HP History part 4.3

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ब्रिटिश साम्राज्य विस्तार (Hill States under the Colonial Power)


ब्रिटिश छावनियों का निर्माण स्थापना-

पूरे देश में मौजूदा समय में 62 छावनो एरिया हैं, जो कि केन्द्र सरकार के रक्षा मंत्रालय के अधीन हैं। हि.प्र. में मसात छावनी एरिया हैं जिन्हें ब्रिटिश काल में स्थापित किया गया था ये छावनियाँ है-

सबाथु-

सबाथु जिला सोलन में स्थित है। यह निर्माण (1850 ई.) से पूर्व इस छावनी का बहुत महत्त्व था। लेफ्टिनेंट ROSS को इस क्षेत्र में राजनीतिक पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया। कैनेडी शिमता जाने से पूर्व सवाथु में रहे। विलियम बेन्टिक 1829 ई में यात्रा के लिए सवाधु आए।

 कसौली-

सोलन जिला में स्थित कसौली दौरान हुआ थ। कसौली का नाम कसौल ऊपर पड़ा है। कसौली के सैनिक 1357 में खजाना लूटकर जतोग को नसीरी बटालियन से जा मिले थे।

जतोग-

जतोग छावनी (शिमला जिले में स्थित) और बाद में 1843 ई. में इसे छावनी बनाया गया। सूबेदार भीम सिंह के नेतृत्व में 1857 ई. में जतांग को नसरी बटालियन ने विद्रोह किया था।

इंगशाई-

सोलन जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-22 (NH कैदियों को रखा जाता था। इसका नामकरण "दाग-ए-शाही" (Royal Stamp) से हुआ। यहाँ पर 1549 में एक केन्द्रीय जेल भी स्थापित किया गया। कामा गाय मारू के चार स्वतंत्रता सेनानियों को यहाँ फांसी पर चढ़ाया गया था। वर्ष 1920 में आयरिश सैनिकों ने यहाँ विद्रोह किया था।

बकलोह-

चम्बा जिले में स्थित बकलोह को 1866 ई. में छावनी बनाया गया था। यह श्रेणी-4 की छावनी है। यह गोरखा सैनिकों को छावनी बनी।

 डलहौजी-

डलहौजी की स्थापना लार्ड डलहौजी ने 1854 ई. में की। यहाँ पर छावनी की स्थापना 1867 ई में हुई थी। चम्बा रियासत के राजा श्री सिंह ने 1857 ई. के विद्रोह में ब्रिटिशरों की सहायता के लिए अपने सैनिक डलहौजी भेजे थे। 

योल-

योल (काँगड़ा) में 1849 ई में ब्रिटिश सैनिक छावनियों का निर्माण गोरखा सैनिकों से हुआ है जो 1814-15 के गोरखा-ब्रिटिश युद्ध के बाद नेपाल नहीं गए।


 पहाड़ी राज्यों के प्रति अंग्रेजों की प्रशासनिक नीति- 

आग्ल-गोरखा युद्ध (1815 ई.) के वे सभी अंग्रेजें के अधिकार में आ गई।

पहाड़ी राज्यों के प्रति अंग्रेजों ने 1815 ई. के पश्चात् निग्न प्रकार की नीति अपनाई-

सनदों द्वारा ब्रिटिश आधिपत्य स्थापित करना-

  1. सनद' एक प्रकार 'सनद' द्वारा रियासत के शासक और उसकी संतानों को उसकी अपनी रियासत में शासन करने की मान्यता प्रदान की जाती थी।

  2. गोरखा ब्रिटिश युद्ध के सिंह, 20 सितम्बर, 1815 ई.) जुब्बल (पूर्णचंद, 18 सितम्बर, 1815) के राज्य उनके वास्तविक स्वामियों को सौंप कर सनदें प्रदान की गइ। इस सनद के अनुसार उन्हें और उनकी संतानों को राज्य करने का अधिकार प्रदान किया गया। कुमारसेन ( राणा केहर सिंह, 7 फरवरी 1816 ई.; बलसन ( योगराग, 21 सितम्बर,1815 ई.). थरोच (झोबू, 31 जनवरी, 1819 ई.), मांगल (बहादुरशाह, 20 सितम्बर, 1815 ई.). धामी (गोवर्धन सिंह, 4 सितम्बर, 1515 ई.) की ठकुराइयों को अलग मानकर सनदें प्रदान की गई। खनेटी और देलथ की ठकुराइयों को बुशहर के अधीन किया गया जबकि कोटी,घुण्ड, ठियोग, मधान और रतेश को क्योंथल रियासत को दे दिया गया।

