गोरखा आक्रमण
गोरखा आक्रमण-गोरखा आक्रमण का मुख्य उद्देश्य अत्र विस्तार था। जीती हुई भूमि गोरखा सैनिकों को इनाम के तौर पर मिलता या माग के दौरान अनेक किलों का निर्माण हुआ।
गोरखों को निमंत्रण-
नेपाल नरेश रणबहादुर शाह ने की और भाग गया। अमर सिंह थापा ने 1810 ई. में हिण्डूर, पुण्डर, जुब्बल और धामी को अपने अधीन कर लिया। गोरखाँ ने 1806 ई. में महलमारियों में संसार को हराया और काँगडा किले में छिपने पर मजबूर कर दिया। अमर सिंह थापा ने मण्डी के राजा झवरी को संसारचंद की कैद से 12 वर्ष बाद नादौन जेल से मुक्त करवाया। अमर सिंह थापा ने बाघल के अर्की में अपना मुख्यालय स्थापित किया। अकी का राजा जगत सिंह वनवास चला गया था। मई, 1811 ई. में ठकुराइयों को 1812 ई. में अपने अधीन कर लिया। अमर सिंह थापा ने 12000 रुपये वार्षिक कर के बदले बुशहर के नाबालिग राजा की सराहन के आगे का प्रदेश सौंप दिया और स्वयं अर्की लौट आया।
गोरखा-ब्रिटिश युद्ध-1
नवम्बर, 1814 ई. को अंग्रेजों ने अंग्रेज की चार टुकड़ियाँ बनीं-गिलेस्यी, मार्टिनडेल, विलियम फ्रेजर और ओक्टरलोनी ने इन टुकड़ियों का नेतृत्व किया।
गिलेस्पी और बलभद्र थापा-
मेजर जनरल रोला गिलेप्पी ने 4400 बलभद्र थापा ने देहरादून छोड़ कलिंगा में मोर्चाबंदी की। अंग्रेजों ने कलिगा का किला जीत लिया। इस अभियान में गिलग्गी बुरी तरह घायल हुआ।
मार्टिनडेल और रंजौर सिंह-
रंजौर सिंह ने अंग्रेजों का सामना को घेर लिया। रंजीर सिंह ने मार्टिनडेल को यहाँ बुरी तरह पराजित किया।
जेम्स बेली फ्रेजर
जेम्स बेली फ्रेजर ने 500 सैनिकों के कर दिया। रावींनगढ़ किले पर रणसूर थापा का कब्जा था। डांगी वजीर और बुशहर के वजीर बद्रीदास और टीकमदास ने रावीनगढ़ किले पर आक्रमण कर दिया। संधि वार्ता के बाद गोरखों ने किला खाली कर दिया और फ्रेजर की सेना ने वहाँ मोर्चा संभाल लिया। रामपुर कोटगढ़ क्षेत्र में गोरखा सेना का नेतृत्व कीर्ति राणा कर रहा था। बुशहर की सेना का नेतृत्व बद्रीदास और टीकमदास कर थे। कुल्लू की सेनाएँ भी 1815 ई. में उनसे आ मिलीं। कीर्ति राणा हाटू किले में घिर गया। उसने आत्मसमर्पण कर अपनी जान बचाई।
मेजर जनरल डेविड ओक्टरलोनी-
मेजर जनरल डेविड ओक्टरलोनी ने ई. को रामगढ़ किले पर आक्रमण किया गया जिससे अमर सिंह थापा को मलौण किले में जाना पड़ा। अंग्रेजों ने रामगढ़ किले पर कब्जा कर लिया। मलौण किले में बहादुर भक्ति थापा की मृत्यु और गोरखों की कुमाऊँ पराजय ने अमरसिंह समर्पण और अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति सहित नेपाल जाना अमरसिंह थापा ने स्वीकार कर लिया।
सझौंली की संधि (1815 ई.)-
मुंगोली की संधि (28 नवंबर, 1815 ई.) द्वारा गोरखा-ब्रिटिश युद्ध की समाप्ति हुई तथा गोरखों ने वापिस नेपाल जाना वांकार कर लिया। इस संधि द्वारा दोनों राज्यों की सीमाएँ निश्चित हो गई। नेपाल के सिक्किम राज्य के समस्त अधिकार वापस ले लिए गए। अंग्रेजों को बाती नदी से सतलुज के बीच के गढ़वाल,कुमाऊँ, शिमला पहाड़ी रियासत एवं तराई के अधिकांश भाग प्राप्त हुए। नेपाल की राजधानी काठमाडू में एकऔर रेजीडेंट रखा गया। गोरखों ने 1816 ई. में सुगौली की संधि की शर्तो को स्वीकार कर लिया।
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