हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था
खाद्यान्न उत्पादन एवं क्षेत्रफल-
खाद्यान्न उत्पादन- वर्ष 2015-16 में कृषि तथा उससे सम्बन्धित क्षेत्रों का कुल राज्य घरेलू उत्पाद में लगभग 9.4 प्रतिशत योगदान रहा। वर्ष 2016-17 कृषि के लिए सामान्य अच्छा वर्ष होने की वजह से खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2015-16 के 16.34 लाख मी. टन की तुलना में वर्ष 2016-17 में 17.45 लाख मी. टन उत्पादन हुआ। वर्ष 2015-16 के 1.83 लाख मी. टन आलू उत्पादन की तुलना में वर्ष 2016-17 में आलू उत्पादन 1.96 लाख मी. टन हुआ। सब्जियों का उत्पादन वर्ष 2015-16 के 16.09 लाख मी. टन की तुलना में वर्ष 2016-17 में 16.54 लाख मी. टन हुआ।
खरीफ उत्पादन -राज्य के अधिकाँश हिस्से में सामान्य वर्षा होने के कारण बीजाई समय पर की जा सकी और कुल मिलाकर फसल की स्थिति सामान्य थी। मानसून 2016 के दौरान राज्य के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा के कारण खरीफ की खड़ी फसल कुछ सीमा तक प्रभावित हुई और 9.55 लाख मी.टन उत्पादन हुआ जो कि पिछले वर्ष सीजन के लिए 9.04 लाख मी.टन था।
हि.प्र. की प्रमुख फसलें-
बिजाई क्षेत्रफल-हि.प्र. के कुल क्षेत्रफल के 12% भाग पर बिजाई की जाती है। हि.प्र. के कुल बिजाई क्षेत्रफल के 83.50% भाग में सामानों की
विवाई की जाती है। सर्वाधिक बोयी जाने वाली फसल गेहूँ है।
1. गेहूं-38.5%
2. मक्का-31.6%
3.धान-8.6%
4. जो-3.1%
5. अन्य खाद्यान्न-1.7%
कुल-83.50%
कुल बिजाई क्षेत्रफल के 3.6% भाग में दाला. 3.4% भाग में सब्जियों और 5.6% भाग में फलों की खेती होती है। सर्वाधिक खेती काँगड़ा जिले में होती
है। काँगहा के बाद मण्डी जिले का स्थान आता है। लाहौल स्पीति जिले में सबसे कम खेती होती है। वर्ष 2011-12 में मक्की का उत्पादन 71542 हजार टन गेहूं का उत्पादन 632.95 हजार टन, चावल का उत्पादन 131.35 हजार टन और दालों का उत्पादन 492 हजार टन हुआ था।
(vi) पौध संरक्षण-फसलों की पैदावार बढ़ाने के उद्देश्य से पौधा संरक्षण उपायों को सर्वोच्च प्राथमिकता देना जरूरी है। प्रत्येक मौसम में फसलों की बीमारियों,
इनसैक्ट तथा पैस्ट इत्यादि से लड़ने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं। अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति, आई. आर.डी.पी. परिवारों, पिछड़े क्षेत्रों के किसानों तथा सीमान्त व लघु किसानों को पौध संरक्षण रसायन व उपकरण, 50 प्रतिशत कीमत पर उपलब्ध करवाए गए। विभाग का दृष्टिकोण है कि पौध संरक्षण रसायनों का प्रयोग कम करके धीरे-धीरे कीटों/रोगों के जैविक नियन्त्रण पर बढ़ावा दिया जाये। इस मद में सब्सिडी गैर योजना शीर्ष से वहन की जा रही है। संभावित एवं प्रस्तावित लक्ष्य सारणी में दर्शाए गए हैं।
मृदा जाँच एवं मृदा स्वास्थ्य कार्ड-प्रत्येक मौसम में मिट्टी की उर्वरकता को बनाए रखने के लिए किसानों से मिट्टी के नमूने इकट्ठे किए जाते हैं तथा मिट्टी जाँच प्रयोगशाला में इनका विश्लेषण किया जाता है। लाहौल-स्पीति जिला के अतिरिक्त सभी जिलों में मिट्टी जाँच प्रयोगशालाएँ स्थापित की जा चुकी है, जबकि चार चलते-फिरते वाहन/प्रयोगशालाएँ जिसमें से एक जन-जातीय क्षेत्र के लिए हैं, स्थानीय स्तर पर मिट्टी की जाँच के लिए कार्यरत है। यह प्रयोगशालाएँ का विश्लेषण किया गया तथा वर्ष 2017-18 में लगभग 50,000 मिट्टी के नमूनों के विश्लेषण का लक्ष्य रखा गया है। मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण परियोजना को सरकार ने फ्लैगशीप कार्यक्रम के तौर पर अपनाया है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत् वर्ष 2016-17 में पात्र किसानों को लगभग 3.85 लाख मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड दिए गए। वर्ष 2017-18 के दौरान लगभग 48,038 मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध करवाये जायेंगे जिससे किसानों को अपने खेतों की मिट्टी में पोषकता तथा उर्वरकता की स्थिति और पोषक तत्वों की आवश्यकताओं के बारे में जानकारी प्राप्त होगी। भू-उर्वरकता नक्शे चौधरी श्रवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जी.पी.एस. तकनीक द्वारा बनाए जा रहे हैं। राज्य सरकार ने मिट्टी जाँच को भी हि.प्र. सार्वजनिक सेवा गारन्टी अधिनियम 2011 के अंतर्गत् एक सार्वजनिक सेवा घोषित किया है।
जैविक कृषि- जैविक खेती सतत अंतर्गत् प्रति किसान को 6,000 ₹ की राशि (50 प्रतिशत अनुदान पर) 10x6x1.5 फीट को बरमी
गड्डा तैयार करने के लिए दी जाती है। इसके अतिरिक्त जैविक खेती अपनाने पर अनुमोदित जैविक आदानों पर 10,000 र प्रति हैक्टेयर (50 प्रतिशत) तथा प्रमाणीकरण हेतु 10,000 र प्रति हैक्टेयर 3 वर्षों के लिए प्रोत्साहन के रूप में दिया जा रहा है। प्रदेश के 39,790 किसानों ने 21,473 हैक्टेयर क्षेत्र में जैविक कृषि को अपनाया
बायो गैस संयन्त्र-पारम्परिक ईधन, जैसे जलावन लकड़ी की उपलब्धता के कम होने से बायो गैस संयन्त्रों ने राज्य के निचले तथा मध्यम पहाड़ी क्षेत्रों में महता प्राप्त की है। इस कार्यक्रम के शुरू होने से मार्च, 2017 तक राज्य में 44,778 बायो गैस संयन्त्र लगाए जा चुके है। वर्ष 2016-17 के दौरान राज्य में 107 बायो गैस संयन्त्र स्थापित किए गए तथा वर्ष 2017-18 के दौरान भी 100 और बायो गैस संयन्त्र स्थापित करना प्रस्तावित है जिसमें से दिसम्बर, 2017 तक 25 संवत्र पहले ही स्थापित किये जा चुके हैं।
नोट-हिमालय क्षेत्र के कुल चायो गैस उत्पादन का लगभग 90.86% अकेले हि.प्र. में होना है।
कृषि विस्तार एवं प्रौद्योगिकी पर राष्ट्रीय मिशन (NMAET) -12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कृषि विस्तार एवं प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय मिशन (NMAET)
के अंतर्गत् तकनीक को प्रसार प्रणाली किसान आधारित बनाने के लिए शुरू की गई है। इस मिशन को चार उप-मिशन में विभाजित किया गया है।
1. कृषि विस्तार उप-मिशन (SAME)
2.बीज एवं रोपण सामग्री उप मिशन (SMSP)
3. कृषि यंत्रीकरण उप-मिशन (SMAM)
4. पौध संरक्षण एवं पादप संगरोध (SMPP)
इस नए घटक के अंतर्गत् केन्द्र और राज्य 90:10 के अनुपात पर व्यय करेंगे। वर्ष 2017-18 के लिए 250.00 लाख के परिव्यय का अनुमान है। tamil स्थाई कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (NMSA)-सतत कृषि उत्पादकता और गुणवत्ता, मिट्टी और पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों को उपलब्धता पर निर्भर करती है। कृषि विकास को निरन्तर बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त स्थान पर विशिष्ट उपायों के माध्यम से दुर्लभ बढ़ाने के लिए एन.एम.एस.ए. का गठन किया गया है। इस मिशन के तहत निम्न मुख्य मुद्दे हैं-
1. बारिश पर निर्भर कृषि का विकास करना।
2. प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन।
3. जल उपयोग ददाता बढ़ाना।
