HP Hstory part 4.5

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National Movement in Himachal Pradesh

जन आदोलन-

बुशैहर रियासत में दुम्म-

जब कभी राजा कोई ऐसा काम करता या भूमि का श्यामलाल ने उस समय जगीन का बंदोबस्त किया और नकदी लगान निश्चित किया। इससे पहले भूमि उपज के रूप में पैदावार का निश्चित भाग, अन्न, घी, तेल, ऊन, भेड़-बकरी आदि प्राचीन प्रथा के अनुसार राज्य को कर के रूप में देने पड़ते थे। इस आंदोलन का संबंध तत्कालीन राज्य-व्यवस्था से भी था। इन्हीं वर्षों में खानदानी वीरों की प्रथा समाप्त कर दी थी। अत: किनौर के पुआरी वजीरों ने भी इस आंदोलन को तूल दी। मालगुजारी देने के लिए उस समय मुदा का भी अभाव रहता था। इस दूम्ह आदोलन को समाप्त करने के लिए अंग्रेज को गम्भीरता को देखते हुए तीनो माँगें नाइस आदोलन को दबा दिया। आंदोलनकारियों के कुछ नेताओं को बन्दी बना दिया। 1898 ई. में ही ठियोग-ठकुराई में बन्दोबस्त में गड़बड़ी के विरोध में किसानों ने आंदोलन किया और उन्होंने बेगार देने से इंकार कर दिया। रियासतो सरकार ने अंग्रेज सरकार की सहायता से लोगों को शान्त किया।


बाघल में भूमि आंदोलन-

1897 ई. में बाघल आरम्भ तो राज परिवार के अपने घपले से आरम्भ हुआ परंतु बाद में क्षेत्र के सभी कनैत तोगं ने राजा के प्रतिनिधि, शासक और उसके भाई के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। लोगों ने बढ़ा लगान देना बन्द कर दिया। राज्य में अशान्ति फैल गई। अन्त में शिमला की पहाड़ी रियासतों के अंग्रेज सुपरिटेंडेंट ने बाघल की राजधानी अर्की जाकर इसमें हस्तक्षेप किया और आदोलनकारियों को न्याय का आश्वासन

रियासतों के अँग्रेज अधिकारी के आदेश पर 1906 ई. में पकड़कर शिमला लाया गया और बन्दी बना लिया गया। उसने हड़प की गई राजकीय आय को वापस करना स्वीकार कर लिया। वहाँ बीमार होने पर उसे कैद से मुक्त कर दिया गया। उसकी मृत्यु शिमला में ही हो गई।


 कुनिहार में किसान आंदोलन तथा बेगार के विरुद्ध आंदोलन–

1920 ई. में कुनिहार रियासत में किसानों ने प्रशासन के अत्याचारों के विरोध में

आंदोलन किया। लोगों ने राणा शिथिल पड़ता गया और खड़क सिंह अपने परिवार सहित खनेटी ठकुराई में जाकर बस गया। 1927 में फिर मियां खड़क सिंह ने खनेटी से पुनः इस आंदोलन को चलाया। इस बार इसमें राणा के पुत्र कर्मचन्द और राजमाता ने भी खुले रूप में जनता का साथ दिया। इस आंदोलन को दबाने के लिए राणा ने अंग्रेज सरकार से का विरोध किया। अंत में राजा ने उसे हटाकर उसके स्थान पर धंगुल को वजीर बना दिया। इसने भी उच्चवर्ग के लोगों से भारी दण्ड वसूल करने शुरू कर दिए। एक दिन धंगुल वजीर पहाड़ी क्षेत्र के दौरे पर गया। वहाँ पर लोगों करसोग केआंदोलन कारियों को हिरासत में ले लिया। लोगों ने प्रशासन से अहसयोग आंदोलन की नीति अपनाई। दोबारा जाँच करने पर राजा को 1879 में गद्दी से हटा दिया। आंदोलन का नेता मियां शिव सिंह काँगड़ा से वापस आ गया। आंदोलनकारियों की माँग पर लगान में कमी कर दी गई। 1924 का सुकेत आंदोलन-1924 ई. में सुकेत के राजा लक्ष्मण सैन (1919) के समय में जनता से आवश्यकता से अधिक लगान लिया जाता था। बेगार प्रथा बड़े जोरों पर थी। जो 1924 को सेना मंगवाई। अंग्रेज गोरखा और पेशावरी सिपाहियों के साथ सुन्दरनगर आए। धर्मशाला से भी कर्नल मीचिन कुछ सैनिकों को लेकर आया। स्थिति को नाजुक देख कर रत्न सिंह ने लोगों को शान्त रहने को कहा। रत्न सिंह और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और लोगों को डरा कर तितर-बितर कर दिया। 42 व्यक्ति पकड़े गए। उन्हें जालन्धर, लायलपुर,

