1857 Rewolt
1857 ई. से पूर्व की घटना
- लाहौर संधि से पहाड़ी राजाओं का हो गई। नूरपुर के वजीर राम सिंह पठानिया अंग्रेजों के लिए टेढ़ी खीर साबित हुए। उन्हें शाहपुर के पास "डाले की धार में अंग्रेजों ने हराया। उन्हें एक ब्राह्मण पहाड़चंद ने धोखा दिया। वजीर राम सिंह पठानिय को सिंगापुर भेज दिया गया जहाँ उनकी मृत्यु हो गई। हि.प्र. में कम्पनी सरकार के विरुद्ध विद्रोह की पहली चिंगारी 20 अप्रैल, 1857 ई. में कसौली सैनिक छावनी में भड़की जब अम्बाला राईफल डिपो के 6 देशी सैनिकों ने कसौली में एक पुलिस चौकी को आग लगा दी।
1857 ई. की क्रांति के कारण-
जनसाधारण में असंतोष-
अंग्रेज अधिकारियों द्वारा जनसाधारण के धार्मिक जीवन और सामाजिक रीतिरिवाजों में अनावश्यक हस्तक्षेप और पक्षपातपूर्ण नीतियों से लोगों में रोष फैल गया था।
पहाड़ी राजाओं में असंतोष-
शिमला पहाड़ी रियासतों में अनावश्यक हस्तक्षेप तथा काँगड़ा की पहाड़ी रियासतों के अनेक राजवंशों की समाप्ति से पहाडी राजाओं में असंतोष था।
देशी सैनिकों से पक्षपातपूर्ण व्यवहार-
कोई भी भारतीय सैनिक स्टॉफ अफसर नहीं बन सकता था। सरकार सैनिकों के सामाजिक और धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप करती थी। सेना का सबसे बड़ा भारतीय अफसर ब्रिटिश सेना के सबसे छोटे अंग्रेज अफसर के अधीन होता था। उन्हें भारत के बाहर भी लड़ने भेजा जाता था।
लार्ड डल्हौजी की लैप्स (व्ययगत) की नीति भी 1857 ई. की क्रांति का कारण भी।
Chambaवाले कारतूस-
नई राइफल जिसे एन्फील्ड राइफ़ल कहते थे उसमें गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस प्रयोग में लाए जाते थे जिसे प्रयोग करने से हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों ने इंकार कर दिया। यह राइफल 1857 ई. की क्रांति का तात्कालिक कारण थी।
शिमला क्षेत्र में 1857 ई. की क्रांति की शुरूआत-
11 मई, 1857 ई. को मेरट, अम्बाला और दिल्ली के
जनरल निकोलस पैन्नी के निर्देशानुसार 800 यूरोपीय स्त्री. पुरुष और बच्चे पहले चर्च और बाद में शिमला बैंक (ग्रैंड होटल) में एकत्रित हुए। शिमला के डिप्टी कमिश्नर लॉर्ड विलियम हे लोगों को सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थ रहे। यूरोपीय लोगों ने डगशाई सैनिक बैरकों एवं जुन्गा राजमहल में जाकर शरण ली। कुछ अंग्रेज धामी, कोटी, बलसन और बघाट के शासकों की शरण में आ पहुँचे। मेजर जनरल गोवन्ज ने 15 मई, 1857 ई. को परिवार सहित जुन्गा के राजा के पास शरण ली। कर्नल कीथयंग और कर्नल ग्रेटहैड ने भी परिवार सहित क्योंथल के राजा के पास शरण ली।
भीम सिंह के नेतृत्व में नसीरी बटालियन द्वारा विद्रोह-
जतोग में तैनात "नसीरी बटालियन उसक नेतृत्व में क्रांतिकारियों
ने कसौली खजाने एकब्जा क्यिा और अंजों से लड़ने के लिए जतोग की ओर बढ़े। अंग्रेज ने कुछ को पकड़ लिया. कुछ मुठभड़ मारे गएओर बढ़ते हुए गार्ग में बुद्धि सिंह ने स्वयं को गोली मार ली। 18 मई, 1857 ई. को 'कैप्टन मोफट' हगशाई से कैप्ट- ब्रुक और सपाटू से कर्नल कागरीव अपने अपने सैनिक दस्तो के साथ कसौली की सुरक्षा को पहुँच गए। 24 मई, 1857 ई. को जतोग की क्रांतिकारी नसी सेना ने सूबेदार भीम सिंह के नेतृच में बैठक का आयोजन कर कैप्टन डविड ब्रिग्ज (हिन्दुस्तान तिब्बत सड़क के सुपरिटेन्डेन्ट) और डिप्टी कमिश्नः विलिषम हे के प्रस्ताव पर किया। दिल्ली, मेरठ और अम्बाला के क्रांतिकारियों से सहयांग न मिलने के करण जोग की नसीरी सेना ने विद्रोह स्थगित करने का निर्णय लिया।
रामप्रसाद वैरागी-