4. मिट्टी के गुणवत्ता में सुधार।
5. संरक्षण कृषि को बढ़ावा देना।
यह एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है जिसके घटक 90:10 के अनुपात में क्रमश: केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा बहन होगा। वर्ष 2017-18 के दौरान
200.00 लाख का अनुमान है। aiv)
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NESM)-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना चावल, गेहूँ, और दालों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए शुरु की गई है। यह योजना वर्ष 2012 में रबी सीजन के दौरान प्रदेश में शुरू की गई है। इसके दो मुख्य घटक एन.एफ.एस.एम, चावल और एन.एफ.एस.एम. गेहूं है।केन्द्रीय सरकार को 100 प्रतिशत सहायता से एन.एफ.एस.एम. चावल राज्य के 3 जिलों में तथा एन.एफ.एस.एम, गहूँ 9 जिलों में कार्य कर रही है। योजना का मुख्य उद्देश्य चावल और गेहूं के उत्पादन को बढ़ाना तथा मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना और उत्पादकता, रचनात्मकता तथा रोजगार के अवसर लक्षित जिलों में अर्जित करना है। वर्ष 2017-18 के लिए राज्य योजना में 1165.00 लाख के व्यय का अनुमान है।
बीज प्रमाणीकरण- कृषि मौसमीय स्थिति राज्य में बीज उत्पादन के लिए काफी उपयुक्त है। बीज की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए तथा उत्पादकों को बीज की कीमतें उपलब्ध कराने के लिए बीज प्रमाणीकरण योजना को अधिक महत्त्व दिया गया। राज्य के विभिन्न भागों में बीज उत्पादन तथा उनके उत्पादन के प्रमाणीकरण के लिए "हिमाचल राज्यबीज रासायनिक खाद उत्पाद प्रमाणीकरण एजेंसी" उत्पादकों को पंजीकृत कर रही है। hiroin डॉ. वाई.एस. परमार किसान स्वरोजगार योजना-कृषि विभाग ने कृषि क्षेत्र में अधिक व शीघ्र विकास हेतु नकदी फसलों का उत्पादन पौली गृह के द्वारा खेतो करने के लिए डा. वाई.एस. परमार किसन स्वरोजगार योजना बनाई है। इस परियोजना का उद्देश्य जरूरत के हिसाब से संसाधनों की रचना एवं विभिन लक्ष्य जैसे अधिक पैदावार, के लिए 50 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाएगी। मुख्यमंत्री ग्रीन हाऊस रेनोवेशन स्कीम के अंतर्गत् अतिग्रस्त पॉलीशीट्स बदलने के सरकार वर्ष 2018-19 में 70% अनुदान देगी।
कृषि विपणन- कृषि विपणन तथा कृषि उत्पादन को राज्य में व्यवस्थित करने के लिए हिमाचल प्रदेश कृषि वानिकी उत्पादन विपणन एक्ट, 2005 लागू किया गया। इस एक्ट के अंतर्गत् राज्य स्तर पर हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड की स्थापना की गई। हिमाचल प्रदेश को 10 अधिसूचित विपणन क्षेत्रों में बाँटा
है। हि.प्र. कृषि वानिको उत्पादन विपणन एक्ट का भी भारत सरकार द्वारा परिचालित मॉडल एक्ट की तर्ज पर संशोधित किया जा रहा है। इस एक्ट के तहत निजी बाजार की स्थापना, प्रत्यक्ष विपणन, अनुबन्ध खेती और प्रवेश शुल्क का एक ही स्थान पर प्रावधान रखा गया है। विभिन्न मण्डियों का कम्प्यूटरीकरण भी किया जा रहा है। यह सभी गतिविधियाँ विपण न बोर्ड द्वारा अपने फंड एवं आर.के.बी.वाई. द्वारा चलाई जा रही है।
(eir) फसल ऋण-सीमान्त तथा लघु किसानों और अन्य पिछड़े वर्ग को संस्थागत ऋण सही तरीके से उपलब्ध करवाना और उनके द्वारा नवीनतम तकनीकी तधा सुधरे कृषि तरीकों को अपनाना सरकार का मुख्य उद्देश्य है। राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी की मीटिंग में फसल बार ऋण योजना तैयार की है ताकि ऋण बहाव का जल्दी अनुश्रवण हो सके। 1955 से अधिक बैंक शाखाएँ इस योजना को कार्यान्वित कर रही हैं। इस योजना के अंतर्गत् लाभान्वित किसानों को प्रतिशतता कुल किसानों का लगभग 43 प्रतिशत है।