मुल्तान, में रोष बढ़ गया और उन्होंने लगान देने से साफ इंकार कर दिया। लोगों ने सभायें की और जलूस निकाले। लोगों ने कर्मचारियों के काम में बाधा डालनी आरंभ की। अशांति और गड़बड़ी की स्थिति में अंग्रेज सरकार ने हस्तक्षेप किया। शिमला से सुपरिंटेंडेंट हिल स्टेट्स स्वयं पुलिस दल लेकर नालागढ़ पहुँचे। जन आंदोलन का दमन करके उसके नेता को पकड़ लिया

और भीड़ को भगा दिया। लोगों ने अपनी माँगें मनवा लीं और राजा ने अंत में वजीर को निकाल दिया और लगान कम कर दिया। 1918 ई. में नालागढ़ के पहाड़ी क्षेत्रों में चरागाहों तथा वन संबंधी कानूनों के विरोध में जन आंदोलन हुआ। राजा जोगिन्द्र सिंह तथा उसका वजीर चौधरी राम जी लाल इस आंदोलन को दबा न सके। अन्त में अंग्रेज सरकार ने अपनी सेना भेजकर आंदोलन को दबा दिया। सक्रिय आंदोलनकारियों को जेल में डाल दिया। इसके पश्चात् लोगों ने रियासती सरकार से असहयोग की नीति अपनाई। विवश होकर सरकार ने लोगों की शिकायतें दूर कर दी और कानून बदल दिए। इस प्रकार वहाँ शान्ति-व्यवस्था स्थापित हो गई।


चम्बा का किसान आंदोलन—

राजा शाम सिंह (1873-1904) के समय में से भाग लिया। लोगों ने लगान देने से इंकार कर दिया तथा लगान वसूल करने वालों को गाँव में घुसने नहीं दिया। उन्होंने बेगार सेवा देनी भी बंद कर दी। कई महीनों तक यह असहयोग आदोलन चलता रहा। जब प्रशासन इसे दवा नहीं सका, तो अंग्रेज सरकार ने हस्तक्षेप किया। आदोलन की लाहौर के कमिश्नर ने जाँच की। आंदोलन के मुखिया बलाणा गाँव के लारजा, बस्सी और बिलू को पकड़ कर दण्डित किया गया। कई आंदोलनकारियों को बन्दी बनाया गया। इस प्रकार आंदोलन को सख्ती से दबा दिया गया।


बिलासपुर में जन आंदोलन–

1930 में बिलासपुर में भूमि बन्दोबस्त के कौंसिल के अध्यक्ष पी.एल. चन्दूलाल ठीक प्रकार से न संभाल सके और लोगों में असंतोष फैल गया। इस पर आंदोलनकारियों से निपटने के लिए लाहौर से रेजीडेन्ट जैम्स फिट्ज पैट्रिक के सचिव पर एडवर्ड वेकफील्ड को कुछ और सैनिकों को देकर बिलासपुर भेजा गया। पुलिस नम्होल गाँव में मेले के अवसर पर एकत्रित कुछ आंदोलनकारियों को पकड़ कर बिलासपुर ले गई। कुछ आंदोलनकारियों को हिरासत में ले कर जेलों में बंद कर दिया गया। पुलिस द्वारा इस बगावत में डण्डा चलाने के कारण इस आदोलन का नाम 'डाण्डरा' आंदोलनपड़ गया।