  3.  सनदों के अतर्गत पहाडी रियासतों को अंग्रेजी सुरक्षा के बदलं कुछ शतों का पालन आवश्यक था। जैसे अपने राज्य में 12 फुट चौड़ी सड़कों का निर्माण करना। युद्ध के समय कुलियों, सशस्त्र नौकरों सहित अंग्रेजों की सहायता करना। ब्रिटिश व्यापारियों और सामान को अपने राज्य में निःशुल्क गुजरने देना और जरूरत पड़ने पर बेगार श्रमिक जुटाना। राजा अपने रज्य में कानून-व्यवस्था तश्श कृषि में सुधार करें तथा लोन की शिकायत दूर करें।

हस्तक्षेप की नाति- 

अंग्रेजो नदेगा शासका कप्रशासन पर कड़ा नियत्रण रखा। कम्पनी सरकार के अफसर जनसाधारण कक, सामाजिद और धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप करते रहते थे।

ईसाई मिशनरी- 

1853 ई. में अंग्रेजों ने किन्नर और लाहोल स्यीत के कबापल्ली क्षेत्रों में अपने धर्म प्रचार के लिए "ईसाई मोरावियन मिशन की स्थापना की और जॉ. A.DH. फ्रैंकल की अध्यक्षता में कार्य करता आरभ लिया

लैप्स की नीति- 

1850 ई. में गर्वना जनरल लार्ड डलहौजी ने “लैप्स को नोति" के आधार पर बघाट के राजा की मृत्यु के पश्चात् पैतक उत्तराधिकारी न होने पर उसका राज्य छीन लिया गयापश्चात् काँगड़ा कुल्लू और लाहौल-स्पीति को एक जिल्ला

प्रशासनिक इकई बना कर डिप्टी कमिश्नर के अधीन कर दिया गया।

 सैतिक शिविरों एवं छावनियों का निर्माण

अंग्रेजों ने गरख युद्ध से प्राप्त किलो, क्षेत्रों और भू-सम्पतियों के अपने कब्जे में रख व्यापारिक केन्द्र सैनिक शिविरों और सैनिक छवनियों का नेर्माण किय। ब्रिटिश शासक अपनी इच्छा से किसी राज्य के क्ष्त्र व सीम में फेर-बदल करते रहते थे। इस नीति के अनुसार 1830 ई में अंग्रेजों ने व्योथल के राणा संसार सेन से 12 गाँव प्रप्त कर शिमल शहर का निर्माण आरंभ किया।


 अंग्रेजों के शिमला पहाड़ी रियासतों से संबंध

बुशहर-

गोरख। युद्ध के बाद अंग्रेजों ने वार्षिक कर देना स्वीकार किया। वर्ष 1911 ई. में अंग्रेजों ने एला मिचत को बुशहर का मैनेजर नियुक्त कर दिया। 886 ई. में शमशेर सिंह को उनके पुत्र टिक्का रघुनाथ सिंह के पक्ष में गद्दी छोड़ने पर अंग्रेजों ने विवश किया। वा 1898 ई. में राजकुमार की मृत्यु के पश्चात् शमशेर सिंह को पुनः गद्दी संपने के बजाय रेजों ने गय मंगत रम को प्रशासक बनाकर काम चलाया बेजा-गोरखा शुद्ध के बाद अंग्रेजों ने । सितम्बर, 1815 ई. की सनद द्वारा बेज ठकुराई मान चंद को सौंप दी। उदय चंद के काल में नरी और चलहान गाँच अंग्रेज ने कसौली में मिला दिए।

 कुनिहार -

 गोरखा युद्ध के बाद 1815 ई. में अंग्रेजों ने ठकुराई स्थाई रूप से एक सनद द्वरा मगन देव को सौंप दी। वर्ष 1817 ई. में यहाँ के शासक हरत्व सिह को पूर्ण अधिकार दे दिए गए।