भू एवं जल संरक्षण-भौगोलिक परिस्थितियों के मध्यनजर हमारी भूमि में कयन इत्यादि आ जाता है। जिस के कारण हमारी मिट्टी का स्तर गिर जाता है। इसके अलावा भूमि पर जैविक दबाव भी है। कृषि भूमि पर इस दुष्प्रभाव को रोक लगाने हेतु विभाग द्वारा राज्य सैक्टर के अंतर्गत् मिट्टी एवं जल संरक्षण को दो योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं।
यह योजनाएँ हैं-
() भू संरक्षण कार्य
(i) जल संरक्षण और विकास
कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जल संरक्षण और लघु सिंचाई योजनाओं को प्राथमिकता दी गई है। विभाग द्वारा वर्षा जल दोहन के लिए टैक, तालाब, चैक डैम व भण्डार संरचनाओं के निर्माण के लिए योजना तैयार की है। इस के अलावा कम पानी उठाने वाले उपकरण व फवारों के माध्यम से कुशल सिंचाई प्रणाली को भी लोकप्रिय बनाया जा रहा है। इन परियोजनाओं से भू संरक्षण एवम् जल संरक्षण तथा कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर अर्जित करने पर अधिक जोर दिया जाएगा।
वर्ष 2018-19 के बजट की कुछ मुख्य योजनाएँ-
• मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना-कृषि में बन्दरों, जंगली जानवरों व बेसहारा पशुओं की समस्या से निष्टले हेतु मुखमत्रों के समान योजना के अंतर्गत् सौर बाड़ लगाई जायेगी। तीन या इससे अधिक किसान सामूहिक तौर पर सोलर बाड़ लगाने का प्रस्ताव देते हैं तो सरकार इस अनुदान प्रदान करेगी।
• प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान-इस योजना में कृषकों को आवश्यक प्रशिक्षण, जरूरी उपकरण तथा जैविक कीटनाशक उपलब्ध कार जाएगा
1. कृषि, बागवानी, पशुपालन विभाग के विस्तार अधिकारियों एवं कृषकों को इस नई प्रणाली में प्रशिक्षित किया जाएगा।
2• विश्वविद्यालयों द्वारा इसके लिए Package of Practices तैयार किए जाएंगे। रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को हतोत्साहित किया जाएगा।
3• कृषि एवं बागवानी विभाग को जो बजट कीटनाशक दवाईयों के लिए दिया जाता है, उसे अब जैविक कीटनाशकों के लिए उपयोग किया जाएगा देसी गाय की नस्ल सुधार व संवर्धन के लिए नीति बनाकर उसे कार्यान्वित किया जाएगा।
4. सरकार द्वारा जैविक उत्पादों के विपणन तथा प्रमाणीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा।
5.जैविक खेती के प्रोत्साहन हेतु तथा जैविक कीटनाशक संयन्त्र की स्थापना के लिए 50 प्रतिशत निवेश उपदान दिया जाएगा।
हि.प्र. विपणन निगम (एच.पी.एम. सी.)
• एच.पी.एम. सौ. राज्य का एक सार्वजनिक उपक्रम है जिसकी स्थापना ताजे फलों व सब्जियों के विपणन, अतिरिक्त उत्पादन जो बाजार तक नहीं पहुँच
सका उसके तैयार किए गए उत्पादों के विपणन के उद्देश्य से की गई है। एच.पी.एम.सी. आरम्भ से हो बागवानों को उनके उत्पादन की लाभप्रद
प्राप्तियाँ उपलब्ध करवाने में मुख्य भूमिका निभा रहा है। वर्ष 2017-18 में दिसम्बर, 2017 तक एच.पी.एम.सी. ने 4,567.16 लाख के उत्पाद, 9,200.00 लाख र के लक्ष्य की तुलना में अपने संयंत्रों से तैयार करके घरेलू बाजार में बेचा।
. HPMC व्यापार-मण्डी मध्यस्य योजना (MIS 2017) के अंतर्गत् एच.पी.एम.सी. ने 15,926 मी.टन सेवों की खरीद की इसके अतिरिक्त एच.पी.
