पंचायती राज
73वें संविधान संशोधन से पूर्व हि.प्र. में पंचायती राज का स्वरूप पंचायतें तथा इतनी ही न्याय पंचायतें स्थापित थीं। हिमाचल प्रदेश में तहसील पंचायतें तथा जिला पंचायतें स्थापित क्षेत्रीय परिषद् ने अपने हाथ में ले लिये। तत्पश्चात् बलवंत राय मेहता समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के अनुसार जिला स्तर पर तदर्थ जिला परिषदों की स्थापना की गई। यह निकाय सलाहकारी स्वरूप का था और जिले के उपायुक्त को इसका अध्यक्ष बनाया गया। नवम्बर, 1966 में राज्यों का पुनर्गठन किया गया इसी आधार पर पूर्ववर्ती पंजाब राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों का हिमाचल के साथ विलय कर दिया गया। इस समय हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में दो भिन्न-भिन्न अधिनियम लागू थे। पंजाब ग्राम पंचायत अधिनियम, 1952 तथा दूसरा पंजाब पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम 1961, हिमाचल के इस पुनर्गठन के फलस्वरूप यहाँ पंचायत की संख्या लगभग 1900 प सौंप दी गई। उन्हें निगमित निकाय बना दिया गया, जिनके पास सम्पत्ति अधिग्रहित करने, प्राप्त करने तथा बिक्री करने के अधिकार थे. अपनी निधियाँ थीं तथा कार्य करने के लिए कर्मचारी थे। 1972-73 के ग्राम पंचायतों के चुनावों में प्रदेश में 2038 ग्राम पंचायतों तथा इतनी ही न्याय पंचायतों की स्थापना की गई। 1968 के अधिनियम के अनुसार सम्पूर्ण प्रदेश में एक या एक से अधिक गाँवों के लिए ग्राम पंचायत की व्यवस्था की गई तथा न्याय पंचायतों की संख्या ग्राम पंचायतों की संख्या के बराबर निश्चित कर दी गई। न्याय पंचायत में पांच से सात तक पंच होते थे, जिनमें एक सरपंच तथा एक नायब-सरपंच शामिल थे। नायब पंचों का चुनाव ग्राम पंचायत के सदस्य द्वारा निश्चित किया गया था, जब कि सरपंच और नायब सरपंच का चुनाव न्याय पंचयात के सदस्यों ने अपनों में से ही करना, हिमाचल प्रदेश पंचायती राज (संशोधन) अधिनियम, 1977 के होने के साथ ही 20 मार्च, 1978 से न्याय पंचायतों को समाप्त कर दिया गया और ग्राम पंचायतों को उप-न्यायिक कार्यों का निपटारा करने का दायित्व दिया गया जिसे सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित करना था।
हि.प्र. पंचायती राज अधिनियम-1994-673वाँ संविधान संशोधन)
1992 में भारतीय संसद ने पंचायतों से संबंधित संविधान संशोधन पारित किया और इसे 23.4.1993 में 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के रूप में लागू किया। हिमाचल में 23 अप्रैल, 1994 को यह संशोधित अधिनियम “हिमाचल प्रदेश पंचायती राज अधिनियम" 1994 ई. में लागू किया गया जिसके अन्तर्गत् प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था कायम हुई। इस व्यवस्था के अनुसार पंचायत स्तर पर ग्राम पंचायतें, खण्ड स्तर पर 'पंचायत समितियां' और जिला स्तर पर जिला-परिषदों की स्थापना की गई। तीनों स्तरों पर सभी स्थान सीधे चुनाव द्वारा भरने की व्यवस्था थी। 21 वर्ष की आयु का कोई भी भारतीय नागरिक चुनाव लड़ सकता था।
रचना-ग्राम पंचायतों में प्रधान, उप-प्रधान और कम से कम सात तथा अधिक से अधिक 15 पंचों के चुनाव का प्रावधान था जो गाँवों की जनसंख्या पर निर्भर करता था। पंचायत समिति में कम से कम 15 और अधिक से अधिक 40 व्यक्तियों के चुने जाने की व्यवस्था थी। 3000 लोगों पर एक सदस्य चुना जाता था। जिला परिषद् के लिए 20,000 की जनसंख्या पर एक सदस्य चुना जाता है। जिला परिषद् के सदस्य कम से कम 10 हो सकते थे। ग्राम सभा में 1500 की जनसंख्या, 5 पंच चुनेगी, 2500 तक 7, 3500 तक 9, 4500 तक 11 और 4501 से अधिक होने पर 13 पंच चुनेगी। प्रधान और उप-प्रधान को मिलाकर अधिकतम संख्या 15 रहेगी। पंचायत समिति प्रत्येक विकास खण्ड में निर्वाचित की जाएगी। वर्तमान में प्रदेश में 78 पंचायत समितियाँ हैं। निर्वाचित क्षेत्रों से सीधे मतदान से निर्वाचित सदस्य लगभग 3000 की जनसंख्या पर चुना जाता है। जिला परिषद् की स्थापना प्रत्येक जिले में की गई है, प्रदेश के 12 जिलों में 12 जिला परिषदें कार्यरत हैं।,20,000 की जनसंख्या पर एक सदस्य चुना जाता है। (अनुच्छेद 243-C)
