हिमाचल प्रदेश का भूगोल
हिमाचल प्रदेश की स्थिति व जिले
० शाब्दिक अर्थ-
हिमाचल' शब्द 'हिम' और 'अचल' शब्दों से मिलकर बना है। हिम का अर्थ है 'बर्फ' और 'अचल' का अर्थ है 'पर्वत' अर्थात् हिमाचल बर्फ का पर्वत अथवा बर्फ से घिरा पर्वत है।
० स्थिति (भौगोलिक)-
हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय पर्वत श्रृंखला में बसा हुआ है। हिमाचल 75°-47-55" तथा 79°-04-20" रेखांश पूर्व और 30°-22-10' तथा 339-12-40 अक्षांश उत्तर के मध्य स्थित है।
हिमाचल प्रदेश की सीमाएँ 1170 किमी. हैं
दक्षिण में हरियाणा और उत्तर प्रदेश,
उत्तर में जम्मू-कश्मीर से,
पश्चिम में पंजाब से,
पूर्व में तिब्बत (चीन)
हि.प्र. की चौड़ाई 270 किमी. है।
अन्य देशों राज्यों की सीमा को स्पर्श करने वाले जिले हैं-
1. चीन (तिब्बत)-किन्नौर और लाहौल-स्पीति
2. उत्तरखण्ड-किन्नौर, शिमला, सिरमौर
3. जम्मू कश्मीर-चम्बा, काँगड़ा
4. हरियाणा-सोलन, सिरमौर
5.उत्तर प्रदेश-सिरमौर।
6.पंजाब-सोलन, बिलासपुर, ऊना, काँगड़ा, चम्बा (सर्वाधिक
नदियाँ-
हिमाचल प्रदेश में मुख्यत: 5 नदियाँ चिनाब, रावी, व्यास, सतलुज और यमुना बहती हैं, नदी है।
जिले-
हिमाचल प्रदेश में 12 जिले हैं तथा दक्षिणी जिला है तो किन्नौर पूर्वी, चम्बा व लाहौल-स्पीति उत्तर में स्थित हैं तथा कुल्लू व मण्डी मध्य में स्थित हैं। हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना व काँगड़ा हिमाचल प्रदेश के पश्चिम भाग में स्थित हैं।
हिमालय का उद्भव एवं हिमाचल प्रदेश (Origin of the Himalayas and Himachal Pradesh)-
आज से लगभग करोडों वर्ष पहले हलचलों के कारण गोन्डवाना लैण्ड तथा अंगारालैण्ड एक-दूसरे के निकट आए और टैथिस सागर में निक्षेपित तलछट में संपीड़न होने लगा। इस संपीड़न के कारण यह तलछट बलित होकर ऊपर को उठने लगा और वर्तमान हिमालय का निर्माण हुआ। इस पर्वत में निर्माण के दौर को प्रायः अल्पाइन के नाम से भी पुकारा जाता है, क्योंकि आल्पस पर्वत का उत्थान भी इसी दौर में हुआ था। अभिनूतन काल में शिवालिक की पहाड़ियों में बलन आए। भू-वैज्ञानिकों का यह विश्वास है कि उत्थान तथा बलन की क्रिया अब भी जारी है।
(हिमाचल प्रदेश के भू-भौतिक प्रदेश
(Geographical Regions of H.P.)-उच्चावच संबंधी विभिन्न भौतिक तत्वों की विशेषताओं के आधार पर सम्पूर्ण हिमाचल प्रदेश को निम्नलिखित भू-भौतिक क्षेत्रों में विभाजित किया
बाहरी हिमालय या शिवालिका क्षेत्र-, ऊना, काँगड़ा तथा चम्बा जिले के निम्नवर्ती भू भाग सम्मिलित हैं। पांवटा, नाहन, नालागढ़, ऊना तथा नूरपुर यहाँ के प्रमुख शहर है जो दून घाटी में स्थित हैं। इस भू-भाग की कुल लंबाई एक छोटी पट्टी के रूप में 290 किलोमीटर के करीब है, जबकि इसकी चौड़ाई 10 से 40 किलोमीटर के मध्य है। शिवालिक का शाब्दिक अर्थ शिव की जटाएँ हैं। प्राचीन भूगोल में इसे मानक पर्वत भी कहते हैं। इस क्षेत्र की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 350 से लेकर 800 मीटर के मध्य तथा उच्चावच लक्षण साधारण हैं और धरातलीय ढाल भी मन्द है। शिवालिक पहाड़ियाँ, लम्बाकार घाटियाँ तथा मैदानी क्षेत्रों की ओर की पर्वतीय ढालें इस भू-भौतिक प्रदेश के प्रमुख स्थलरूप हैं जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
शिवालिक पहाड़ियाँ-
