हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था
भूमि सुधार एवं ग्रामीण विकास
हि.प्र. बड़ी भू-सम्पदा (भू-जोतों) समाप्ति अधिनियम- 1953-1953 में हि.प्र. सरकार ने बड़ी जोतों को समाप्त करने वाला 1953 का भू-सुधार कानून पारित कर दिया। इस कानून को 1954 में लागू कर दिया गया। इसे 1955 में राष्ट्रपति से स्वीकृति मिली। देश भर में यह अपनी तरह का पाहस्सा कानून था जिसमें 'भूमि किसान की' का सिद्धान्त लागू किया गया था। इस कानून के अनुसार जिन जमीनों पर मुजारों का अधिकार था उन्हें में 24 गुणा मुआवजा देकर अपने नाम करवा सकते थे, खरीद सकते थे। जिन मुजारों का जमीन पर अधिकार नहीं था वे उन जमीनों का 48 गुणा मुआवजा देकर उसे खरीद सकते थे। ऐसे मुआवजा अधिकारियों को नियुक्त किया गया जो कि मुजारों के भू-स्वामित्व का फैसला कर सकें और मुआवजा चुकाने के बाद किसानों के नाम भूमि कर सकें। इस कानून के अनुसार जिस भूमि पर जमोदार स्वयं खेती करते थे उसे छोड़कर जिस भूमि पर 125 रुपये से अधिक लगान लगता था उसे सरकारी नियन्त्रण में लेने का प्रावधान किया गया, जिससे इस जमीन को भूमिहीनों में बाँटा जा सके। इस कानून के पारित होने से पूर्व सारी जमीनों पर बड़े भू-स्वामियों का अधिकार था। किसानों की दशा दयनीय थी और भू-स्वामी उन्हें कभी भी भूमि में बेदखल कर सकते थे। अत: इस कानून के द्वारा पहली बार किसानों का अपनी जमीनों पर हक है, यह तथ्य स्वीकार किया गया। बाई किसानों ने कानूनी तथा राजनीतिक मंच से इन सुधारों का घोर विरोध किया। राजनीतिक दृष्टि से उन्होंने बड़े-बड़े जुलूस निकाले और कानूनी दृष्टि से मुकद्दमेबाजी की। तकनीकी आधार पर वे कानूनी लड़ाई जीतने के निकट पहुंच गए। उस तकनीकी कमी को शीघ्र ही दूर कर दिया गया और किसानों का भूमि पर अधिकार बना रहा। इस प्रकार कानूनी प्रक्रिया से भी किसानों को भू-स्वामी मान लिया गया।
.हि.प्र. भूमि परिसीमन कानून 1972-
• 1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत् पंजाब के पहाड़ी भू-भाग को हिमाचल में मिला दिया गया। इस क्षेत्र में भी मुजारों की हालत अच्छी नहीं थी। हिमाचल प्रदेश सरकार ने 1971 में कानून बनाकर हिमाचल को हस्तान्तरित हुए क्षेत्रों में भी वैसा ही कानून बनाकर मुजारों के हितों की रक्षा की।
• 1972 में भू-सुधारों की दिशा में दो बड़े कदम उठाए गए। एक 'हिमाचल प्रदेश भूमि परिसीमन कानून 1972' और दूसरा 'हिमाचल प्रदेश भू-सुधार अधिनियम 1972'। इस कानून की योजना के अनुसार बड़े अमीर जमींदारों से इस प्रकार प्राप्त होने वाली भूमि को निर्धन किसानों में बाँटना था। इसके फलस्वरूप सातवें दशक के मध्य में भू-वितरण का एक बड़ा कार्यक्रम चलाया गया। 1971 तक प्रदेश में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार यह स्पष्ट हुआ कि लगभग 90,000