शिमला में गुप्त संगठन अंग्रेजों के विरुद्ध कार्य कर रहा था जिसके नेता थे राम प्रसाद बैरागी। अम्बाला के कमिश्नर जी.सी.बाय को पकड़े जो रामप्रमाद बैरागी ने नसीरी बटालियन के सूबेदार को सहारनपुर त्था महाराजा पटियला के वकाल को अंग्रेजों का विरोध करने के लिए भेजे थे। रामप्रसाद बैरागी को गिरफ्तार कर अंबाला जेल ले जाया गया और वहाँ उसे फाँसी दे दी।
पहाडी रियासत का रूख
बुशहर रियासत नं 1857 ई. के विद्रोह के त्यागने का निण्य लिया। 7 जून, 1857 ई. को शिम्ला म्यूनिसिपल कमेटी के प्रेजीडेन्ट कर्नल सी.डी.ब्लेयर पंजाब के चीफ कमिश्नर लॉरेंस को पत्र भेज शिमला की सुरक्षा के लिए कैप्टन ब्रिग्ज को मार्शल-लॉ की शक्ति देने का आग्रह किया परिणामस्वरूप जन लॉरेंस ने निलिषम हे को डबल बैरल गन रियासत वाले 200 जवान 50 पुलिस और 100 देशी गार्ड दिए। विलियम हे ने 7 आस्त, 1357 ई. को कहला रियासत के 50 जवान बालूगंज में सिरमौर के 60 सैनिक कुंवर दोर सिंह के नेतृत्व में बड़ा बाजार में, रियासत क्योथल, धामी, भन्जी और कोटी के 60 सिपाही डिप्टी कमिश्नर के
आवास पर नियुक्त किए गए। इसके अलावा 250 जवान बघल, जुब्बल, कोटी, क्योंश्ल और भामी शासको ने आपातकाल के लिए नियुक्त किए।
सिरमौर रियासत-
जनरल जॉर्ज एनसन ने 11 मई, 1857 ई. को मिरमर रियासत के नाहन में तैनात सिरमौर बटालियन के गोरखा सैनिकों को अम्बाला कूच करने का आदेश दिया जिसे सैनिकों ने पालन करने से मना कर दिया। सिरमौर के राजा शमोर प्रकारा कंवल 11 वर्ष के थे। नाबालिग राजा की रारायता के लिए कुंवर सुर्जन सिंह और वीर सिंह के और पर्यटकों का आना जाना बन्द कर दिया गया। डिप्टी कमिश्नर टेलर ने 'शेरदिल पुलिस बटालियन'.के 100 जवानों को लेकर नूरपा विद्रोह को दबाने के लिए कूच किया, परंतु उनके पहुंचने से पहले ही 4 नेटिव इनफैन्टी के स्थानीय कमाण्डर मेजर बिल्की ने देशी सैनिकों को हथियार छोड़ने के लिए सहमत करव लिया। इस प्रकार अंग्रेजों ने नूरपुर और काँगड़ा के किलों को पूर्ण रूप से अपने अधिकार में ले लिगा। सुजानपुर टीहरा का कटोच राजा प्रताप चंद भी गुण रूप से अपने किले में क्रांति की तैगरी कर रहा था जिसमें उसकी मदद टीहरा का क्रांतिकारी थानेदार कर रहा था।
कुल्लू क्षेत्र में बगावत-
कुल्लू क्षेत्र में जनक्रांति की योजना का नेतृत्व होकर सिराज पहुँचा और कुछ समय बाद स्वस्थ हो गया। अंग्रेज उसे मरा समझते थे। उप्सने 16 मई, 1357 ई. में सारे सिराज क्षेत्र में आज़ादी की भावन जागृत की जिसमें उसका मुख्य सलाहकार व सहयोगी उनका साला मियाँ चीर सिंह (बैजनथ, कांगड़ा का निवासी) था। प्रताप सिंह और उसके साथी वीर सिंह को गिरफ्तार कर धर्मशाला में 3 अगस्त, 1857 ई. के फौसी दे दी गई।
चम्बा रियासत-
चम्या के नागरिकों ने 857 ई. के विद्रोह से डलहौजी मे बसे अँग्रेज भयभीत हो गए। कुछ महिलाओं और बच्चे ने चम्बा के राजा के पास शरण ली डलहौजी की सुरक्षा के लिए म्यिा अतर सिंह के नेतृत्व में एक सैनिक टुकड़ी भेजे गई।
मण्डी रियासत-
1857 ई. के विद्रोह के समय मण्डी रियासत के राजा विजय सेन केवल दस वर्ष के थे। अंग्रेजों ने वजीर गोसाऊं को मण्डी स्टेट
का वजीर व प्रशाप्तक बनाया। स्टेट्स के कमिश्नर एडबड
जॉन लेक के आदेश पर नालागढ़ की सुरक्षा के लिए प्रदान किए। वजीर गोसाऊ ने 50 जवान जालन्धर के विद्रोह को दवाने के लिए ब्रिटिश सरकार को अपने व्यक्तगत खाते से प्रदान किए।शुद्ध आर्थिक सहायता के रूप में मण्डी रियामत ने 1 25 1000 रुपये ब्रिटिशर सरकार को भेंट किए।