मण्डी में किसान आंदोलन–

1909 ई. में मण्डी में राजा भवानी सेन ( कर लिया। अन्त में शोभाराम के नेतृत्व में 20 000 के लगभग किसानों का जलूस मण्डी पहुँचा। उत्तेजित किसानों ने तहसीलदार हरदेव और अन्य अधिकारियों को पकड़कर जेल में बन्द कर दिया तथा कचहरी और थाने पर कब्जा कर लिया। रियासत का प्रशासन अस्त-व्यस्त हो गया। सब जगह शोभाराम का आदेश चलने लगा। राजा भवानी सेन ने विवश होकर बर्तानवी सरकार से सहायता माँगी। के पश्चात् दोषियों को पकड़कर सजा दी गई। उनका नेता सिद्ध खराड़ा भाग कर हमीरपुर चला गया परंतु बाद में मण्डी षड्यंत्र विवाद में पकड़ा गया और उसे सात वर्ष की सजा हुई।


सिरमौर का भूमि आंदोलन 

राजा शमशेर प्रकाश के काल में 1878 ई. में प्रदर्शनकारी वापस घर चले गए और उनके नेता अछबू और प्रीतम सिंह को शिमला सुपरिटेंडेंट ने पकड़ कर राजा के पास नाहन भेज दिया। दूसरे विद्रोहियों को भी पकड़कर नाहन लाया गया और उन्हें सजा दी गई। इसके बाद बन्दोबस्त का काम ठीक प्रकार से चलने लगा। मई 1929 ई. में सिरमौर में मनमाने ढग से किए गए भूमि बन्दोबस्त के विरोध में पांवटा और नाहन के लोगों ने पं. राजेन्द्र दत्त के नेतृत्व में आंदोलन किया। पांवटा के लोगों ने राजा अमर प्रकाश तथा अंग्रेज सरकार को विज्ञापन भेजे। पांवटा किया। इसके प्रधान लक्ष्मी सिंह गाँव कोटला तथा सचिव वैद्य सूरत सिंह चुने गए। इसके अतिरिक्त टपरौली गाँव के मियां गुलाब सिंह और अतर सिंह, जडोल के चूं चूं मियां, पैणकुफर के मेहर सिंह, धामला के मदन सिंह, वघोट के जालम सिंह, नेरी के कालीराम शावणी आदि-आदि। कुछ समय के पश्चात् लक्ष्मी सिंह प्रधान के स्थान पर धामला गाँव के मदन सिंह को प्रधान बना

दिया गया। इस आंदोलन का समूचा नियंत्रण व संचालन वैद्य सूरत सिंह के हाथ में था। उसने राजा राजेन्द्र प्रकाश को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि वह स्वयं लोगों की परेशानियां जानने के लिए रियासत जुब्बल में शरण ली। जुब्बल के राजा भक्त

चंद ने उन्हें बड़ा पर इष्ट देवता के झण्डे लगाकर कष्टों को सहते रहे और राजा के गिरफ्तार करने से पहले ही ब्राह्मण झुग्गों में आग लगाकर जल मरे। जनता भड़क गई और अंत में राजा को बेगार प्रथा खत्म कर प्रशासनिक सुधार करने पड़े।


 हि.प्र. में स्वतंत्रता आदोलन से जुड़ी गतिविधियाँ-


(1) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना-

देश की स्वतंत्रता के लिए आदोलन चलाने हाल में संपन्न हुआ। मुख्य प्रतिनिधियों में शिमल से ए.ओ. ह्यूम थे। सम्मेलन का सभापतित्व बैरिस्टर व्योमेश चन्द्र बैनर्जी ने किया। आरम्भ में इस संस्था का अंग्रेज सत्ता में कोई द्वेष नहीं था। उस समय इसका उद्देश्य भारतीयों को प्रशासन में हिस्सा दिलाना तथा ऊँचे पदों पर नियुक्तियां करवाने से था। इस समय तक high पदों पर अंग्रेज अधिकारी ही भारत से भाग कर फ्रॉस होते हुए अमेरिका में स्थित सेन फ्रांसिस्को पहुँच गए। 1913 ई. में उनकी पहल पर और 1857 के जन-विद्रोह की स्मृति में उन्होंने 'गदर' नामक समाचार-पत्र आरंभ किया। उसी वर्ष अमेरिका में विभिन्न को पढ़कर उन्होंने लोगों को उकसाया। मण्डी की रानी खैरगढ़ी और मियां जवाहर सिंह उनके प्रभाव में आ गए। रानी ने धन देकर लोगों की सहायता की। दिसम्बर 1914 और जनवरी 1915 में गुप्त बैठके करके यह निर्णय लिया गया कि पुलिस अधिकारी और वजीर को मार दिया जाए और