कृषि -मजदूरों को इस योजना के अंतर्गत बसाने की आवश्यकता है। बड़े जमींदारों से प्राप्त भूमि पर्याप्त नहीं थी इसलिए सरकार को अन्य प्राप्त भूमियों पर निर्भर रहना पड़ा। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु एक अन्य कानून 'हिमाचलप्रदेश ग्रामीण सामलात भूमि अधिकार एवं उपयोग अधिनियम 1974' पारित किया गया। इससे सरकार को गाँव की सामलात भूमि, भूमिहीन में बाँटने का अधिकार मिल गया। इस भूमियों के साथ-साथ सरकार के अधिकार में पड़ी परती भूमियों के द्वारा 90,000 कृषि-मजदून त्या अन्य भूमिहीनों की जिनके पास एक एकड़ से कम भूमि श्री, उनको आवश्यकताओं को पूरा किया गया। अब बहुत कम लोग बन के, जिना जमीन नहीं मिली थी। वन संरक्षण संबंधी कानूनों में डौल देकर, बर्च हुए भूमिहीनों को भी भूमि देने का प्रयास हुआ। भूमि सुधारों को लागू करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि पांचवें दशक के कानूनों से उत्पन्न स्थिति पुनः पैदा न हो और जमींदार तकनीकी रूप से भूमिहीन न हो जाएं। हिमाचल प्रदेश की बड़ी भूमि जोतों को समाप्त करने वाले अधिनियम 1953 को हराया नहीं गया। इस कानून के अनुसार जमींदार को यह अधिकार दिया गया कि सिंचित 1.5 एकड़ भूमि तथा असिंचित 3 एकड़ भूमि पर बह पुनः अधिकार प्राप्त कर सकता था। इसमें उसके अपने अधिकार में रहने वाली भूमि को भी गिना गया था। इस प्रकार वर्तमान कानून में किसान के साथ जमींदारों का भी ध्यान रखा गया। प्रदेश में कुल 5 लाख भूमिहीन मुजार चिन्हित किए गए थे जिनमें से 45 लाख को उपलक भूमि आबंटित कर दी गई। शेष मुजारे ऐसे थे जिन्हें भूमि का स्वामित्व नहीं दिया जा सकता था क्योंकि वे आरक्षित जमींदारों अर्थात कार्यरत सैनिकों, विधवाओं और नाबालिग बच्चों की भूमियों पर मुजार थे। उन किसानों और निर्धन लोगों को जिन पर धनवान भू-स्वामियों ने मुकदमें किए, उन्हें नि:शुल्क कानूनी सहायता दी गई ताकि उनकी भूमि लिन नहीं।
ग्रामीण विकास -ग्रामीण विकास विभाग का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन, रोजगार सूजन तथा क्षेत्र विकास के कार्यक्रमों को कार्याचा करना है।
(1) राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM)- स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार के स्थान पर राष्ट्रीय आजीविका मिशन को प्रदेश में 01.04.2013
से आरम्भ किया गया जिसका कार्यन्वयन चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा। प्रथम चरण में 12 विकास खण्डों नामतः कण्डाघाट, बसंतपुर, मण्डी (सवर), नूरपुर, हरोली, घुमारवी, तीसा, भोरंज, निचार, कुल्लू, लाहौल स्थित केलांग तथा पीटा साहिब को कार्यक्रम के कार्यान्वयन हेतु लिया गया है। आजोविका मिशन (NRLM) के अंतर्गत् स्वरोजगार गतिविधियों जैसे कि ऋण वितरण, महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन, जन्ता विकास एवं संस्थागत निर्माण आदि का कार्यान्वयन प्रस्तावित है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2017-18 के लिए 11.04 करोड़ की वार्षिक कार्य योजना को अनुमोदित किया है जिसे उक्त गतिविधियों के कार्यान्वयन पर व्यय किया जाएगा। चालू वित्त वर्ष में कुल 3,280 महिला स्वयं सहायता समूहा को बैंकों से जोड़ना प्रस्तावित है जिन्हें 40.00 करोड़ १ ऋण