हिमाचल में विद्रोह का अंत-
14 अगस्त, 1857 ई. तक शिमला, काँगड़ा, कुल्लू, नालागढ़ और अन्य पहाडी रियासतों में क्रांति के शोले धीमे पड़ चुके थे। इस क्राँति में 50 हिनावली क्रांतिकारियों को फाँसी, 500 को जेलों में बंद तथा 30 को देश निकाला दिया गया था तथा उनकी सम्पनियाँ जब्त कर ली गई।
1857 के बाद हि.प्र. में संवैधानिक एवं प्रशासनिक विकास-
1857 ई. की क्रांति के बाद हिमचल एवं में की। शिमला में भी इसका
प्रकाशन हुआ तथा शहर के मुख्य स्थानों पर इसे चिपकाया गया।
1858 के अधिनियम के अनुसार हिमाचल की प्रशासनिक व्यवस्था (Administrative system in व्यवस्था लागू की-
उस समय हिमाचल में दो प्रकार का शासन प्रबन्ध प्रचलित था। पंजाब हिल स्टेट्स में नूरपुर, काँगड़ा, जसंवा, गुलेर, सिब्बा, दातारपुर, कोटला, कुल्लू,भंगाहल, लाहौल और स्पीति की रियासतें अपना स्वतन्त्र अस्तित्व ख चुकं थीं। अंग्रेजों ने इन रियासतों को जीत कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया था। इन सभी रियासतों के क्षेत्र को संगठित करके एक प्रशासनिक ईकाई के रूप में 'जिला काँगड़ा' बना दिया गया। इसका प्रशासन टिटी कमिश्नर काँगड़ा के नियंत्रण में था।
इसके अतिरिक्त शिमला हिल स्टेट्स में जतोग, स्पाटु, कसौली, डाशाई, कोटखाई, भरौली, सनावर एवं शिमला शहर के अलग-अलग क्षेत्रों को मिलाकर 'जिला शिमला' बना दिया गया था, जो डिप्टी कमिश्नर शिमला के नियंत्रण में था। उपरोक्त जिला काँगड़ा जिला शिमला और चम्बा रियासत का डलहौजी एवं बकलोह छावनी क्षेत्र अंग्रेजों के प्रत्यक्ष नियंत्रण में थे।
देशी शासकों के अधीन लघु राज्यों में शिमला हिल स्टेट्स और सतलुज के आर-पार की रियासतें आती थीं। शिमला हिल स्टेट्स में बुशैहर, क्योंथल,जुब्बल, कुमारसैन, कुनिहार, बाघल, बघाट, बलसन, शागरी, कुठाड़, बेजा, भज्जी, दारकोटी, धामी, मागल, महलोग, थरोच नालागढ़, खनेटी, देलठ, ठियोग, पूंड, मधान, रतेश और रावी रियासतें आती थीं और इनमें देशी शासकों का प्रशासन था। छोटी ठकुराइयों में करांगला, खनेटी, भरौली, देलठ और शांगरी आदि बुशैहर रियासत के अधीन थीं। इस प्रकार रावी, ढाडी और सारी पर जुब्बल के शासक का आधिपत्य था। ठियोग, पूंड, मधान,रतेश और कोटी के शासक क्योंथल राज्य के अधीन थे।
इन ठकुराइयों का अपना-अलग और स्वतन्त्र अस्तित्व कभी नहीं रहा था। ये ठकुराइयां प्राय: बड़े राज्यों, जैसे बुशहर, सिरमौर, नालागढ़, क्योंथल,बिलासपुर और जुब्बल के प्रशासकों के प्रभुत्व में थी। यद्यपि इन रियासतों ने अंग्रेजों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया परतु ये अपने आन्तरिक शासन में स्वायत्त थी। ब्रिटिश सरकार ने इनके नियन्त्रण के लिए सुपरिटेंडेंट और कमिश्नर, शिमला हिल स्टेट्स को नियुक्त किया।
सतलुज पार की कुछ रियासतों में मण्डी, सुकेत, बिलासपुर, चम्बा और कुटलैहड़ में भी देशी राजाओं का शासन था। अंग्रेजों के प्रभुत्व में इनके नियन्त्रण के लिए 'सुपरिटेंडेंट सिस-सतलुज स्टेट्स' की नियुक्ति की गई थी। इन सभी रियासतों पर पंजाब सरकार द्वारा नियुक्त ब्रिटिश अधिकारियों का नियन्त्रण रहता था। इस विभाग के अधिकारी; जैसे पॉलीटिकल रेजिडेंट्स, एजेन्ट्स और सुपरिटेंडेंट रियासतों के प्रशासन का निरीक्षण रखते थे। ये सभी अधिकारी वायसराय के प्रति उत्तरदायी थे।
भारत सरकार अधिनियम, 1858 के अन्तर्गत् हिमाचल की सभी रियासतों के शासकों को अपने राज्यों के आन्तरिक शासन प्रबन्ध में स्वायत्तता प्रदान की गई।
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