सरकारी कोष को लूटा जाए तथा व्यास नदी पर बने पुल को उड़ा दिया जाए। इसके पश्चात् मण्डी और सुकेत की रियासतों पर अधिकार किया जाए। केवल एक नागचला डकैती इलावा वे अपने सभी उद्देश्यों में असफल रहे। इस असफलता के फलस्वरूप रानी खैरगढ़ी को मण्डी से निष्कासित कर दिया गया। गदर पार्टी के एक कार्यकर्ता 'भाई हिरदा राम' को पंजाब भेज कर बम बनाने का प्रशिक्षण ग्रहण करने का कार्य सौंपा गया। इस पार्टी के कार्यकर्ताओं की धर पकड़ में भाई हिरदा राम पकड़ा गया और उसे लाहौर षड्यंत्र के मुकदमे में प्राण-दण्ड दिया गया। बाद में इस दण्ड को उम्रकैद में बदल दिया गया। इस धर-पकड़ में हरदेव भागने में सफल हो गया और वह भागकर गढ़वाल में बद्रीनाथ पहुंच गया। उसने अपना नाम बदल कर स्वामी कृष्णानंद रख लिया और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो कर 1917 ई. में सिंध प्रांत के अहिंसात्मक आदोलन में कूद पड़ा। अंत में सभी क्रांतिकारी पकड़े गए और उन पर मुकदमे चला कर लम्बी-लम्बी कैद की सजाएं दी गई। उन में मुख्य थे-जवाहर नरयाल, मिया जवाहर सिंह, बद्रीनाथ, सिद्ध खराड़ा, ग्वाला सिंह, शारदा राम, दलीप सिंह , लौंगूराम। बाद में हिरदा राम को काला पानी की सजा के लिए अण्डमान भेज दिया गया। इसके पश्चात् मण्डी का क्रांतिकरी संगठन कमजोर पड़ गया। 1916 ई. के आरंभ में मण्डी, सुकेत और ऊना में गदर पार्टी के क्रांतिकारी फिर से सक्रिय हो गए। उन्होंने अंग्रेज अफसरों को मारने की योजना बनाई। इस बार मण्डी के कार्यकर्ता पकड़े गए। उन में से पाँच पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें चौदह से अठारह वर्ष की सजा हुई। ऊना के क्रांतिकारी ऋषिकेश लट्ठ के क्रांतिकारी दल का भी भेद खुल गया और वे भूमिगत हो गए तथा कुछ समय बाद ईरान पहुँचकर गदर पार्टी में


(4) कांग्रेस आंदोलन का आरम्भ-

मोहन दास कर्म चन्द गाँधी 1915 में , सर्व मिश्र, बाशी राम, कृपाल सिंह, सिद्धू राम, थोहली राम आदि लोग भी कांग्रेस के कार्यकर्ता बन गए। मई 1921 ई. में शिमला में कांग्रेस का प्रथम प्रतिनिधि संगठन बनाया गया। इसमें शिमला नगर के मौलवी गुलाम मुहम्मद कांग्रेस के प्रधान चुने गए। इसके.अतिरिक्त भगीरथ लाल उप प्रधान, मुहम्मद उमर नुमानी मंत्री, द्वारिका प्रसाद उपमंत्री और लाला धुंघर मल खजाँची चुने गए। मौलवी अब्दुलगनी, चिरंजीलाल आढ़ती, हरिश्चन्द्र, गोकुल चन्द, प्यारे लाल, केदारनाथ सूद, राणा होशियार सिंह, राम किशन बजाज, स्वामी रामानंद, मोहन लाल सूद और वकील हरिश्चन्द्र सूद शिमला कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य बनाए गए।


