आल इण्डिया स्टेट पीपुल कांफ्रेंस
17 दिसम्बर, 1927 में बम्बई में 'आल इण्डिया स्टेटस पीपुल कांफ्रेंस" (अखिल अधिवेशन में शिमला की पहाड़ी रियासतों से प. पद्मदेव, भागमल सौहटा थे। मण्डी से स्वामी पूर्णानन्द,सिरमौर से ठाकुर हितेन्द्र सिंह बिलासपुर से सदाराम चन्देल, चम्बा से विद्या सागर, विद्याधर, गुलाम रसूल और पृथ्वी सिंह ने भाग लिया। इसके पश्चात् इन पहाड़ी रियासतों में तेजी से प्रज मण्डल बनने लगे।
सिरमौर में प्रजा मण्डल का गठन
“सिरमौरी एसोसिएशन' का सदस्य बनकर अपने आंदोलनकारी जीवन का आरम्भ किया। रियासत के भीतर राजेन्द्र दत्त आदि इसका संचालन करते रहे। 1934 ई. में सिरमौर रियासत में कुछ लोगों ने एक सिरमौर प्रजा मण्डल की स्थापना की। इसमें डॉ. देवेन्द्र सिंह, रामनाथ और आत्मा राम संस्थापक सदस्य बने। प्रजा मण्डल के लोगों को आतंकित करने के लिए रियासती सरकार ने डॉ. देवेन्द्र सिह, हरी चन्द पाधा, आत्माराम, इन्द्र नारायण और उनके साथियों पर मुकदमे चलाए। उन पर महाराजा को जान से मारने तथा उनकी कार पर पत्थर फेंकने के झूठे आरोप लगाए गए। इन दिनों यशवन्न सिंह परमार सिरमौर के डिस्ट्रिक्ट और सेशन थे। उन्होंने इस केस से संबंधित अपने फैसले में प्रजा मण्डल वालो का पक्ष लिया और उन पर लगे महाराजा की हत्या
किया और उन्हें लोकतान्त्रिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार किया।अपने अधिकारों के बारे में जागृति पैदा करना था। इस भावना को लेकर पं. भास्करनन्द ने भन्जी में सूरत राम प्रकाश ने ठियोग में तथा भागमल
सौहटा ने जुब्बल में प्रजा मण्डलों का गठन किया। रियासत कोटी, कुमारसैन ने किया। बाद के वर्षों में नेगी ठाकुरसैन ने भी प्रजा मण्डल में सक्रिय रूप से भाग लेना आरम्भ किया। इसके साथ-साथ ही बिलासपुर, जुब्बल और अन्य क्षेत्रों के प्रजा मण्डलों ने भी अपनी-अपनी गतिविधियाँ तेज कर दीं। इसमें जुब्बल के भागमल संहटा और बिलासपुर के दौलत राम सांख्यान ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
चम्बा सेवक संघ-
इसके परिणामस्वरूप जन आंदोलन ने जोर पकड़ा तो कर व्यक्तियों को पकड़ लिया गया। गाँधी जी ने अहिंसा से आंदोलन चलाने के लिए कहा। अंग्रेज के समाचार पत्र "दी ट्रिब्यून' ने सम्पादकीय में लिखा "सोये हुए नम्ना में जागृति आ गई है। लोकतान्त्रिक विचार पहाड़ो अवरोध को पार काके रियासत के लोगों के पास पहुंचे हैं और वे उररदापी सरकार के लिए माँग कर रहे हैं।"
पहाड़ी रयाप्ततों में यह दूसरा प्रजा मण्डल था। स्वामी पूर्णानन्द इसके अध्यक्ष बने। इनके साथ राम चन्द मल्होत्रा, बलदेव राम, हरसुखराय, सुन्तरलाल और मोती राम प्रमुख थे। बाद में कृष्ण चन्द्र, तेज सिह निधड़क, केशव चन्द्र, पद्मनाथ और हेम राज भी प्रज मण्डल के सदस्य बन गए। मण्डी के रजा ने प्रजा मण्डल की गतिविधियों पर पाबन्दी लगा दो।
धामी प्रेम प्रचारिणी सभा-
धामी रियासत के शिमला के निकट होने के करण यहाँ के बहुत से लग शिमला में नौकरी करते थे। उन्होंने अपनी रियासत में सुधार लाने के उद्देश्य से 1937 ई. में एक के पास कैमली स्थान पर शिमला पहाड़ी रियासतो के प्रजा मण्डलों की एक बैठक हुई। इस बैठक में धामी रियासत की "प्रेम प्रचारिणी सभा'' को "धामी प्रज मण्डल" में बदल दिया गया। धमी के पं. सीता राम को इस संगठन का प्रधान नियुक्त किया गया। इस अवसर पा धामी प्रजा मण्डल की और से एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें राण धामी से निम्नलिखित माँग को गई