चुनाव-ग्राम पंचायत के प्रधान का चुनाव ग्राम सभा के सदस्य करते हैं। अब प्रधान और उप-प्रधान का चुनाव सीधे मतदाताओं द्वारा किए जाने की व्यवस्था कर दी गई है। अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के निर्वाचन और अविश्वास प्रस्ताव के समय केवल चुने हुए सदस्य ही मतदान कर सकते हैं। यदि प्रधान, उप-प्रधान, अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष लोगों की अपेक्षाओं के अनुसार काम न करें तो उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर पदों से हटाया जा सकता है। प्रत्येक पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। नई पंचायतों के चुनाव पुरानी पंचायत का कार्यकाल समाप्त होने से पहले किए जाते हैं। भंग पंचायतों के चुनाव 6 मास के भीतर किए जाने अनिवार्य है। पंचायत न्यायिक मामलों में 2000 रुपए तक के विवाद ले सकती है तथा पंचायतें 500 रुपए तक भरण-पोषण देने का आदेश दे सकती है। (अनुच्छेद 243-K)
कार्यकाल-5 वर्ष (अनुच्छेद 243-E)
आरक्षण-SC,ST,1/3 महिलाओं (वर्तमान में 50%) (अनुच्छेद 243-D)
राज्य वित्त आयोग-73वें संविधान संशोधन कानून द्वारा अनुच्छेद 243-I में राज्यपाल द्वारा पंचायतों की वित्तीय समीक्षा तथा राज्य और पंचायतों के करों द्वारा प्राप्त आयों के वितरण के लिए राज्य वित्त आयोग गठित किया जाएगा।
राज्य चुनाव आयोग-पंचायतों, पंचायत समितियों एवं जिला परिषद् का नियमित चुनाव करवाने के लिए राज्यपाल राज्य चुनाव आयोग का गठन करेगा।
वर्तमान में हि.प्र. में पंचायती राज व्यवस्था
के प्रावधान के अन्तर्गत् पंचायती राज संस्थाओं का वर्तमान में पाँचवाँ कार्यकाल है।हिमाचत प्रदेश पंचायती राज अधिनियम में समय-समय पर किए गए प्रावधानों पंचायत क्षेत्र में लघु खनिज के खनन के लिए जमीन पट्टे पर देने से पूर्व संबंधित पंचायत के प्रस्ताव को अनिवार्य किया गया है। पंचायत को योजना बनाने के लिए भी अधिकृत किया गया है। मोबाईल टावर लगाने एवं शुल्क अधिरोपित करने के लिए ग्राम पंचायतों को प्राधिकृत किया गया है। ग्राम पंचायतों को दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के अधीन भरण पोषण के लिए आवेदन को सुनवाई / निर्णय तथा 500 ₹ प्रतिमाह तक भरण पोषण भत्ता प्रदान करने हेतु आदेश देने की स ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेंगे जिसका अधिकारिता में वे तैनात है और यदि ऐसे गाँव स्तर के कर्मचारी बैठकों में उपस्थित नहीं होते हैं तो ग्राम सभा, ग्राम पंचायत के माध्यम से उनके नियंत्रक अधिकारी को मामले की रिपोर्ट करेगी, जो रिपोर्ट प्राप्त होने की तारीख से एक मास के भीतर ऐसे कर्मचारियों के विरुद्ध
पंचायती राज पदाधिकारियों का मानदेय एवं सुविधायें अनुशासनात्मक कार्यवाही करेगा और रिपोर्ट पर की गई कार्यवाही के बारे में ग्राम पंचायत के माध्यम से ग्राम सभा को सूचित करेगा।
राज्य सरकार ने पंचायती राज पदाधिकारियों को दिए जाने वाले मासिक मानदेय को हेतु प्रति बैठक फीस की दर को 225 र प्रति बैठक कर दिया गया है। सरकार द्वारा से शुरू हुई थी और 2019-20 तक लागू रहेगी। इन सिफारिशो के अन्तर्गत् हिमाचल प्रदेश की के लिए इन एप्लीकेशन को चलाने हेतु प्रशिक्षण भी पंचायती राज प्रशिक्षण केन्द्र मशोबरा में दिया जा रहा है। पंचायती राज संस्थाओं ने योजना' के अन्तर्गत् खण्ड स्तर पर 2 लाख, जिला स्तर पर 5 लाख, मण्डल स्तर पर 10 लाख और राज्य-स्तर पर श्रेष्ठ कार्य के लिए 20 लाख रुपए का पुरस्कार देने का प्रावधान किया गया है।