के रूप में प्रदान किए जाएंगे। इस कार्यक्रम के अंतर्गत् चार जिलों शिमला, मण्डी,काँगड़ा व ऊना में समस्त महिला स्वयं सहायता समूहों को ऋण पर ब्याज दर 4 प्रतिशत वार्षिक होगी तथा शेष जलों के महिला स्वयं सहावट समूहों को प्रदान किए जाने वाले ऋण पर ब्याज दर 7 प्रतिशत वार्षिक निर्धारित है। किन्तु उक्त व्याज दरें मात्र उन महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए ही लागू होंगी जिनकी ऋण अदायगी समय सीमा के भीतर नियमानुसार हुई हो।
(2) कौशल विकास-
• दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना-ग्रामीण गरीबों के लिए कौशल एवं नियोजन के माध्यम से आजीविका ग्रामीण विकास मन्त्रालय, भारत सरकार की एक अनूठी पहल है। इस योजना के उद्देश्य आवश्यकतानुसार ग्रामीण गरीबों की आय को विविधीकरण के माध्यम से विकसित करना एवं ग्रामीण युवाओं की व्यवसाय हेतु आकांक्षाओं को पूर्ण करता है। दक्षता के माध्यम से आजीविका की उत्पत्ति स्या जयन्ती ग्राम स्वरांजगार योजना के विशेष परियोजना घटक से हुई। इसके अतिरिक्त इस कार्यक्रम की आशा एवं आकांक्षा है कि देश के दो खण्ड में गरीबी को कम किया जाए एवं ग्रामीण गरीबों के जीवनयापन में गुणवत्ता लाई जाए। इसके परिणाम से भारत को जनसंख्या लामा यह तभी संभव है यदि ग्रामीण युवाओं की भी ।
• परियोजना कार्यान्वयन अभिकरण का चयन वापरणात प्रक्रिया भारत सरकार द्वारा जारी मार्गदर्शिकानुसार, समस्त परियोजना हिमाचल प्रदेश में वर्षवार योजना के आधार पर परियोजनाओं को स्वीकृति का प्रावधान था जिसमें किसी भी परियोजना को भारत सरकार कार्यान्वयन अभिकरणों को अपना पंजीकरण ऑनलाइन करना होता है जिसमें चयन प्रक्रिया का प्रावधान अन्तनिहित है। वर्ष 2016-1726 ये स्वीकृति नहा प्रदान का गढे। वर्ष 2016-17 में प्रदेश का वाषिक कार्य योजना राज्य घोषत किया गया तथा 13.07.2016 का राय वर्षों की कार्य योजना 2017-19 भारत सरकार का प्रस्तुत की। इस योजना के अतगत् कुल 15,000 ग्रामीण युवामा को तीन वर्षमा एवं बाजार आधारित विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षण प्रदान करने का प्रावधान था जिसका विवरण निम्न प्रकार से है-
आई.सी.टी. यात्रा और पर्यटन तथा लोड़ा इस्पन शामित हैं। इस योजना की कुल लागत 13360 करोड़ र है तथा परियोजना अपान्वयन अभिकरण द्वारा कुल प्रशिशित ग्रामीण गरीय युवाओं के 75 प्रतिशत को सुनिश्चित वैतनिक रोजगार प्रदान किया जाना प्रस्तावित18.7.2016 को भारत सरकार द्वारा उक्त योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में इस कार्यक्रम के वयन हेतु कौशल विकास निगम हि.प्र. को तकनीकी सहायता अभिकरण के रूप में निदुक्त किया गया है। उक्त अपकरण में कुल 50 परियोजनाओं की स्क्रीनिंग का कार्य पूर्ण कर लिया है। स्क्रीनिंग से उत्तीर्ण परियोजनाओं को परियोजना अनुमोदन सनिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, राष्ट्रीय आजीविका मिशन । 