इस प्रस्ताव में व्यक्त किया गया कि यदि रियासत के शासक की ओर से उनके माँग पत्र पर शीघ्र कोई उत्तर नहीं मिला तो 16 जुलाई को सत व्यक्तियो का एक शिष्टमण्डल हलोग आकर राणा से मिलेगा। मंशा राम के विशेष प्रतिनिधि बनाकर यह माँग पत्र राणा के पास धामी भेजा गया। राणा ने इस पत्र को अपना अपमान समझा। उसने प्रजा मण्डल की माँग स्वीकर न्हीं की और प्रताठ का उत्तर नहीं दिया। उत्तर न पाने पर यह नय किया गया कि पूर्व निर्धारित तिथि 16 जुलाई को भागमल सौहटा शिगला से भागी के लिए प्रस्थान करेंगे और भागी को राजधानी हलेग से लगभग डेढ़ मल दूर खेल के मैदान में उनकं स्वागत में लोग इकट्ठे होंगे। वहीं शेष छ। प्रतिनिधि हीरा सिंह पाल, मंशा राम चौहान, पं. सीत रामके नेता भगमल मौहटा को हिरासत में ले लिया और धार्मी ले गए। सत्याग्रहियों के स्वागत हेतु इकट्ठे हुए लेग राणा के विरुद्ध नारे लगाते हुए रागा के निवास स्थान के पस नहुँचे। राणा ने भयभीत होकर भीड़ को तितर-बितर करने के लिए गोली चलाने के आदेश दे दिए। इससे वहाँ खलबली मच गई और बहुत से लोग बुरी तरह से घायल हो गए। दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। सत्याग्रह के नेता भागमल सौहटा को गिरफ्तर करके अम्बाला भेज दिया गया।
कुनिहार प्रजा मण्डल-
शिमला हिल स्टेट्स प्रजा मंडल के नेता 8 जुलाई, 1939 ई. को कुनिहार रियासत गए। वहाँ पर उन्होंने काशीराम के साथ कई लोगों को प्रजा मण्डल का सदस्य बनाया दिया। इसमें पं. पद्मदेव को प्रधान और भागमल सौहटा को महामन्त्री बनाया गया। जून 1939 ई. में पं. पद्मदेव तो शिमला से आर्य समाज का जत्था लेकर हैदराबाद चले गए और शिमला की पहाड़ी रियासतों में प्रजा मण्डल के प्रचार और प्रसार का काम भागमल सौहटा ने अपने हाथ में लेकर आगे चलाया। जुलाई 1939 में शिमला का पहाड़ी रियासतों में प्रजा मण्डल संगठन की स्थापना का अभियान चलाया गया। इसी मास के आरम्भ में भागमल सौहटा, हीरा सिंह पाल, देव सुमन ने महलोग रियासत में“प्रजा मण्डल महलोग" की स्थापना की।
हिमाचल हिल स्टेट्स कौंसिल—
सन् 1945 के अन्त में उदयपुर में “आल रियासतों के चालीस से अधिक प्रतिनिधि उपस्थित हुए। प्रजा मण्डल सिरमौर के नेता का राजेन्द्र दत्त, शिवानन्द रमौल, डॉ. देवेन्द्र सिंह, हितेन्द्र सिंह, धर्म नारायण, हरीचन्द्र पाधा और उनके सहयोगी आंदोलनकारियों द्वारा आयोजित इस सम्मेलन से सिरमौर रियासत में अभूतपूर्व जागृति पैदा हुई, जिससे रियासती सरकार की जड़ें हिल गईं। इसी काल में चिरंजी लाल ने वापिस शागरी जा कर वहाँ बेगार के विरुद्ध आंदोलन आरम्भ किया। इसी वर्ष ज्ञान चंद टूटू कोहिस्तान प्रजा मण्डल के प्रधान बने। नवम्बर 1946 ई. में सत्यदेव बुशैहरी बुशैहर प्रजा मण्डल के प्रधान बने। इसी काल में भागमल सौहटा ने रियासत जुब्बल में प्रजा मण्डल आंदोलन को विशेष गति प्रदान की। जय लाल शरखोली. मास्टर राम रतन, मियां काहन सिंह आदि ने भी इस आंदोलन में भाग लिया। बलसन रियासत में तो इस आंदोलन ने उग्र रूप धारण किया। फरवरी 1947 ई. में भज्जी के लीला दास वर्मा, बिलासपुर के कांशीराम उपाध्याय और प्रजा रीजनल कौसिल की बैठक शिमला में हुई। इस बैठक में कौसिल के पदाधिकारियों के चुनाव हुए। डॉ. यशवन्त सिंह परमार को इसका प्रधान और पं. पद्मदेव को इसका महामन्त्री निर्वाचित किया गया। अप्रैल 1947 में डॉ. परमार दिल्ली से दौलत राम सांख्यायन, नरोत्तम शास्त्री, लीला दास वर्मा, शिवानन्द रमौल आदि के साथ कांग्रेस के ग्वालियर अधिवेशन में भाग लेने के लिए गए।
हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल कौंसिल-