(5) महात्मा गाँधी का शिमला आगमन-

11 मई, 1921 को गाँधी जी शिमला पास के पहाड़ी क्षेत्रों से भी लोग गाँधी के दर्शन के लिए आए थे। गाँधी जी के शिमला आगमन ने इस पर्वतीय क्षेत्र के लोगों का ध्यान राष्ट्रीय विचारधारा की ओर आकृष्ट किया। लगभग 1923 के पश्चात् जुब्बल रियासत के गाँव धार के इंजीनियर भागमल सौहटा ने राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश किया। सन् 1922-1923 तक शिमला में कांग्रेस आंदोलन ने जोर पकड़ा। इसमें पं. गैंडामल, मौलाना मुहम्मद नौनी, अब्दुल गनी, गुलाम मुहम्मद नकवी, ठाकुर भागीरथ लाल, हकीम त्रिलोकीनाथ भाग लेने वाले प्रमुख व्यक्ति थे।


(6) सैमुअल इवास स्टोक्स और बाबा कांशीराम-

कुछ समय पूर्व अमेरिका से सुजानपुर के पास ताल में हुआ, जिसमें बलोच सिपाहियों ने लोगों को बुरी तरह पीटा। इस मारपीट में ठाकुर हजारा सिंह, बाबा कांशीराम (पहाड़ी गाँधी), गोपाल सिंह और चतुर सिंह भी शामिल थे। सिपाहियों ने उनकी गाँधी टोपियां भी उनसे छीन ली। इसके विरुद्ध पहाड़ी गाँधी बाबा कांशीराम ने शपथ ली कि जब तक भारत स्वतंत्र नहीं होता, वह काले कपड़े पहनेंगे। कांग्रेस के आदोलन में बाबा कांशीराम और हजारा सिंह का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। बाबा काशीराम को 'पहाड़ी गाँधी' का खिताब 1937 में गदड़िवाला जनसभा में पं. जवाहरलाल नेहरू ने दिया। उन्हें सरोजनी नायडू ने 'पहाड़ी बुलबुल' का खिताब दिया।


(7) प्रशासनिक सुधार-

मण्डी के राजा ने मण्डी में 1933 ई. में मण्डी विधानसभा परिषद् का गठन किया जिसने पंचायती राज अधिनियम पास किया। शिमला पहाड़ी रियासतों में मण्डी पहला राज्य था जिसने पंचायती राज अधिनियम लागू किया। बिलासपुर, बुशहर और सिरमौर राज्यों ने भी प्रशासनिक सुधार शुरू किए।


(8) राष्ट्रीय नेताओं का आगमन-

लाला लाजपतराय 1906 ई. में मण्डी आए। महात्मा गाँधी 1945 में मनोरविला (राजकुमारी अमृत कौर का निवास) और 1946 में चैडविक समर हिल में रुके।


(9) आंदोलनकारी-

ऋषिकेश लट्ठ ने ऊना में 1915 ई. में दिल्ली में फाँसी दे दी गई। सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाते हुए 1930 में बाबा लछमन दास और सत्य प्रकाश "बागी' को ऊना में गिरफ्तार कर लिया गया।


(10) 1920 के दशक की घटनाएँ-

1920 में हिमाचल में असहयोग आंदोलन ' के शिमला आगमन का विरोध हुआ। लाला लाजपतराय को 1922 में लाहौर से लाकर धर्मशाला में बंद किया गया। वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने 1925 ई. में शिमला में "सैन्ट्रल कौन्सिल चेम्बर" (वर्तमान विधानसभा) का उद्घाटन किया। शिमला और काँगड़ा में 1928 ई. में

साइमन कमीशन का भारत आगमन पर विरोध हुआ।


(11) शिमला में कांग्रेस का पुनर्गठन-

सन् 1929 ई. शिमला में कांग्रेस को बजाज, स्वामी रामानन्द, लाल घुघर मल आदि सदस्य कांग्रेस के कार्य में बढ़-चढ़कर भाग लेते रहे। इनके अतिरिक्त जुब्बल