एम.सी. सयंत्रों में 8,311 मी.टग सी ग्रेड सेब प्रोसेस किया जिसमें से 746,00 मी.टन का सेब कन्सैन्ट्रैट जूस तैयार किया गया। वित वर्ष 2017-18 में निगम 15 जनवरी, 2018 तक बागवानों से कोई भी फल नहीं खरीद पाई। एच.पी.एम.सी. अपने उत्पादों को प्रतिष्ठित खरीददारों को जिसमें रेलवे,
उत्तरी कमान मुख्यालय, उधमपुर, विभिन्न धार्मिक संस्थानों, मैं. पार्ले व खुले बाजार की निजी संस्थाओं और एच.पी.एम.सी. जूसबार के लिए भेज.रही है। एच.पी.एम.सी. के द्वारा 419.46 मी.टन सेब जूस 573.41 लाख र में तथा अन्य उत्पाद 966,57 लाख ₹ में उपरोक्त संस्थानों को बेचा गया। रच.पी.एम.सी. अपने उत्पादों को आई.टी.डी.सी. के होटलों एवं संस्थानों को जो मेट्रो शहर दिल्ली, मुम्बई और चण्डीगढ़ में है लगातार भेज रही है। एच.पी.एम.सी. ने इन संस्थानों के लिए 31 दिसम्बर, 2017 तक 457.65 लाख र के फल एवं सब्जियाँ भेजी हैं। इसी तरह एच.पी.एम.सौ. ने 31 दिसम्बर, 2017 तक 354.73 लाख र के विभिन्न सामान प्रदेश के फल उत्पादकों को बेचे हैं। निगम को दिल्ली, मुम्बई, चेनई, पावाणु तथा प्रदेश सेब उत्पादक क्षेत्र में स्थित 5 सी.ए. भण्डार गृहों से 515.97 लाख र राजस्व के रूप में प्राप्त हुए। निगम ने दिसम्बर, 2017 तक 81.04 लाख र फलों का व्यापार किया और 502.79 लाख र लाभ अर्जित किया जिसमें ट्रकों से, किराए से व आइत शामिल है इसके अतिरिक्त अन्य सामान की विक्री जैसे पेयजल, खेत, आदान व अन्य कम्पनियों को कर अदायगी भी शामिल है। इसके अतिरिका निगम ने अपने प्रसंस्कृत उत्पादों को घरेलू बाजार में दिसम्बर, 2017 तक लगभग 1,539.98 लाखर में वेचा। . HPMC परियोजनाएँ-निगम ने एपेडा, वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार से 3,449.95 लाख ₹ तकनीकी उन्नतिकरण हेतु सहायता अनुदान स्वीकृत कराने में सफल हुआ। यह सहायता अनुदान निम्न परियोजनाओं हेतु प्राप्त हुआ है-
• ग्रेडिंग व पैकिंग गृह जरोल टिक्का, (कोटगढ़), गुम्मा (कोटखाई), ओडी (कुमारसैन), पतलीकुहल (कुल्लू), तथा रिकांगपिओ (किन्नौर) के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायता 797.30 लाख र उपरोक्त ईकाइयों के लिए खर्च कर उन्नतिकरण किया।
• वातानुकूलित सी.ए. स्टोर, गुम्मा (कोटखाई) व जरोल टिक्कर (कोटगद) जिला शिमला 1,009.00 लाख से शुरू किये गए।
• नादौन (हमीरपुर) आधुनिक सब्जियों के लिये पैक हाउस व कोल्ड रुम प्रोजेक्ट के लिए तथा घुमारवी जिला बिलासपुर में फलों व सब्जियों तथा जडी-बुटियों के लिए पैकिंग व ग्रडिंग तथा वातानुकूलित स्योज के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायता 788.50 लाख र है।
.एच.पी.एम.सी. फल विधावन संवत्र, परवाणू में स्थित जुसों की टेट्रा, पैकिंग के लिए टी.बी.ए-9 टी.वी.ए.-19 में परिवर्तित करने के लिए शत प्रतिशत वित्तीय सहायता 355.15 लाख १ है।.सरकार ने एच.पी.एम.सी. के फल विधायन संयंत्र परवाणू का उन्नतिकरण तथा आधुनिकीकरण करने के लिए 10.00 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की है। इसके अलावा एच.पी.एम.सी. ने गत वर्ष हि.प्र. सरकार व नाबार्ड से आर्थिक सहायता व लोन लेकर 700 मी.टन प्रति स्टोर की क्षमता वाले तीन स्या. रोहडू. ओडी व पतली कुहल स्थित भण्डारों को शीत भण्डारों में परिवर्तित किया है, तथा इन सी.ए. स्टोरों को प्राइवेट पार्टियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए लीज पर दिया है। निगम ने इन पर किए गए निवेश से लाभ अर्जित करना भी शुरू कर दिया है।
