर्ष 2017-18 में औद्योगिक क्षेत्र में विभिन्न आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए 23.50 करोड़ र का बजट
प्रावधान किया गया है जिसमें से 18.01.2018 तक 9.52 करोड़ र औद्योगिक क्षेत्र/औद्योगिक सम्पदा के विभिन्न विकासात्मक निर्माण कार्यों पर व्यय किया
जा चुका है। शेष बचे 13.98 करोड़ १ को भी 31.03.2018 से पहले व्यय कर लिया जाएगा। एम.आई.आई.यू.एस. के अधीन स्टेट आफ आर्ट इण्डस्ट्रियल एरिया-वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय भारत सरकार ने (संशोधित औद्योगिक अधोसंरचना विकास स्कीम) के अंतर्गत् 2 स्टेट आफ आर्ट इण्डस्ट्रियल एरिया पण्डोगा जिला ऊना व कन्दरोरी जिला काँगड़ा में स्थापित करने की अन्तिम स्वीकृति दो है। इन परियोजना अनुदान का व्यय अधोसंरचना विकास के लिए इन औद्योगिक क्षेत्रों के भौतिक अधोसंरचना के अंतर्गत् (सड़कें, तूफान, पानी निकासी नली. स्ट्रीट लाईट व 132 KV पावर सब स्टेशन की स्थापना इत्यादि), तकनीकी अधोसंरचना के अंतर्गत् (सामूहिक सुविधा केन्द्र इत्यादि), सामाजिक
अधोसंरचना के अंतर्गत् (कामगार महिला आवास, बस ठहराव, वर्षा शालिका व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र) तथा विविध/प्रशासनिक अनुदान के लिए प्रयोग किया जाएगा। वित्तीय वर्ष 2017-18 में 49.85 करोड़ १ का प्रावधान। स्टेट आफ आर्ट औद्योगिक क्षेत्रों व एकीकृत अधोसंरचना सुधार योजना के लिए रखा गया है। इस बजट में अब तक 44.44 करोड़ र खर्च किए जा चुके हैं।
खनिज
भू-तकनीकी अन्वेषण विभाग द्वारा 2015-16 में प्रदेश में बनाए जा रहे पुलो, सड़कों, बड़े-बड़े भवनो, भू स्खलन क्षेत्रों इत्यादि की नींव सम्बन्ध भौमिकीय अध्ययन किये गए और 23 मू तकनीकी अन्वेषण रिपोर्ट्स सम्बन्धित एजेंसियों को आगामी कार्यवाही के लिए भेजी गई। वित्तीय वर्ष 2016-17 में 20 भू-तकनोको अन्वेषण रिपोट्स सम्बन्धित एजेंसियों को भेजी गई थी। वर्ष 2017-18 में 31.12.2017 तक 7 भू-तकनीकी अन्वेषण रिपोर्ट्स सम्बन्धित एजेंसियों को भेजी गई।
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