के भागमल सौहटा,कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने इस आंदोलन में भाग लिया। इसके बारे में स्थान- कलाम आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, मदन मोहन मालवीय, डॉ. अंसारी भी थे। वह पुनः बात करने के लिए 5 मई, 1931 को फिर शिमला आए। इस बार गाँधी जी ने रिज मैदान में भाषण भी दिया। इरविन-गाँधी समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए गाँधी जी एक बार फिर 25 अगस्त, 1931 को शिमला पधारे। उनके साथ पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार

वल्लभ भाई पटेल तथा सर प्रभाशंकर पट्टनी भी थे।3 सितम्बर, 1939 का दूसरा

-युद्ध आरमभ  हो गया। इस काल म कांगड़ा व अन्य पहाड़ी क्षेत्र मे congress  के meetings  होते रहे। इस उद्देश्य से काँगड़ा क्षेत्र में लगभग 60 और हमीरपुर क्षेत्र में 40 कांग्रेस कमेटियां बनाई गई। कांग्रेस के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर अंग्रेज.सरकार ने इसे दबाने का प्रयास किया। इसलिए सरकार ने बड़े-बड़े नेताओं पर झूठे मुकदमे बना कर उन्हें गिरफ्तार किया और डिफेंस ऑफ इंडिया.एक्ट लागू कर दिया। इस दमन चक्र के कारण बाबा कांशीराम, बैसाखी राम, ब्रह्मानन्द आदि गिरफ्तार करके धर्मशाला जेल में रखे गए। 22.अक्तूबर, 1939 ई. को शिमला में भी इस अधिनियम के अन्तर्गत् सक्रिय कांग्रेसी पकड़े गए। इनमें डॉ. नन्दलाल वर्मा, दीनानाथ आंधी, मुन्शी.अहमद्दीन, हरिराम शर्मा आदि थे। इनमें से डॉ. नन्द लाल वर्मा और हरि राम शर्मा को बिना शर्त छोड़ दिया गया और दूसरों को 6 मास की सजा दी गई।


(14) व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन-

17 अक्तूबर, 1937 ई. में गाँधी जी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन आरम्भ किया। शिमला में इस सत्याग्रह में पं पद्मदेव, कांग्रेस के प्रधान श्याम लाल खन्ना और महामन्त्री सालिग राम शर्मा आदि प्रमुख व्यक्ति थे। पहाड़ी क्षेत्र में सत्याग्रह का नारा 'न भाई दो', 'न पाई दो' खूब गूंजा जिसे बाद में पं. पद्म देव ने 'भाई दो न पाई दो' के नारे में बदल दिया। उन्होंने गंज में जनसभा की और भाषण दिए। पुलिस ने पद्मदेव को पकड़ कर कैथू जेल भेज दिया। बाद में 18 मास की सजा देकर उन्हें लुधियाना और गुजरात की जेलों में बन्दी बना कर रखा गया।

नवम्बर 1940 में कांगड़ा क्षेत्र में व्यक्तिगत सत्याग्रह के संचालन के लिए एक समिति बनाई गई। इस समिति में ठाकुर हजारा सिंह, पं. परस राम.तथा ब्रह्मानन्द मुख्य थे। काँगड़ा नगर में लाला मंगतराम खन्ना प्रमुख थे। अन्य स्थानों में भी कई लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और गिरफ्तारियाँ दीं। अप्रैल, 1941 ई. गई पाबंदी.को हटाने का अनुरोध किया, जिसे धामी के राणा ने मना कर दिया। 16 जुलाई, 1939 में भागमल सौहटा के नेतृत्व में लोग धामी के लिए रवाना हुए। भागमल में "अँग्रेजों भारत छोड़ो' के संबंध में जलसे-जुलूस और आंदोलन आरम्भ हुए तथा 'भाई दो न पाई दो' का नारा गाँव-गाँव में गूंजा। इस आंदोलन के दौरान शिमला में भागमल सौहटा, पं. हरिराम, चौधरी दीवान चन्द, सालिगराम शर्मा, नन्द लाल वर्मा, तुफैल अहमद , ओम प्रकाश चोपड़ा, सन्त राम, हरिचन्द आदि आंदोलनकारी गिरफ्तार किए गए। उन्हें कडे कारावास की सजा देकर पंजाब की जेलों में बन्द कर दिया गया। शिमला से राजकुमारी अमृतकौर “भारत छोड़ो आंदोलन" का संचालन करती रही तथा गाँधी जी के कैद में बन्द होने पर उनकी पत्रिका "हरिजन" का सम्पादन करती रहीं। गाँधी जी के समर्थन में काँगड़ा के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने भी सत्याग्रह में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के समय कई लोगों ने इसमें अपना योगदान दिया। इस प्रकार के आंदोलना में भाग लेने वालों में मंगत राम खना, हेमराज सूद , कॉमरेड रामचन्द्र, परस राम, सरला शर्मा, ब्रह्मानन्द और पं. अमर नाथ प्रमुख थे। मई. 1944 ई. में महात्मा गाँधी को जेल से रिहा किया गया। परिणामस्वरूप "भारत छोड़ो आदोलन" कुछ धीमा पड़ गया। सितम्बर 1914 ई. में हिमाचल में "भारत छोड़ो आंदोलन" में गिरफ्तार नेताओं को रिहा कर दिया गया।