इस क्षेत्र का सबसे बाहरी भू भाग हैं। ये पहाड़ियाँ 10 किलोमीटर की चौड़ाई में फैली हुई हैं। इन पहाड़ियों की औसत ऊंचाई 600 से 900 मीटर के मध्य है। इन पहाड़ियों से वर्षा ऋतु के दौरान कई ऋतुवत् पहाड़ी जल धाराएँ निकलती हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में चौ (Choes) कहते हैं। भूगर्भिक संरचना के अनुसार यह सबसे युवा अवस्था की स्थलाकृतियाँ हैं। इनका निर्माण हिमालय पर्वत के अन्तिम मोड़ों के निर्माण के दौरान हुआ है।
लम्बाकार दून घाटियाँ-
ये घाटियाँ दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियों तथा उत्तर में हिमालयन पर्वत की दक्षिणी ढालों के मध्य स्थित है। इन लम्बाकार पर्वतीय ढालों से उतरने वाली नदियों की निक्षेपण प्रक्रिया से हुई है। यहाँ पर्याप्त मात्रा में जलोढ़ों का जमाव पाया जाता है। इन जलोढ़ों की मिट्टी काफी उपजाऊ है तथा यहाँ पर पर्याप्त मात्रा में सिंचाई सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।
बाहरी हिमालयन श्रेणियाँ (The Outer Himalayan Ranges)
हिमालय की इन निम्नवर्ती ढालों की समुद्रतल से औसत ऊँचाई 750 से लेकर 1500 मीटर के मध्य है। ये बाहरी हिमालयन श्रेणियाँ सम्पूर्णता निरन्तर नहीं हैं बल्कि ये कई स्थानों पर कटी-फटी हुई हैं। सियाल-हाथी धार चम्बा में, चम्मुखी-सोला-सिंगी काँगड़ा तथा हमीरपुर में, नैनादेवी की धार बिलासपुर में, रामशहर तथा कसौली धार सोलन में तथा धारटी-सैनधार सिरमौर जिले में ऐसी ही महत्वपूर्ण बाहरी हिमालयन श्रेणियाँ हैं। बाहरी हिमालय की ये श्रेणियाँ दून क्षेत्र की ओर तीव्र ढाल युक्त है।
लघु हिमालय या मध्यवर्ती क्षेत्र-यह भू-भाग बाहरी हिमालय तथा उच्च हिमालय क्षेत्र के मध्य का संक्रमण क्षेत्र है। प्राकृतिक रूप से इस भू-क्षेत्र के
उत्तर-पूर्व की ओर धौलाधार पर्वत श्रेणियाँ हैं। इस क्षेत्र की चौड़ाई 75 से 100 किलोमीटर के करीब है। इस भू-भाग की समुद्र तल से की ओर बढ़ने पर धीरे-धीरे ऊँचाई बढ़ती जाती है। शिमला की दक्षिण में चूढ़ चाँदनी की ऊँची चोटी (3647 मीटर) स्थित है। इसी भू-क्षेत्र भूगर्भिक संरचना में ग्रेनाइट तथा अन्य रवेदार चट्टानों की प्रधानता है। इस भू-क्षेत्र की चट्टानें पुरना तथा कार्बनीफिरयस युग से लेकर पुरना इयोसीन युग से संबंधित है। इस भू-क्षेत्र की स्थलाकृतियों को अग्रलिखित प्रमुख पर्वत श्रेणियों तथा घाटियों में विभाजित किया जाता है-
प्रमुख पर्वती श्रेणियाँ-
इन सबमें धौलाधार पर्वत श्रेणियाँ प्रमुख हैं। धौलाधार पर्वत श्रेणी की तलहटी पर काँगड़ा की घाटी या धर्मशाला स्थित है। धौलाधार का अर्थ सफेद चोटी होता है। धौलाधार पर्वत श्रेणी को चम्बा के दक्षिण पश्चिम भाग में रावी नदी द्वारा, लारजी में व्यास नदी द्वारा तथा रामपुर के नजदीक ऊँची है। इन पर्वत श्रेणियों की औसत ऊँचाई 3300 से 4500 मीटर के मध्य है। धौलाधार पर्वत श्रृंखला का उत्तरी सिरा पीर पंजाल श्रेणी के दक्षिणी सिरे से जुड़ा हुआ है। धौलाधार पर्वत श्रेणियों का विस्तार चम्बा, काँगड़ा, मण्डी, कुल्लू. शिमला तथा सिरमौर जिलों में देखने को मिलता है। यह पर्वत श्रेणी चम्बा तथा काँगड़ा जिलों के मध्य सीमा विभाजन का कार्य करती है। ये पर्वत श्रेणियाँ मण्डी तथा कुल्लू जिले में सीमा रेखा विभाजन का कार्य करती है। शिमला तथा सिरमौर जिलों में चूड़धार पर्वत माला सीमा विभाजिका रेख का कार्य करती है। दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें जब इन पर्वतों के सहारे ऊपर की ओर उठती है तो इनके टकराने से काँगड़ा क्षेत्र में भारी वर्षा करती हैं।