.एच.पी.एम.सी. अपने सभी पैक हाउसों, शीत भण्डारों, सी.ए, स्टोरों तथा फल विधायन संयंत्रों को अधोसंरचना को स्तरोन्नत करने की सोच रही है तथा इनके सीमावर्ती क्षेत्रों में सार्वजनिक एवम् निजी साझेदारी के अंतर्गत् आधुनिक तकनीक सहित मौन फोल्ड परियोजनाओं का निर्माण करने की योजना बना रही है ताकि एक ओर किसान को लाभ मिल सके तथा दूसरी ओर निगम की आय में बढ़ोतरी हो सके। दिल्ली. चेन्नई तथा परवाणु स्थित शीत भण्डार एच.पी.एम.सी. की दूसरी सम्पत्तियाँ जोकि घाटे में चल रही हैं, उन्हें भी सुचारू रूप से चलाने के
लिए प्राइवेट पार्टियों को लीज पर देने का विचार कर रही है।
कुछ महत्त्वपूर्ण बागवानी फसलें-
. सेब-हि.प्र. भारत में सेब उत्पादन में जम्मू-कश्मीर के बाद दूसरे स्थान पर आता है। अलेक्जेण्डर कोल्ट ने 1887 ई. में शिमला के मशोबरा में सेब के बाग लगवाए। सेब की खेती बास्तव में 1918 ई. में प्रारम्भ हुई जब सैमुअल इवान्स स्टोक्स ने कोटगढ़ में अमेरिकी किस्म के सेब के बाग लगवाए। आर.सी.ली. ने 1870 ई. में हि.प्र. में ब्रिटिश किस्म के सेव कुल्लू में लगवाए। जॉनधन रेड डिलोशियस, रोम ब्यूटी, आरल नवरी, ब्यूटी ऑफ शिमला सेब को किस्में है। शिमला जिले में सर्वाधिक सेब का उत्पादन होता है।
कुठ-कुठ की खेती मुख्यतः लाहौल-स्पीति में की जाती है। इसका उत्पादन 1925 ई. में शुरू हुआ।
केसर-केसर का उत्पादन लाहौल-स्पीति जिले में होता है।
किवी-किवी को चीनी गुजबैरी भी कहते हैं। शिमला में किवी का उत्पादन 1969 ई. में शुरू हुआ। सर्वाधिक किवी का उत्पादन सोलन जि होता है
आम-आम का सर्वाधिक उत्पादन (16.7 हजार टन) काँगड़ा जिले में होता है। ऊना जिले का आम उत्पादन में दूसरा स्थान है।
चाय-चाय का सर्वाधिक उत्पादन काँगड़ा जिले में होता है। काँगड़ा जिले में चाय का उत्पादन 1850 ई. में शुरू हुआ। काँगड़ा चाय ग्रीन गोल्ड नाम से बिकती है। चाय की खेती 2310 हैक्टेयर क्षेत्र में होती है। वर्ष 2016-17 के दौरान 9.21 लाख किग्रा. चाय का उत्पादन हुआ। अनुसूचित जाति के चाय पैदावार करने वाले लोगों को कृषि औजारों पर 50% अनुदान दिया जाता है।
बागवानी विकास परियोजना
विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित 'बागवानी विकास परियोजना' जो रु. 1,134 करोड़ की लागत से चल रही है के अंतर्गत वर्ष 2018-19 में लगभग रु. 100 करोड़ की लागत से निम्नलिखित कार्य किए जाएंगे।
2600 सेब के बगीचों में कौलौनल रूट स्टॉक पर उच्च पैदावार किस्मों का कल्मीकरण।
उष्ण कटिबंधीय फल जैसे आम, लीची, अमरूद एवं नींबू प्रजाति के फलों के बगीचों को 400 हैक्टेयर में समूह के आधार पर लगाना।
न्यूजीलैंड के विशेषज्ञों द्वारा विभाग के तकनीकी कर्मचारियों को Canopy and Fioor Management में प्रशिक्षण प्रदान करना।
अंगीकृत कृषकों को छटाई, पोषण एवं फ्लोर प्रबन्धन में प्रशिक्षण।
.3.70 लाख अधिक पैदावार वाली सेब किस्मों का कौलौनल रूट स्टॉक का आयात।
शिलारू तथा पालमपुर में दो श्रेष्ठ केन्द्र स्थापित करना।