नगर निकाय
74वा संविधान संशोधन-
हि.प्र. में 1994 को "हि.प्र. नगरीय स्थानीय शासन अधिनियम' पारित हो गया। 74वें संविधान संशोधन द्वारा देश में नगरीय शासन प्रणाली को संवैधानिक दर्जा मिल गया। यह देश में 1 जून, 1993 को प्रभाव में आया। इस अधिनियम के द्वारा संविधान में एक नया भाग 4 शामिल किया गया। पंचायती राज संविधान की 11वीं तथा नगर निकाय संविधान की 12वीं अनुसूची बनी। संविधान के अनुच्छेद 243 से 243में नगरपालिकाओं के उपबंध शामिल किए गए।
TribalSub-Plan (जनजातीय उप-योजना)
5वीं पंचवर्षीय योजना में जनजातीय उप-योजना शुरू की गई। यह 50% से अधिक ST जनसंख्या वाले क्षेत्रों के लिए शुरू की गई। हि.प्र. में 1974-75 में TSP (Tribal Sub-Plan) के अंतर्गत् 3.65% राशि दी गई।
Tribal Sub-Plan के अंतर्गत् हि.प्र. को 5 क्षेत्रों में बाँटा गया है-1. किन्नौर जिला 2. लाहौल उपमण्डल 3. स्पीति उप-मण्डल 4. पांगी उपमण्डल 5. भरमौर उपमण्डल। ये सभी जनजातीय विकास खण्ड के रूप में चिन्हित किए गए। जनजातीय उप-योजना एक वार्षिक योजना है जिसे योजना आयोग द्वारा पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में जनजातीय क्षेत्रों एवं परिवारों के संपूर्ण कल्याण के लिए शुरू किया गया। वर्ष 1974-79 के लिए 16 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई। (5th five year plan)
Modified Area Development Approach (MADA) के अंतर्गत् जनजातीय बहुल पॉकेट को चिन्हित कर TSP लागू किया गया। हि.प्र. में MADA के तहत 1981-82 में 2 ऐसे पॉकेट चिन्हित किए गए जिससे 58% ST जनसंख्या तक लाभ पहुँचने लगा।
5th Five Year Plan में TSP का लक्ष्य 5.36% रखा गया और उपलब्धि 5.75% थी। 6th Five Year Plan (1980-85) में TSP का लक्ष्य 8.48% तथा उपलब्धि 8.62% रही। सातवीं पंचवर्षीय योजना में TSP का लक्ष्य 9% तथा उपलब्धि 8.78% रही। आठवीं पंचवर्षीय योजना में State Plan का 9% बजट TSP के लिए रखा गया जबकि उपलबि 8.56% रही। TSP के अंतर्गत् 1260 करोड़ ₹ तथा 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) में TSP के अंतर्गत 2052 करोड ₹ की राशि रखी गई। TSP राशि का 9 राज्य योजना की १% राशि जनजातीय उप-योजना (TSP) के लिए रखी जाती है। 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में राज्य में
Single Line Administration (एक रेखीय प्रशासन ) in H.P.
एक रेखीय प्रशासन 1986 में पांगी में शुरू हुआ जिसे 15 April, 1988 में सभी (ITDP) अनुसूचित क्षेत्रों में लागू कर दिया।
इसके अंतर्गत् जिले के सभी अधिकारियों को DC के सीधे नियंत्रण में लाया गया। DC को जिले के अंदर कार्य कर रहे सभी विभागों का विभागाध्यक्ष (Head of Department) घोषित किया गया। वह जिले के सभी अधिकारियों को ACRApprove करता है।
जिलाधीश (DC) को जिले के अंदर कार्य करने वाले Class-III एवं Class-IV श्रेणी के कर्मचारियों के स्थानांतरण की शक्तियाँ एक रेखीय प्रशासन के अंतर्गत प्रदान की गई है। जिलाधीश को सभी विभागों के विभागाध्यक्ष की कंट्रोलिंग अधिकारी एवं Disbursing अधिकारी की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
BRGF (Backward Region Grant Fund)/पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि
BRCF कार्यक्रम क्षेत्रीय विषमता को समाप्त करने के लिए 19 फरवरी, 2007 को शुरू किया गया। 27 राज्यों के 250 जिलों में इसे लागू किया गया। पंचायतों एवं नगर निकायों को सुदृढ़ करना, अवसंरचना निर्माण इसका मुख्य उद्देश्य था।
हि.प्र. के चम्बा और सिरमौर जिले को BRGF के अंतर्गत् पंचायती राज मंत्रालय ने शामिल किया है।
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