15 to 35 वर्ष के आयु वर्ग वाले ग्रामीण युवाओं को रोजगार प्रदान करना एव स्वरोजगार शेतु प्रशिक्षित करना जगम चो न्यूनतम अंतर्गत महत्वपूर्ण कार्यक्रम हैं, जिसका मुख्य मासिक वेतन प्राप्त कर सकें। वर्तमान में इस योजना के अंतर्गन हिमाचल प्रदेश में 12 पी आई. ए. कार्यरत हैं जिनका उद्देश्य कर्ष 2019 तक 10,400 प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण प्रदान करना है। हिमाचल प्रदेश में अभी तक कुल 35 प्रशिक्षण संस्थान स्थापित होने स्वीकृत हैं जिसमें से वर्तमान में 9 प्रशिक्षण संस्थान कार्यरत है।
संसद आदर्श ग्राम योजना -इस योजना का मुख्य लक्ष्य निर्धारित ग्राम पंचायतों के समग्र विकास में मददगार प्रक्रियाओं में तेजी लाना है। आबादी के सभी वर्गा के जीवन स्तर और जीवन गुणवत्ता में पर्याप्त रूप से सुधार लाना है। इस योजना में उन्नत बुनियादी सुविधाएँ, अधिकतम उत्पादकता, बेहतर मानव विकास, बेहतर आजीविका के अवसर, असमानता में कमी, अधिकार और हकदारी के लिए पहुँच, व्यापक सामाजिक एकजुटता च समृद्ध सामाजिक पूँजी इत्यादि शामिल है। हिमाचल प्रदेश में सभी माननीय सांसदों ने अपने संसदीय क्षेत्र से चरण-1 के अंतर्गत् एक आदर्श ग्राम पंचायत तक तीन सांसदों ने चरण-2 के अंतर्गत् एक आदर्श ग्राम पंचायत का चयन कर लिया है जिसका विवरण निम्म प्रकार है-
रूरबन मिशन- श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूरबन मिशन भी एक केन्द्रीय योजना है। इसके अंतर्गत् प्रथम चरण व दूसरे चरण में प्रदेश को तीन कलस्टर आबंटित किये गए हैं जिनमें हिन्नर विकास खण्ड, कण्डाघाट, दूसरा सांगला, विकास खण्ड कल्पा में स्थित और तीसरा औट विकास खण्ड मण्डी (सदर) में स्थित है। इस योजना के अंतर्गत भारत सरकार, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रदेश को 5,142.08 करोड़ र का बजट आवंटन किया जिसमें से 22.50 करोड़ र की धनराशि पहली तथा दूसरी किस्त के रूप में जारी की है। उक्त राशि को सम्बन्धित जिलों का विकास कार्य करने हेतु निर्मुक्त कर दिया गया है।. वर्ष 2017-18 में प्रदेश को तीसरे चरण में तीन और कलस्टर आवंटित हुए हैं जिनमें मुरंग जिला किन्नौर, सिंहुता जिला चम्बा और घणाहटी जिला शिमला में स्थित है। जहाँ पर आई-कैंपस के बनाने की प्रक्रिया प्रगति पर है। इस योजना का उद्देश्य चयनित ग्राम पंचायतों को शहरी क्षेत्रों की तर्ज पर विकसित करना व वहाँ पर सभी शहरी सुविधाएँ प्रदान करना है।
भारत सरकार द्वारा सितम्बर, 2005 में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियमको अधिसूचित किया तथा 2 फरवरी, 2006 में इसे लागू किया गया। प्रदेश में प्रथम चरण में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम जिला चम्बा तथा जिला सिरमौर में 2.02.2006 को लागू किया गया। द्वितीय चरण में इस योजना को 1.04.2007 से जिला मण्डी और जिला काँगड़ा में लागू किया गया तथा तीसरे चरण में शेष आठ जिलों में 1.04.2008 से इस योजना को लागू किया गया है। वर्ष 2017-18 तक भारत सरकार द्वारा 474.65 करोड़ र तथा प्रदेश सरकार के राज्य हिस्से के रूप में 12.47 करोड़ र रोजगार गारंटी फंड में जमा किए जा चुके है। प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2017-18 (09.01.2018 तक) के दौरान 408.16 करोड़ ₹ व्यय किए जा चुके हैं तथा 4,32,005 परिवारों को रोजगार उपलब्ध करवा कर 1.57 करोड़ कार्य दिवस अर्जित किये गए हैं। वर्ष 2018-19 में मनरेगा में रोजगार दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 120 की गई है।