सभी समूहों में सिंचाई की व्यवस्था।
CA शीतभण्डारण केन्द्र, ग्रेडिंग तथा पैकिंग घरों का निर्माण तथा मार्केट यार्डों का विकास।
हि.प्र. औषधीय एवं सुगंधित पौधे- हि.प्र. की जलवायु बहुत से औषधीय एवं सुर्योधत पौधों के लिए आदर्श स्थान है। इनसे आयुर्वेदिक दवा बनाई जाती
है। दवा उद्योगों में बढ़ती माँग के चलते बहुत से बहुमूल्य प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर पहुँच गई जिसके बाद 1995 में आयुर्वेद विभाग ने इनके संरक्षण
के लिए हर्बल गार्डन विकसित किए। जोगिन्दर नगर हर्बल गार्डन (1250 मी.)/1994 में स्थापित/सब-टैम्परेट एग्रो क्लाईमेंट जोन में स्थित। नेरी (हमीरपुर) हर्बल गार्डन/1996 में स्थापित सब ट्रोपिकल जोन।.डुमरेड़ा ( रोहडू, शिमला) हर्बल गार्डन/1998-99 में स्थापित/हाई हिल्ज टैम्परेट वेट जोन जंगल थलेरा (बिलासपुर) हर्बल गार्डन/सब ट्रोपिक जोन
जोगिदंर नगर हर्बलगार्डन में निम्न औषधीय पौधों पर अनुसंधान चल रहा है-
• तुलसी (Ocimum Sanctum)
.लाजवन्ती (Mimosa pudica)
• अकरकरा (Spilanthes Acmella)
• मण्डूक परवी (Centella asiatica)
• अश्वगंधा (Witharia Somnifera)
• चित्रक (Plumbago Zeylenica)
• सफेद मुसली (Asparagus adscendents)
. भृगराज (Eclipta Alba)
• बनफसा (Viola Serpens)
• भूमि आँवला (Thyllanthes urinaria)
केन्द्र प्रायोजित योजना द्वारा जिन पौधों का विकास हर्बल गार्डन (जोगिंदरनगर) में किया जा रहा है-
• ब्राह्मी (Bacopa morneiri)
मलकानगनी (Celastrus paniculatus)
• पशनभेड़ (Bergeria ligulata)
• मेडा (Ploygonatrnt verticellatum)
• दारू हरिद्धा (Berberis Aristata)
सभी हर्बल गार्डन में उगाई जाने वाले औषधीय एवं सुगंधित पौधे-कस्तूरी भिण्डी, कश्मीरी अकरकरा, शिरिष, घृतकुमारी, जंगली कुठ, शतावर, कपूर, तेजपत्र, शिंगली-मिगली. आँवला, गम्भरी, कनेर, पिपली, सर्पगंधा, अर्जुन, बहेड़ा, हरड़, बन प्लाइ, विलव कुटकी, वन ककड़ी, वन अजवाइन.सुगंधवाला, चिराता, कस्तूरी पत्र, महामेदा, पुष्कर मूल, कपूर कचरी, अतिश, जयफल।
हिमाचल प्रदेश में उद्यानों के विकास के लिए भविष्य की रणनीति इस प्रकार से हैं-
पौधों की उत्पादकता में सुधार,
फल उत्पादन गुणवत्ता में सुधार
बागवानी उद्योग में विविधीकरण
वायरस मुक्त पौधरोपण सामग्री हेतु नर्सरी उत्पादन का आधुनिकी कार्यक्रम,
विकसित देशों में विभिन्न फलों की सुधरी किस्मों तथा मूल वृतों का आयात कर प्रदेश स्तर पर प्रचुर मात्रा में उत्पादन कर बागवानों को वितरित करना
फल उत्पादकता को बढ़ाने हेतु सघन फल पौध रोपण को बढ़ावा देना,
कीटनाशक दवाइयाँ का कम प्रयोग करने हेतु बागवानों को जैविक विधि द्वारा कीटों व फलों की बिमारियों को नियंत्रण में लेने हेतु प्रोत्साहित करना
बागवानों को तकनीकी ज्ञान व फलों के विपणन सम्बन्धी सूचना देने हेतु आधुनिक सूचना तकनीक का प्रयोग करना।
वैज्ञानिक विधि द्वारा पानी का दोहन, संग्रहण और जल प्रबंधन में सुधार लाना
फल उत्पादकता बढ़ाने हेतु उच्च उद्यान तकनीकों जैसे कि संरक्षित खेती, जैव प्रौद्योगिकी तथा सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देना।
फल फसलोत्तर प्रबंधन हेतु वैज्ञानिक आधारभूत संरचना का निर्माण।
