हिमाचल प्रदेश की कला और संस्कृति
हि.प्र. की भाषाएँ एवं लिपि
पहाड़ी भाषा की उत्पत्ति- हि.प्र. की भाषा को जो की यहाँ के 90% लोग बोलते हैं पश्चिमी पहाड़ी भाषा के रूप में जाना जाता है। पश्चिमी पहाडी भाषा उत्तराखण्ड के जौनसार बाबर से लेकर जम्मू-कश्मीर में भद्रवाह तक बोली जाती है। लगभग 30 स्पष्ट बोलियाँ इस क्षेत्र में खोजी गई हैं।यहाँ की बोलियों का वर्गीकरण जॉर्ज ए. ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक "भारत का भाषिक सर्वेक्षण" में दिया था। उन्होंने बिलासपुरी और काँगड़ी को पंजाबी भाषा से संबद्ध किया था जिसे बाद में पहाड़ी भाषा माना गया।.जॉर्ज ए. ग्रियर्सन ने पहाड़ी भाषा का जन्म दर्दी और पैशाची से माना है, जबकि डॉ. हरदेव बाहरी, डॉ. भोलानाथ तिवारी, डॉ. उदयनारायण तिवारी और डॉ. धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार पहाड़ी भाषा का विकास शौरसेनी नागर अपभ्रंश से हुआ
मुख्य पहाड़ी बोलियाँ- हि.प्र. में 88.77% लोग पहाड़ी (हिन्दी) और 6.83%
लोग पंजाबी भाषा बोलते हैं। बाकी लोग तिब्बती हिमालयन भाषा बोलते हैं।
सिरमौर-धारटी-सिरमौर के (गिरि आर) धारटी क्षेत्र में धारटी बोली बोली जाती है।
विशवाई-सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में जो शिमला से जुड़ा है वहाँ विशवाई बोली प्रचलित है।
सोलन-सोलन और शिमला जिले में महासुवी उपभाषा बोली जाती है।
बघाटी-सोलन क्षेत्र में बघाटी बोली प्रचलित है जो बघाट रियासत में प्रसिद्ध थी।
बघलानी-बाघल रियासत अर्थात् कुनिहार और अर्की क्षेत्र में बघलानी बोली प्रचलित है।
हिन्डूरी-नालगढ़ क्षेत्र में हिन्डूरी बोली प्रचलित है।
बिलासपुर-बिलासपुर जिले में कहलूरी बोली बोली जाती है। टी. ग्राहम बेली ने बिलासपुर की बोलियों को छ: वर्गों में बाँटा।
क्योंथली-शिमला शहर के आसपास क्योंथल राज्य के नाम पर क्योंथली बोली प्रचलित है।
कोची-सतलुज घाटी, रामपुर बुशैहर, कुमारसैन और कोटगढ़ क्षेत्र में कोची बोली प्रचलित है।
- बरारी-जुब्बल के बरार तथा रोहडू तहसील में बरारी बोली प्रचलित है।।
- किरन-थरोच राज्य के किरण क्षेत्र में किरण बोली प्रचलित है।
कुल्लू-कुल्लू जिले की प्रमुख बोली कुल्लुवी है। इसकी तीन उपबोलियाँ-सिराजी, सैंजी और कुल्लवी है। मलाणा गाँव की बोली मलानी है जो किन्नौर वर्ग का हिस्सा है।
मण्डी-मण्डी जिले की बोली मण्डयाली है। सुन्दरनगर और सुकेत में सुकेती बोली प्रचलित है। इसके अलावा सरकाघाट में सरघाटी, बल्ह में बाल उपबोलियाँ प्रचलित हैं।
चम्बा-चम्बा जिले में चम्बयाली बोली, बोली जाती है। स्थानीय बोलियों में भटियात में भटियाती, चुराह में चुराही, पांगी में पंगवाली तथा भरमौज भरमौरी बोली प्रचलित है।
काँगड़ा, ऊना एवं हमीरपुर-इन तीनों जिलों में काँगड़ी बोली प्रचलित है।
किनौरी-किन्नौरी बोली जिसे होमस्कद कहते हैं किन्नौर के 75% लोग बोलते हैं। यहाँ की कुछ उपबोलियाँ हैं-
संगनूर-पूह तहसील के संगनूर की बोली।
जंगीयम-मोरंग के जंगी, लिप्पा और असरंग की बोली।
शुम्को-पूह के कानम, लबरांग, शाइसो की बोली।
भोटी-यह स्पीति तथा चन्द्रा और भागा घाटी में बोली जाती है।
गेहरी-यह केलाँग क्षेत्र में बोली जाती है।
मनछत और चागसा-यह दोनों बोलियाँ लाहौल की चिनाब घाटी में बोली जाती हैं।
इन चारों बोलियों में से भोटी बोली की अपनी लिपि और व्याकरण है।
लिपि-.पहाड़ी भाषा की लिपि टांकरी है जो बनियों द्वारा हिसाब-किताब में प्रयोग की जाती थी। इसी लिपि में पहाड़ी राज्यों के अभिलेख और फरमान लिखे जाते थे। काँगड़ा और चम्बा के राजाओं ने टांकरी लिपि का प्रयोग अपने राजकाज के कार्यों में किया। हूलर ने टांकरी लिपि को शारदा लिपि का सुधरा हुआ रूप माना है। वर्तमान में पहाड़ी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।
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