HP History Part 4.1

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Hill State and Their Relations with Sikhs


रणजीत सिंह और अनिरुद्ध सिंह-

संसारचंद की मृत्यु के बाद 1823 ई. में एक छीन लिया। उसके राजा भूपसिंह को लाहौर में बन्दी बना लिया गया। 1815 ई. में जसवाँ रियासत पर कब्जा किया गया क्योंकि जसवाँ के राजा उम्मेद सिंह ने भारी जुर्माना देने के बजाए 12000 रुपये में जागीर स्वीकार कर ली। नूरपुर राज्य पर भी सियालकोट (1815) में अनुपस्थित रहने के लिए जुर्माना लगाया गया (जसवा की तरह)। राजा वीर सिंह ने जुर्माना अदा करने की कोशिश की। वीर सिंह जुर्माना अदा न कर सका। उसे जागीर लेने का प्रस्ताव दिया गया जिसे लेने से उसने मना कर दिया और सिक्खों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा पहाड़ी रास्ते से अंग्रेजी इलाके में चला गया। नूरपुर पर रणजीत सिंह का कब्जा हो गया। वीर सिंह को 1826 ई. में गिरफ्तार कर अमृतसर भेज दिया गया। जहाँ से 7 वर्ष बाद चम्बा के राजा ने जुर्माना भर कर उसे छुड़वाया। सिखों ने 1825 ई. में कुटलेहड़ पर कब्जा कर लिया। 1818 ई. में रियासत भी 50 हजार रुपये वार्षिक कर रणजीत सिंह को देती थी। चम्बा रियासत भी चढ़त सिंह के शासन में रणजीत सिंह के प्रभुत्व में आ गई परंतु चम्बा के राजा की स्वतंत्रता कायम रही। सिरमौर रियासत के नारायणगढ़ पर भी सिखों ने कब्जा कर लिया था। 1939ई. में रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई।


जनरल वैचुरा (1840 ई.-1841 ई.)-

सिख सेना के जनरल वेंचुरा के नेतृत्व में 1840 ई. में सेना कुल्लू और मण्डी की ओर बढ़ी। कुल्लू के राजा ने

आत्मसमर्पण कर दिया। मण्डी के राजा बलवीर सेन जो एक रखैल का पुत्र था, उसे कैद कर अमृतसर भेज दिया गया। राजा बलवीर सेन को गोविंदगढ़

किले में रखा गया। बलवीर सेन को 1841 ई. में छोड़ दिया गया। बलवीर सेन ने अपने सिंह की मृत्यु के बाद 1845-46 ई. में सिक्खों और अंग्रेजों के मध्य एक भयंकर युद्ध हुआ।


युद्ध की घटनाएँ-

13 दिसम्बर, 1845 ई. को अंग्रेजों और सिक्खों के मध्य पहला युद्ध लड़ा गया जो तीन माह पश्चात् समाप्त हुआ।

  1.  सबराओं का युद्ध (10 फरवरी, 1846 ई.)-ब्रिटिश सेना ने सतलुज नदी पार कर 20 फरवरी, 1846 ई. को लाहौर पर अधिकार कर लिया।

  2. युद्ध का परिणाम-अंग्रेजों ने के पास इसे काबू में रखने के लिए उतनी बड़ी सेना भी नहीं थी। प्रथम सिख युद्ध की समाप्ति के बाद 9 मार्च, 1846 ई. को लाहौर की संधि हुई।

  3.  लाहौर की संधि (9 मार्च, 1846 ई.) की शर्ते-सतलुज नदी के दक्षिण के सभी क्षेत्रों पर सिक्ख दावे समाप्त हो गए। व्यास और सतलुज के बीच के सभी प्रदेश अंग्रेजों के दलीप सिंह की रक्षा के लिए लाहौर में एक अग्रेजी सेना रखने युद्ध में पहाड़ी राजाओं की भूमिका-अधिकांश पहाड़ी राजाओं ने युद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया और सिक्खों को अपने राज्य से निकाल भगाया। गुलेर के राजा शमशेर सिंह ने हरिपुर किले से सिक्खों को निकाल भगाया।

द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध (1848-49 ई.)

द्वितीय सिक्ख युद्ध के कारण-सिक्ख अपनी पहली हार का में मिलाना चाहते थे। जिसके कारण प्रथम सिक्ख युद्ध के दो वर्ष बाद ही दूसरा सिक्ख battale hua

battle की घटनाएँ-

  1. अंग्रेज सेनापति लॉर्ड गफ और सिक्ख सरदार शेरसिंह के बीच 22 नवम्बर, 1848 ई. को रामनगर की लड़ाई हुई जिसमें हार-जीत का फेसला नहीं हुआ 

  2. 13 जनवरी, 1949 ई. को चिलियांवाला की लड़ाई में दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। अंग्रेजों ने लार्ड गफ़ के स्थान पर चार्ल्स नेपियर को कमाण्डर बनाकर भेजा।

  3. लार्ड गफ़ ने चार्ल्स नेपियर के पहुंचने से और निर्णायक विजय प्राप्त कर सकी। अफगानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद के लड़के अकरम खान ने सिक्खों का साथ दिया। सिक्खों ने 13 मार्च 1849 ई. को हथियार डाल दिए।

युद्ध का परिणाम

  1. सिक्ख साम्राज्य को 29 मार्च, 1949 ई. को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया।

  2. महाराजा दिलीप सिंह को 50 हजार पौण्ड वार्षिक पेंशन पर इंग्लैण्ड भेज दिया गया।



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