फल उत्पादन की गुणवत्ता को बढ़ाना।
ब्रांड, विज्ञापन और निर्यात द्वारा फलों के बाजार को बढ़ावा देना।
योजनाएँ-वर्ष 2017-2018 में मछुआरों को जीवन सुरक्षा निधि के अंतर्गत् लाया गया है जिसके तहत मृत्यु स्थाई अपमता को दसा इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं के कारण 'आपदा कोष योजना' के अंतर्गत् मत्स्य उपकरणों के नुकसान की भरपाई के लिए कुल लागत का में संतप्त परिवार का2.00 लाख तथा आशिक अपंगता की स्थिति में 1.00 लाख तथा चिकित्सा उपचार हेतु 10,000 प्रदान किए जाते हैं। 50 प्रतिशत प्रदान किया जाता है। अर्जित काल के दौरान मछुआरों के लिए जीवन यापन हेतु अशदाया बचत योजना चलाई जा रही है जिसके अंतर के अंशदान से दोगुनी राशि केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा 8.20 के अनुपात में बहन की जाती है। इकाइयों व 1,000 हेक्टेयर में नए तालाब के निर्माण की परिकल्पना की गई है। केन्द्र और राज्य सरकार के बीच नील क्रांति की केन्द्रीय प्रायोजित.स्कोम 90:10 अनुपात में सांझी को जा रही है। वर्ष 2017-18 में इस योजना के अंतर्गत..72 ट्राउट इकाइयाँ स्थापित होगी।
• नए तालाबों का निर्माण व पुराने तालाबों का पुनर्निर्माण।.राज्य जलाशय में मत्स्य बीज संग्रहण। वर्जित काल सुरक्षा अनुदाना
• जिला कुल्लू के पतलीकुल में सामुदायिक केनिग केन्द्र स्थापित किया जा रहा है जिसमें भुनी हुई ट्राउट खाने के लिए उपलब्ध होगी। उपरीन.खर्चों को पूरा करने के लिए 2017-18 के वार्षिक योजना के दौरान 700.00 लाख १ का प्रावधान है।. एक्वाकल्चर-वर्ष 2017-18 में एक्वाकल्चर को बढ़ावा देने हेतु नील क्रांति के अंतर्गत् 36.00 लाख र की वित्तीय सहायता प्रदान कर 13.हैक्टेयर के नए मत्स्य तालाब निर्मित किए जा रहे जिसमें 70 मि.मी. से ऊपर का बीज निर्मित हो सके। इसके अतिरिक्त 951 लाख १ कर.स्वीकृति ऊना क्षेत्र के किसानों को कार्य बीज की जरूरत को पूरा करने के लिए की गई है। ऊना जिला में निजी क्षेत्र में 15.00 लाख में एक नई हैचरी स्थापित की जा रही है। ब्रुडर मछली के रख रखाव हेतु 0.57 हैक्टेयर नये क्षेत्र का निर्माण 2.39 लाख र से निजी क्षेत्र में ऊना जिला में किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में एक्वाकल्चर को बढ़ावा देने हेतु विला कुल्लू, चम्बा, मण्डी, शिमला और सिरमौर में विभागीय कार्प फार्मों पर 105.00.लाख र की लागत से 7 सौर ऊर्जा प्रणालियों को वर्ष 2017-18 में स्थापित किया जा रहा है।
• वर्ष 2017-18 में जलाशयों के एकीकृत विकास हेतु निजी क्षेत्र में जिला कुल्लू, मण्डी, चम्बा, शिमला व सिरमौर में 27.20 लाख ₹ की वित्तीय
सहायता द्वारा 15 कार्य हैचरियों का निर्माण करवाया जा रहा है।
• कुल्लू के पतलीकुल में 85.00 लाख र की लागत से एक सामुदायिक केनिंग केन्द्र स्थापित किया जा रहा है, जहाँ खाने योग्य पकी हुई ट्राउट मछलीउ पलब्ध होगी। 2017-18 के दौरान 72 नई ट्राउट मछली ईकाइयों की स्थापना 71.60 लाख र के वित्तीय सहायता से कुल्लू, चम्बा, मण्डी, शिमलाऔर सिरमौर जिलों में स्थापित की जा रही इसके अतिरिक्त 89.50 लाख की स्वीकृति इन ट्राउट फार्मों के फोड व खादों के लिए की गई है।
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