हिमाचल की प्रमुख घाटियाँ -
इस भौतिक प्रदेश में पर्वतीय श्रृंखलाओं का क्रम निम्नवर्ती घाटियों द्वारा विभाजित होता है। रावी नदी की भटियात घाटी, व्यास नदी की काँगड़ा तथा बल्ह घाटियाँ, सतलुज नदी की बरमाणा, जुखाला, घुमारवी, धामी, करसोग तथा कुनिहार घाटियाँ इस भू-भाग की आर्थिक दृष्टि से प्रमुख स्थलाकृतियाँ हैं। इन नदी घाटियों की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 500 से 1000 मीटर के मध्य है।
उच्च हिमालय या ग्रेट हिमालयन क्षेत्र-
इस भू-भौतिक प्रदेश की भी संक्रमण स्थिति लघु हिमालय तथा ट्रांस हिमालयन भू-भाग के मध्य है। भौगोलिक आधार पर यह हिमालयन क्षेत्र उत्तर तथा उत्तर पूर्व की ओर ग्रेट हिमालयन तथा पीर पंजाल श्रेणियों द्वारा घिरा हुआ है। इस भू-भाग की औसत चौड़ाई 60 किलोमीटर के करीब है। इस भू-प्रदेश की ऊँचाई नदी घाटी क्षेत्रों में 1000 मीटर से लेकर उच्च ग्रेट श्रीखण्ड पर्वत श्रेणियाँ कुल्लू घाटी के उत्तर तथा पूर्व से आकर मिलती हैं। इन सभी पर्वतीय श्रेणियों की औसत ऊँचाई 4000 से 5000 मीटर के मध्य है परन्तु इनमें कुछ पर्वतीय चोटियाँ 6500 मीटर से भी अधिक ऊँची हैं। पाराशाला (6000 मीटर), दिओ टिब्बा (6000 मीटर) तथा डिब्बी वोकरी (6400 मीटर) यहाँ की सबसे ऊंची पर्वतीय चोटियाँ हैं। ये ऊँची-ऊंची पर्वत श्रेणियाँ इस क्षेत्र की जलवायु संबंधी परिस्थितियों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
आन्तरिक हिमालय या ट्रांस हिमालयन क्षेत्र-
यह हिमाचल प्रदेश के उत्तरी तथा भू-भाग के दक्षिणी हिस्से पर पीर पंजाल तथा ग्रेट हिमालय श्रेणियों की प्रधानता है। इन उच्च पर्वत श्रेणियों के कारण इस सम्पूर्ण क्षेत्र में मानसून पवनों का प्रभाव लगभग शून्य के बराबर होता है। दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी पवनें इन महान् हिमालयन श्रेणियों को पार करने में असफल होती हैं। जिसके कारण यह क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र बन गया है। जिसके कारण यहाँ पर वर्षा ऋतु के दौरान भी शुष्क परिस्थितियाँ पाई जाती हैं। ग्रेट हिमालय पर्वतों के आन्तरिक भाग को ही ट्रांस हिमालय कहते हैं। उच्च हिमालयन क्षेत्र या महान् हिमालयन क्षेत्र से इस ट्रांस हिमालयन क्षेत्र की ओर प्रवेश कुछ दरें (Passes) के द्वारा ही संभव हो पाता है। इन दरों में रोहतांग दर्रा 3978 मीटर, परांगला 5579 मीटर, बारालाचाला 4512 मीटर, कुन्जमला 4520 मीटर तथा पिन पार्वती 5319 मीटर प्रमुख है। इस भू-भाग की अन्य महत्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ, जास्कर श्रेणी (Zanskar Range) है, जो इस भू-भाग के पूर्वी हिस्से में स्थित है। यह पर्वत श्रेणी किन्नौर और स्पीति को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तिब्बत से अलग करती है। इस श्रेणी में कई ऊँची-ऊँची चोटियाँ हैं इनमें शिल्ला 7026 मीटर, हिमाचल की सबसे ऊँची चोटी है एवं रीवो फग्युर्ल (6791 मीटर), शिपकी (6608 मीटर) सबसे ऊँची चोटियाँ हैं।
Part of Climate Topic
वर्षा-
हिमाचल प्रदेश में प्रतिवर्ष 1600 मिमी. वर्षा होती है। हिमाचल प्रदेश में प्रतिवर्ष सबसे कम वर्षा स्पीति में केवल 50 मिमी. होती है। लाहौल-स्पीति प्रदेश का सबसे शुष्क जिला है। यहाँ प्रतिवर्ष 500 मिमी. वर्षा होती है। प्रदेश में सर्वाधिक वर्षा काँगड़ा के धर्मशाला में होती है। यहाँ प्रतिवर्ष औसतन 3400 मिमी. वर्षा दर्ज की