(17) वेवल योजना-

14 मई, 1945 ई. को लंदन में भारत सचिव एम.एल. एमरी ने पार्लियामेंट में भारत के राजनैतिक हल के लिए एक योजना की.घोषणा की, जिसे इतिहास में "वेवल-योजना" कहा जाता है। इसके अनुसार वायसराय लार्ड वेवल ने भारतीय राजनैतिक दलों को 25 जून, 1945 को शिमला में बातचीत के लिए आमंत्रित किया। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित दलों के प्रतिनिधि शिमला पहुँचे। इनमें कांग्रेस के.अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद तथा जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, खान

अब्दुल गफ्फार खान, आचार्य कृपलानी, गोविन्द वल्लभ पन्त, पट्टाभिसीतारमैया, शंकर राव देव, जय दास दौलत राम, रवि शंकर शुक्ला, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, भोला भाई देसाई, आसिफ अली, अरुणा आसिफ, मीराबेन आदि कांग्रेस के नेता शिमला आए। सलाह-मशविरा देने के लिए महात्मा गाँधी भी शिमला आए और समरहल में राजकुमारी अमृत कौर के निवास स्थान मनौरविला में ठहरे। 25 जून, 1945 को वायसराय के निवास स्थान “वायस रीगल लॉज' में 21 प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में भाग लिया। इन 21 प्रतिनिधियों में मुस्लिम लीग के मुख्य प्रतिनिधि मुहम्मद अली जिन्नाह थे। इस कांफ्रेंस में कांग्रेस ने राजनीतिक समस्याओं पर तो सन्तोष प्रकट किया, परंतु मुस्लिम लीग के

साम्प्रदायिक दृष्टिकोण पर उसने अपना असन्तोष व्यक्त किया। यद्यपि यह सम्मेलन कई दिनों तक चलता रहा और वायसराय ने ईमानदारी के साथ बीच-बचाव भी किया तथापि लीग के हठ के सामने सम्मेलन फीका पड़ गया। अन्त में 14 जुलाई को वायसराय की घोषणा के साथ सम्मेलन समाप्त हो गया।


((18) अन्तरिम सरकार का गठन-

मई 1946 ई. में बर्तानिया से एक केबिनेट मिशन भारतीय नेताओं से बातचीत करने भारत आया। भारतीय नेताओं. वायसराय लार्ड वेवल तथा केबिनेट मिशन की बैठकें इस बार शिमला में 5 मई से 12 मई, 1946 तक होती रहीं। मुस्लिम लीग की हठधर्मी से इसे कोई अधिक सफलता तो नहीं मिल पाई परंतु वायसराय लार्ड वेवल अन्तरिम सरकार बनाने में सफल हुए और बाद में लीग वालों ने भी सरकार में सम्मिलित होने में बुद्धिमानी समझी और वायसराय से बात कर ली। अत: 2 सितम्बर, 1946 को कांग्रेस ने भारत में अन्तरिम सरकार बनाई और

26 अक्तूबर, 1946 को मुस्लिम लीग के नेता भी इस सरकार में सम्मिलित हो गए।


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