बिलासपुर ( कहलूर )-

6 मार्च, 1815 ई. को अंग्रेजों ने शांत किया। उसने नियां मीरो और संसारू को प्रशासन को बागडोर सौंप दी और राजा को भी अपना व्यवहार सुधारने की चंतावनी दी। आँतम दिनों में खड़क चंद ने मियां से समझौता कर उनकी जागीरें लौटा दी। खड़क चंद की 1839 ई. में मृत्यु हो गई। उसका कोई पुत्र नहीं था। उसकी दोनों रानियाँ सती होने के लिए तैयार थे परंतु रसल क्लार्क ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और उन्हें उदारतापूर्वक अनुदान का वायदा किया। रसल क्लार्क ने मियां जगी को राजा बनाने की स्फिारिश 1839 ई. में सरकार को भेज दी। 21 अक्तूबर, 1847 को बिलासपुर के राजा को सतलुज के दाहिनी ओर स्थित उन क्षेत्रों पर राज्य का अधिकार प्रदान किया गया जो 1809 ई. से पूर्व उसके अधीन थे। राजा विजय चंद ने (1888-1903) ब्रिटिश पद्धति के अनुसार राज्य का प्रशासन चलाने का प्रयास किया परंतु अधिकारियों का सहयोग उसे प्राप्त नहीं हुआ। वह प्रशसन का कार्य मंत्री हरिचंद को सौंप बनारस चला गया म्यिा अमरचंद और अंग्रेज अधिकारियों ने प्रशासन के कार्य में मदद की।

 जुब्बल-

गोरखा युद्ध के पश्चात् 18 नवम्बर, 4400 रुपया वार्षिक भत्ता दिया जाने लगा। 1840 ई. में राजा की मृत्यु हो गई शक्तियों पर अंकुश लगान पड़ा। उसके बाद 1854 ई. में बालिग होने पर रागा कर्मचंद गद्दी पर बैठा। उसका शासन बहुत कठोर था इसलिए अंग्रेज सरकार को उसकी राजकीय

बघाट-

गोरखा युद्ध में बघाट के राजा का व्यवहार अंग्रेजों के प्रति मैत्रीपूर्ण नहीं था। इसके कारण 14000 रुपये की आय वाले पाँच परगने उससे छीनकर एक लाख तीस हजार रुपए में पटियाल के मियां जय सिंह के पुत्र ध्यान सिंह के पक्ष में निर्णय दिया।

हिण्डूर-

हिण्डूर के राजा रामशरण सिंह को 20 सितम्बर, 1815 ई. को सनद द्वारा पुस्तैनी सम्पति सौंप दी गई परंतु मलौण पुनः लौटा दिया गया और भरौली पर अंग्रेजों का पुन: अधिकार हो गया जस राजा ने 8500 रुपये में बलसन के राजा को बेच दिया।

 क्योंथल-

अग्ल गोरखा युद्ध के बाद 6 सितम्बर, 1815 ई. को क्याथल क राजा ससार सेन को सतद द्वारा राज्य वापिस कर दिया प्रबंध से वंचित कर दिया गया। 1840 ई. में उसे पुनः राज्य सौंप दिया गया। राजा बलबीर सिंह के शासनकाल में आन्तरिक अशांति के चलते 1899 ई. में अंग्रेजों ने यहाँ प्रबधक नियुक्त किया।

 कोटगढ़, कोटाखाई और रावीन-

कोटगढ़ (सन्टोक) और राबोन पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया। गोरखों से पूर्व कोटखाई कुल्लू के अधीन (40 वर्षों तक) था। गोरखों के गने के बाद कोटगढ़

पुनः कुल्लू के अधीन आ गया। अंग्रेजों में कोटगढ़ पर कब्जा कर कुल्लू के राज से इसे खाली करवाया।

  1. रावीन जो गहवाल की जागीर थी मृत्यु के बाद उसका बेटा भगवान सिंह गद्दी पर बैठा। उसके शासनकाल में अव्यवस्था फैल गई जिसके बाद अंग्रेजों ने 1828 ई. में शासन अपने हाथ में लेकर राजाको 1300 रु. वार्षिक पेंशन प्रदान की।