10 जून, 1947 ई. को हिमालयन हिल स्टेट्स कुल्लू में स्थित आनी चला गया। अगस्त 1947 में सिरमौर प्रजा मण्डल ने नाहन में एक बड़ा सम्मेलन किया। इसके मुख्य आयोजक पं. राजेन्द्र दन,डॉ. देवेन्द्र सिंह,धर्म नारायण वकील, पं. शिवानन्द रमौल थे। इस सम्मेलन में सिरमौर के राजा गजेन्द्र प्रकाश ने भी भाग लिया। सम्मेलन में हिमालयन हिल स्टेट्स सब-रीजनल कौंसिल के अध्यक्ष डॉ. यशवन्त सिंह परमार की सभापति बनाया गया और उन्होंने राष्ट्रीय झंडा लहराया। नवम्बर 1947 ई. से डॉ. यशवन्त सिंह और पं. पद्मदेव ने सुकेत रियासत के दौर आरम्भ किए। मण्डी में रियासत की और से प्रजा मण्डलों में भाग लेने वालों पर बहुत ज्यादतियां की जाने लगी और कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी कर लिया गया। सुकेत की रियासती सरकार ने भी अांदोलनकारियों का दमन करना शुरू कर दिया। प्रजा मण्डल के प्रधान रत्न सिंह और उनके कुछ साथी भाग कर.शिमला पहुँचे और यहाँ से वे लोग दिल्ली गए। वहाँ पर वे प. जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल से मिले। हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल कौसिल के प्रधान डॉ. अशवन्त सिंह परमार भी उनके साथ थे। केन्द्रीय नेताओं ने रियासतों में उत्तरदायी सरकार बनायें। 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार के राज्य मन्त्रालय की प्रजा मण्डल कार्यकर्ताओं के सथ सहानुभूति होने से राजाओ ने भी नाजुक स्थिति देखकर अपने रियासतों में उत्तरदायी सरकार स्थापित करनी आरम्भ कर दो।
प्रतिनिधि सरकारें-
कनिहार के ठाकुर ने इस आंदोलन की बहुत लोगों की शिकायतें सुनना और उन्हें दूर करना था। बाद में एक प्रतिनिधि सरकार बना दी गई, जिसके मुख्यमत्र भागमल सौहटा तथा जयलाल शरखोली, वशेर चन्द नेगी, बाबू दूल राम भेजटा और कुंवर रघुवर सिंह मन्त्री बने। यह मन्त्रिमण्डल 15 अप्रैल, 1948 तक कार्य करता रहा। कोटी के राणा ने 25 नवम्बर, 1947 ई. को एक विधानसभा स्थापित करने की घोषणा की। बुशैहर में सत्य देव बुशैहरी ने गार्च, 1947 में ही सत्याग्रह आंदोलन आरम्भ कर दिया प जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को पत्र लिखे कि पहाड़ी रियासतों को पूर्वी पंजाब में मिला दिया जाए परंतु इन रियासतों के राजाओं तथा लोगों ने इसका डटकर विरोध किया। इन राजाओं तथा प्रजा मण्डल के लोगों का कहना था कि इन रियासतों के लंग भाषा, संस्कृति और सामाजिक व्यवहार की दृष्टि से पंजाब के लोगों से एकदम अलग हैं। यही बात पं. जवाहर लाल नेहरू तथा सरदार बल्लभ भाई पटेल ने पंजाब के गवर्नर चन्दू लाल त्रिवेदो और गोपीचन्द भार्गव के पत्रों के उत्तर में लिखी। इसलिए शिमला की पहाड़ी रियासतों के राजा जनवरी 1948 ई. के प्रथम सप्ताह में दिल्ली में इकट्ठे हुए और आगे का कार्यक्रम बनाया। बैठक में इन राजाओं ने यह प्रस्ताव पारित किया कि "पूर्ण रूप से विचार करने के पश्चात् यह निर्णय लिया गया है कि लोगों की भावना और भलाई को ध्यान में रखते हुए शिमला की सभी पहाड़ी रियासतों को एक संघ के रूप में संगठित किया जाए"। इसलिए सभी रियासतों को संदेश भेजे गए कि वे अपने-अपने प्रतिनिधि चुनकर 26 जनवरी, 1948 तक सोलन भेजें ताकि संविधान बनाने वाली समिति की बैठक में भाग ले सकें। इसी अवधि में बघाट का राजा दुर्गा सिंह तथा मण्डी के राजा जोगेन्द्र सेन दिल्ली में थे। वे दोनों वहाँ महात्मा गाँधी से मिले गाँधी जी ने उन्हें सलाह दी कि वे प्रजा मण्डल और राजाओं के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाकर अपने भविष्य के बारे में फैसला करें।
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