राज्य प्रोत्साहन योजनाएँ-
महर्षि वाल्मीकी सम्पूर्ण स्वच्छता पुरस्कार MVSSP-राज्य सरकार द्वारा महर्षि वाल्मीकि सम्पूर्ण स्वच्छता पुरस्कार 2007-08 से प्रारम्भ किया गया था। महर्षि वाल्मीकि सम्पूर्ण स्वच्छता पुरस्कार का आरम्भ प्रदेश में स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण को बढ़ावा देने व बाह्य शौच मुक्त ग्राम पंचायतों में स्वच्छता प्रतिस्पर्धा प्रतियोगिता आधारित (राज्य प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत्) महर्षि वाल्मीकि सम्पूर्ण स्वच्छता पुरस्कार को क्रियान्वित करने के लिए किया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत् बाह्य शौच मुक्त विजेता पंचायतों (कुल 97 ग्राम पंचायतें) को हर वर्ष राज्य स्तरीय समारोह में पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इस योजना के अंतर्गत् पुरस्कार राशि का विवरण निम्न प्रकार से है-
1. खण्ड स्तरीय सम्पूर्ण स्वच्छ ग्राम पंचायत-1.00 लाख।
2. जिला स्तरीय सम्पूर्ण स्वच्छ ग्राम पंचायत-3.00 लाख (300 ग्राम पंचायतों से अधिक के जिला में दो ग्राम पंचायतों को पुरस्कार दिया जा सकता है।
3. मण्डल स्तरीय सम्पूर्ण स्वच्छ ग्राम पंचायत-5.00 लाख।
4. राज्य स्तरीय सम्पूर्ण स्वच्छ ग्राम पंचायत-10.00 लाख
पाठशाला स्वच्छता प्रोत्साहन योजना- राज्य सरकार द्वारा स्कूल स्वच्छता के अंतर्गत् एक प्रोत्साहन योजना 2008-09 से प्रारम्भ की गई थी जिसके अंतर्गत् खण्ड व जिला स्तर के सबसे स्वच्छ प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों को पुरस्कार प्रदान किए जाने का प्रावधान था। वर्ष 2011-12 में इस योजना को संशोधित करके उच्च/उच्चतर माध्यमिक स्कूलों को भी योजना के दायरे में लाया गया है। इस प्रोत्साहन योजना की पुरस्कार राशि हर वर्ष हिमाचल दिवस (15 अप्रैल) पर बाँटी जाती है। इस पुरस्कार योजना द्वारा उन स्कूलों की पहचान होती है जिन्होंने स्वच्छता तथा स्वास्थ्य शिक्षा में उत्कृष्ट उपलब्धियाँ प्राप्त की है। इस योजना के अंतर्गत् 88.20 लाख र की राशि का प्रावधान किया गया है।
आवास एवं शहरी विकास
आवास- हिमाचल प्रदेश सरकार आवास मन्त्रालय व आवास एवं शहरी विकास प्राधिकरण के माध्यम से समाज के विभिन्न आय वर्ग के लोगों की आवास सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विभिन्न श्रेणियों के मकानों/फ्लैटों के निर्माण और प्लॉटो को विकसित करने का कार्य करता है।
(1) बजट-वर्ष 2017-18 में 137.10 करोड़ ₹ का बजट में प्रावधान रखा गया था जिसके अंतर्गत् दिसम्बर, 2017 तक 87.38 करोड़ र का व्यय हुआ। इस वर्ष के दौरान 48 फ्लैटों का निर्माण व 141 प्लॉटो को विकसित करने का लक्ष्य है।
