Fairs and Festival of Himachal Pradesh

Share:

 




प्रमुख मेले एवं त्योहारों का विवरण


• वैशाखी ( 13 अप्रैल)-  फसल से जुड़ा यह त्योहार शिमला, सिरमौर में विशु, किन्नौर में 'बीस', काँगड़ा में विसोबा' और चम्बा-पांगी में लिशू तथा शिमला के लोग तत्तापानी एवं गिरि-गगामासान कर सहारा झलाल सिरमौर क्षत्र में इस दिन माला नृत्य और धनुष बाण से 'ठोण्डा नृत्य' किया जाता है।


रक्षाबंधन- रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णमासी को मनाया जाता है। शिमला में इसे रक्षा पुण्या, मण्डी और सिरमौर में इसे 'सलोनू' तथा बिलासपुर में इसे 'राखिनुआ' कहा जाता है।



. शिवरात्रि- यह त्योहार फाल्गुन मास (फरवरी) के कृष्णपक्ष के उत्तरार्द्ध के चौदहवें दिन मनाया जाता है। कुछ लोग इस दिन निर्जला व्रत रखते हैं। बच्चे इस दिन कारागोरा और पाजा नामक झाड़ियों की कोमल टहनियाँ घर के दरवाजे पर लगाते हैं। घर के बने पकवान को बांस के तिकोने पात्र किल्टा में रखकर संबंधियों और विवाहित लड़की के ससुराल में दिया जाता है। बेल पत्तों का हार जिसे 'चंदवा' कहते हैं उसे एक रस्सी से छत से बांधा जाता है।



नवाला -नवाला गद्दियों का त्योहार है जिसमें शिवजी की पूजा रात भर की जाती है। घर के भीतर चावल के आटे से चौका तैयार कर शिव की पिण्डो को उसमें स्थापित कर देते हैं। फूलों की मालाएँ पिण्डी के ऊपर छत पर लटका दी जाती हैं। पुजारी अनुष्ठान करवाता है तथा यजमान में चढ़ाता है। बकरियों की बलि भी दी जाती है। शिवजी से जुड़े गीत जिन्हें 'एंचलियाँ' कहते हैं सारी रात गाए जाते हैं। शिवजी को बलि देने के बाद चेले प्रश्नों के उत्तर देते हैं।



फागुली- यह त्योहार बसंत पंचमी के दिन किन्नौर में मनाया जाता है जिसमें कागज पर बने रावण के चित्रों पर लोग बाणों से निशाना लगाते हैं जिसे लंका मारना या लंका दहन कहते हैं। यह त्योहार कुल्लू जिले में फरवरी-मार्च में मनाया जाता है।


मिंजर -मिंजर का मेला अगस्त माह के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। इस मेले के अंतिम दिन रावी नदी के तट पर वरुण देवता (वर्षा ऋतु के देवता) को प्रसन्न करने के लिए मिंजरें (मक्की के भुट्टों के बालों) एवं नारियल रावी में बहाया जाता है। पहले इस मेले में भैंसों की बलि देने की प्रथा थी। यह मेला सात दिन तक चलता है।


. कुल्लू का दशहरा- सप्ताह भर चलने वाले इस मेले का प्रारंभ कृष्ण पक्ष के दसवें दिन अर्थात् दशहरे के दिन होता है। मेले के पहले दिन भगवान रघुनाथ की मूर्ति को रथ पर बिठाकर ढालपुर मैदान में लाया जाता है। यह मेला सातवें दिन बलि, अनुष्ठान व लंका दहन से समाप्त होता है। मेले के अंत में रघुनाथ जी की मूर्ति को वापस सुल्तानपुर के मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। यह मूर्ति 1651 ई. में दामोदर दास द्वारा कुल्लू में लाई गई थी जिसकी स्थापना कुल्लू के राजा जगत सिंह ने की थी। वैरागी कृष्णदास (वैष्णव संप्रदाय से संबंधित) ने वर्ष में एक बार दशहरे के दिनों में ग्राम देवताओं को कुल्लू में उपस्थित करवाकर रघुनाथ जी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करवाने की प्रथा चलवाई।


अन्य मेले एवं त्योहार -बंजार मेला एवं भुई मेला बंजार (कुल्लू) में मई और जून माह में लगता है। सरही जातरा मई माह में नग्गर (कुल्लू) में मनाया जाता है। रोहडू जातर शिकरू देवता के सम्मान में वैशाख माह (अप्रैल) तथा रामपुर जातर जुलाई माह में शारी के वानर देवता के सम्मान में आयोजित किया जाता है। बावन द्वादशी का मेला सिरमौर के नाहन में सितंबर माह महादानी बलि के सम्मान में आयोजित किया जाता है। इसे 1898 में शमशेर प्रकाश ने शुरू किया। हिमाचल में गुग्गा नवमी के मेले अगस्त मास में मनाए जाते हैं। रक्षाबंधन के दिन गुग्गा मण्डली गाँव-गाँव जाकर गुग्गा गाथा का गुणगान करती है। चामुण्डा जातर (चम्बा में) अप्रैल में, नाग मेला, जून में बनिखेत में, कुगती जातर, चम्बा में, सितम्बर में, मैहला जातर, चम्बा में, अप्रैल में ठरशू मेला रामपुर में अप्रैल-मई में, तकोली मेला जून में, मण्डी में, भियुली मेला अप्रैल में मण्डी में आयोजित किया जाता है। सिरमौर के क्वागधार में नवम्बर में भूरेश्वर महादेव का मेला लगता है। पंजगोत्रा मेला ऊना के बभौर साहिब में लगता है। पीर निगाह मेला ऊना जिले के बशोली में लगता है। नहोल त्योहार निचले हिमाचल में ज्येष्ठ माह में मनाया जाता है, जबकि नाग पंचमी का त्योहार श्रावण माह में मनाया जाता है। ज्येष्ठ माह के उजाले पखवाड़े की एकादशी को 'निर्जला एकादशी' मनायी जाती है। सिस्सु बौद्ध त्योहार तीन अलग-अलग माह में मनाया जाता है। श्रीखण्ड महादेव यात्रा (कुल्लू) आषाढ़ माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होती है।






No comments