कुमारसेन-

गोरखा बुद्ध के बाद 7 फरवरी, उसके संबंधी प्रीतम सिंह को सन्द' के माध्यम से गद्दी पर बैठने का अधिकार प्रदान किया गया। राज्य में विद्रोह हुआ जिसके बाद शिमला के राजनीतिक प्रतिनिधि को राज्य का प्रबंध सौंपा गया। प्रीतम सिंह को राज्य 29 जून 1840 ई. को लौटा दिया गया तथा सनद में नुसलू'

, 'बडनुसतूं', 'बड़ बुत्तानु' तथा 'वृत्तानु' जैसे शब्द जोड़े गए। सती प्रथा और कन्या वध को रोकने का वचन राज ने दिया जो वहाँ की कुप्रथाए थीं।

थरोच-

31 जनवरी, 1619 ई. को ठाकुर छोबू को सनर द्वारा धरोच का गकुर मान लिया गया। छोबू को उसके अपने बेटे श्याम सिंह गया।

अन्य छोटी रियासतें-

1815 ई. में सनद द्वारा वाघल रियासत योगराज को, सांगरी राण विक्रमजीत को, दारकोटी राणा सुरतेस राम को और कुनिहार ठाकुर मगन देव का प्रदान किया गया।

अन्य पहाड़ी रियासतों से अंग्रेजों के संबंध

सिरमौर-

21 सितम्बर, 1815 ई. को एक सनद । फतेह प्रकाश के वयस्क होने तक शासन का कार्य गुलेरी रानी को कप्तान बुर्च (नहान दरबार में सहायक राज्य-प्रतिनिधि) की देखरेख में चलाने की आज्ञ दी। बर्च ने रानी को सलाह देने के लिए एक परिषद् का गठन किया और राज्य के दीवान किशन चंद को राज्य से बाहर निकाल दिया 5 जुलाई, 1826 ई. को फतेह प्रकाश ने सरकार से आवेदन किया कि गोरखा युद्ध के बाद क्षेत्र सिरमौर के राजा को रने से इंकार कर दिया। सरकार ने 5 सितम्बर, 1833 ई. को एक सनद द्वारा क्यारदा दून घाटी 50 हजार रुपये में फतेह चद को दे दी।

 Chamba-

नढ़त सिंह (1808-1844) के अमृतसर की संधि की जिसके अनुसार अंग्रेज ने रावी और सिधु के बीच सारे क्षेत्र गुलाब सिंह को 75 लाख में दे दिए जिसमें कश्मीर, लद्दाख, गिलगिल और चम्बा भी थे। चम्बा जो रावी नदी के दोनों ओर था (सिखों को कर देता था) ने गुलाब चम्बा से प्रति वर्ष 12000 रुपये लगान लेना निश्चित हुआ। भदावाह क्षेत्र राजा मान लिया गया। उसकी 1852 ई. में मृत्यु के बाद ज्ञान सिंह उत्तराधिकारी बना परंतु रखैल का पुत्र होने की वजह से अंग्रेजों ने उसकी पदवी "राजा' से बदल कर "राय" कर दी और उसके राजनैतिक अधिकार समाप्त कर दिए।

 मण्डी एवं सुकेत-

9 मार्च, 1846 ई. की लाहौर संधि ( का नाबालिग पुत्र विजय सेन राजा बना। उसने 1877 ई. के दिल्ली दरबार में भाग लिया। विजय सेन ने E.W. पुरकिस की देखरेख में अनेक विकास के कार्य किए। सुकेत ने सिख युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी। अतः उसे पुनः 1846 ई. में सनद प्रदान कर राज्य पर स्थाई वंशानुगत अधिकार दिए गए। मण्डी के राजा बलबीर सेन को लोहे व

नमक की खानों पर लगने वाले कर पर अंग्रेजों की बात मानने को कहा गया। सुकेत के राजा दुष्ट निकदंन सेन नाबालिग (1879 में) थे तो श्रीमान डोनाल्ड को 1884 में वजीर नियुक्त किया गया।

 नूरपुर-

1848 ई. में नूरपुर के वजीर राम सिंह दिया जहां उन दोनों

की मृत्यु हो गई। नूरपुर के राजा वीर सिंह के पुत्र जसवंत सिंह को 2000 रुपये की जागीर दे दी गई।



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