(2) डिपोजिट कार्य-हिमुडा ने डिपोजिट कार्य के अंतर्गत् 44 भवनों का निर्माण किया है। हिमुडा विभिन्न विभागों के डिपोजिट कार्य जैसे कि सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता, जेल, पुलिस, युवा खेल एवं सेवाएँ, पशु पालन, शिक्षा, मछली पालन, सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग, हिमाचल बस अड्डा प्रबन्धन एवं विकास प्राधिकरण, शहरी विकास निकायों, पंचायती राज और आयुर्वेदा विभाग के लिए भवन निर्माण कर रहा है।
(4) हिमुडा ने निम्न नीतियों योजनाओं को मंजूरी दी-
• भूमि सालिकों एवं हिमुडा के बीच राज्य में हाऊसिंग कलोनियों के विकास में भागीदार बनने के लिए, नीति के तहत मैं. अशोका पसलो (प्राइवेट) लिमिटेड जिला सिरमौर के साथ इस योजना के अतर्गत् एक समझौता किया है। हिमुडा द्वारा स्थापित विभिन्न कालोनियों में इकाइयां को बेचने के लिए स्थायी लागत को पूरा करने के बाद पहले आओ पहले पान के आधार पर मकान/फ्लैट प्लाटों के आवंटन के लिए योजना।
• हिमुडा ने एक पायलट परियोजना के रूप में नवीनतम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ई.पी.एस. प्रणाली के अंतर्गत् धर्मशाला में एक भवन का निर्माण किया है। भवन का निर्माण 4 महीने की अवधि के भीतर किया गया है। जिसके लिए हिमडा को प्रशंसा पुरस्कार प्रदान किया गया। हिमुडा द्वारा इसी तकनीक को अपनाते हुए रक्कड़ धर्मशाला में अधीक्षक अभियन्ता (एन) तथा अधिशासी अभियन्ताओं के लिए घरों का निर्माण किया जा रहा है।
• मानवीप अवलोकन को कम करने व पारदर्शिता लाने के लिये हिमुडा ने ई-गवरनेस को लागू किया है और मुख्य कार्यालय स्तर पर आँकड़ा का डिजिटलाइजेशन किया गया है। इसके साथ लंखा प्रणाली के सुधार के लिए टैली उद्यम संसाधन योजना की स्थापना की है।
शहरी विकास- संविधान के 74वें संशोधन के फलस्वरूप शहरी स्थानीय निकायों के अधिकार शक्तियाँ एवं क्रियाकलाप बहुत अधिक बढ़ गए है। वर्तमान
नगर निगम शिमला व धर्मशाला समेत कुल 54 शहरी स्थानीय निकाय है। शहरी क्षेत्रों में लोगों को मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करने हेतु सरकार प्रतिवर्ष इन शहरी स्थानीय निकायों को सहायता अनुदान राशि प्रदान करती है। राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप वर्ष 2017-18 में सभी शहरी स्थानीय निकायों को 109.36 करोड़ की राशि प्रदान की गई है। इस राशि में इन निकायों को विकास कार्यों तथा उनके आय-व्यय के अंतर को दूर करने के लिए सहायता अनुदान राशि भी शामिल है।
(1) शहरी क्षेत्रों में सड़कों का रख- रखाव-54 शहरी स्थानीय निकायों द्वारा लगभग 1,416 किलोमीटर सड़कें, रास्ते तथा गलियों का रख-रखाव किया जा रहा है। शहरी स्थानीय निकायों द्वारा जितनी लम्बाई की सड़कों गलियों तथा रास्तों का रखरखाव किया जा रहा है उसके अनुपात में उन्हें 600 करोड़र इस वित्तीय वर्ष 2017-18 में प्रदान किये गए हैं।
(2) राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन -योजना का देश्य शहरी क्षेत्रों में रह रहे गरीब परिवारों का सामाजिक आर्थिक एवं संस्थागत क्षमता विकास करते हुए प्रशिक्षण व वित्तीय सहायता के माध्यम से रोजगार एवं स्वरोजगार अवसर प्रदान करते हुए सतत तौर पर आजीविका साधनों को मजबूत करना है। इस योजना के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं
. कौशल प्रशिक्षण एवं प्लेसमेंट के माध्यम से रोजगार।
. सामाजिक जागरूकता एवं संस्थागत विकासा
.क्षमता वर्धन एवं प्रशिक्षण।
. स्वरोजगार कार्यक्रमा
. शहरी आवासहीनों के लिए आश्रय ।
. शहरी पथ विक्रेताओं को सहायता।
. अभिनव एवं विशेष परियोजनाएँ।
वित्त वर्ष 2017-18 में इस योजना के कार्यान्वयन के लिए 5.58 करोड़ र केन्द्रीय अनुदान तथा 0.63 करोड़ र राज्य अनुदान का प्रावधान किया गया
है। इसमें से 3.02 करोड़ केन्द्रीय अनुदान तथा 0.49 करोड़ र राज्य अनुदान अभी तक विभाग को प्रदान किया गया है। इस योजना के अंतर्गत् अभी तक 260 स्वयं सहायता समूह बनाए जा चुके हैं। 160 लाभार्थियों को विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षण प्रदान किया गया है एवं 33 लाभार्थियों को रोजगार प्रदान किया गया है। लघु उद्यम स्थापित करने के लिए 153 लाभार्थियों, एक समूह तथा 66 स्वयं सहायता समूहों को कम ब्याज पर ऋण प्रदान किया गया है। 2,197 रेहड़ी फड़ी वालों का सर्वे किया गया तथा उन्हें पहचान पत्र जारी किये जा रहे हैं।
(3) मल व्यवस्था योजना -वित्त वर्ष 2017-18 में प्रदेश के शहरों में चल रही मल निकासी योजना को पूरा करने हेतु 41.00 करोड़र का बजट जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। प्रावधान है जिसे सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य विभाग को शहरी स्थानीय निकायों के माध्यम से प्रदान किया जा चुका है। यह योजना सिंचाई एवं
(4) शहरी रूपांतरण तथा पुनरावर्तन के लिए अटल मिशन ( अमृत योजना)-इस योजना के अंतर्गत् शिमला और कुल्लू शहरों का चयन किया गया है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में इस मिशन के लिए 45.00 करोड़ का केन्द्रीय अनुदान एवं 5.00 करोड़र का राज्य अनुदान का बजट प्रावधान किया गया है जिसमें से योजना में 21.00 करोड़ र केन्द्रीय अनुदान तथा 233 करोड़ र राज्य अनुदान के रूप में प्रदान किये जा चुके हैं।रयास करना है। इस अभियान के अंतर्गत निम्न कार्य प्रगतिशील है।लाल बहादुर शास्त्री कामगार योजना एवं शहरी आजीविका योजना-इस योजना के अंतर्गत् नई सृजित नगर पंचायतों एवं नगर निगम व नगर परिषदों में नए सम्मिलित क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने हेतु वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1.50 करोड़ र का बजट प्रावधान है जिसमें से 1.10 करोड़ र नगर निगम धर्मशाला, नगर परिषद्, रामपुर व नेरचौक तथा नगर पंचायत टाहलीवाल, ज्वाली एवं बैजनाथ-पपरोला को जारी किए जा चुके हैं।
(10) पार्किंग का निर्माण-शहरी स्थानीय निकायों में पार्किंग की समस्या के समाधान हेतु वित्तीय वर्ष 2017-18 में 10.00 करोड़ र का बजट प्रावधान
है जिसमें से 7.80 करोड़र की राशि 16 शहरी स्थानीय निकायों को पार्किंग के निर्माण हेतु जारी किया जा चुका है।
(11) पार्कों का निर्माण-शहरी स्थानीय निकायों में चरणबद्ध तरीके से पार्कों के निर्माण के लिए वित्तीय वर्ष 2017-18 में 10.00 करोड़ ₹ के बजट का प्रावधान है जिसमें 9.20 करोड़ र की राशि 4 शहरी स्थानीय निकायों को पार्कों के निर्माण के लिए जारी किया जा चुका है।
नगर एवं ग्राम योजना विभाग ( TCP विभाग) सन्तुलित विकास और विनियमन द्वारा भूमि संसाधनों में कमी के दृष्टिगत, जनसांख्यिक और सामाजिकआर्भिक तथ्यों का विवेकपूर्ण उपयोग करके, कार्यात्मक, आर्थिक पर्यावरणीय सतत् और सौन्दर्यात्मक जीवन सुनिश्चित करने, पर्यावरण के संरक्षण, विरासत
और मूल्यवान भूमि संसाधनों के सतत् विकास के माध्यम से सामुदाविक भागीदारी द्वारा हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम योजना अधिनियम, 1977 को
ॐ योजना क्षेत्रों (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.58 प्रतिशत) और विशेष क्षेत्र (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.06 प्रतिशत) लागू किया गया है। नादौन, भोटा, सुजानपुर, बैजनाथ, पपरोला एवं अतिरिक्त शिमला योजना क्षेत्र के लिए भू-उपयोग मानचित्र व रजिस्टर तैयार किये गए हैं। ठियोग, परवाणू (संशोधित), त्रिलोकपुर कुल्लू, पून्तर, रामपुर (संशोधित), नादौन, धर्मशाला (संशोधित), मुमारवीं, अम्ब, गगरेट, सुन्दरनगर, मणीकरण, बैजनाथ पपरोला और बिल बिलिंग योजना/विशेष क्षेत्रों के लिए सरकार द्वारा विकास योजना को मंजूरी दे दी गई है।
आगामी वित वर्ष 2018-19 हेतु प्रस्तावित लक्ष्यों के अनुसार निम्नलिखित योजना क्षेत्रों, विशेष योजना क्षेत्रों के गठन, वर्तमान भू-उपयोग के लिएमानचित्र, विकास योजना और क्षेत्रीय योजनाओं का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
• ऑट, हिन्नर, हमीरपुर एवं सांगला-कामरू, योजना क्षेत्रों एवं विशेष क्षेत्रों हेतु भू-उपयोग मानचित्रों को तैयार करना।
• शिमला, कुल्लू, कण्डाघाट, वाकनाघाट, चायल, नेर-चौक सुजानपुर. भोटा, गरली परागपुर, चामुण्डा नारकडा और मेहतपुर हेतु विकास योजनातैयार करना।
. नगर व रिकांगपिओ, विशेष क्षेत्रों के लिए विकास योजनाएँ तैयार कर ली गई हैं और स्वीकृति हेतु सरकार को भेज दी गई हैं।
भारत सरकार द्वारा श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुरबन मिशन को कार्यान्वित करने के लिए ऑट, हिन्नर एवं सांगला कामरू को योजना क्षेत्र एवं विशेष क्षेत्र घोषित किया गया है।
• शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के लिए हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम योजना अधिनियम, 1977 को शक्तियाँ शहरी स्थानीय निकायों को प्रदान की गई हैं।
चालू वित्त वर्ष 2017-18 के भौतिक लक्ष्यों की उपलब्धियों हेतु 1.27 करोड़ र की राशि इस विभाग को आबंटित की गई है जिसमें से 91.78लाख की राशि 31.12.2017 तक व्यय हो चुकी है।
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