वर्षा का स्थानिक प्रारूप
हिमाचल में जलवृष्टि के तीनों रूप वर्षा, हिमपात तथा ओले विद्यमान हैं। हिमाचल प्रदेश में वर्षा के स्थानिक प्रारूप की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
• ऋतु अनुसार वर्षा के वितरण में विषमताएँ-
प्रदेश की कुल वर्षा का 70% हिस्सा ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभों से निचले तथा मध्यवर्ती भागों में भारी वर्षा होती है जबकि उच्चहिमालयन क्षेत्र में भारी हिमपात होता है। यद्यपि इस ऋतु के दौरान प्राप्त वर्षा की मात्रा काफी कम होती है परन्तु इस वर्षा का रबी ऋतु की फसलोंके लिए विशेष महत्त्व है।
शीतकालीन जलवृष्टि हिमपात के रूप में-
सर्दियों की ऋतु में वर्षा जल के हिम स्खलन से जानमाल को भारी नुकसान होता है। हिमाचल प्रदेश में हिम रेखा 4500 मी. की ऊँचाई से शुरू होती है।
.औसत वार्षिक वर्षा-
साधारणतया इस प्रदेश में 110 सेन्टीमीटर के करीब वर्षा प्राप्त होती है जिसकी मात्रा इसके विभिन्न भागों में काफी भिन्न होती है। वर्षा की यह मात्रा प्रदेश के पश्चिमी तथा दक्षिणी भागों में 160 सेन्टीमीटर के करीब है, जबकि उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी भागों में यह केवल मात्र 60 सेन्टीमीटर है।
• निम्नवर्ती क्षेत्रों से ग्रेट हिमालयन क्षेत्र तक वर्षा की मात्रा में वृद्धि-
वर्षा की मात्रा ग्रेट हिमालयन तथा पीर-पंजाल श्रेणियों तक बढ़ती जाती है।
तत्पश्चात् इस वर्षा की मात्रा में कमी आती-जाती है जिसका प्रमुख कारण हिमालय के विपरीत दिशा में वृष्टि छाया क्षेत्र का होना है. क्योंकि वर्षा ऋतु के दौरान दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें इन उच्च पर्वत श्रेणियों को पार करने में असमर्थ होती हैं, जिसके कारण यहाँ शुष्क मौसमी परिस्थितियाँ देखने को मिलती हैं।
वर्षाका वितरण प्रारूप-
हिमाचल प्रदेश को उच्च. इसको हिमालय का चेरापूंजी या मॉसिनरम कहते हैं। यहाँ पर महान धौलाधार पर्वत श्रेणियाँ काँगड़ा घाटी के उत्तर में खड़ी दीवार के रूप में विद्यमान हैं, जो दक्षिणी पश्चिमी मानसून पवनों को रोकती हैं जिसके कारण वर्षा ऋतु के दौरान यहाँ पर भारी वर्षा होती है। धर्मशाला के पश्चात् शिमला हिमाचल प्रदेश का दूसरा सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र है।
- मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र-इस वर्ग में वह सभी क्षेत्र सम्मिलित हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 60 सेन्टीमीटर से लेकर 140 सेन्टीमीटर तक होती है। इन क्षेत्रों में चम्बा, काँगड़ा, ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, मण्डी, कुल्लू, शिमला, सोलन, सिरमौर सम्मिलित हैं। वर्षा की मात्रा ग्रेट हिमालय एवं पीर-पंजाल पर्वतीय श्रेणियों की ओर कम होती जाती है।
निमन वर्षा वाले क्षेत्र- -इस क्षेत्र का हिमालय एवं पीर-पंजाल
श्रेणियों को पार करने में असमर्थ होती हैं, जिससे इन पर्वतों में दक्षिणी ढालों पर तो भारी वर्षा होती है परन्तु आन्तरिक उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्रों में वृष्टि
छाया क्षेत्र होने के कारण वर्षा बहुत कम होती है। यहाँ पर अधिकाँश जलवृष्टि हिमपात के रूप में होती है। हिमाचल का सबसे कम वर्षा वाला
क्षेत्र स्पीति (50 सेन्टीमीटर से कम वर्षा) इस भाग में संकेन्द्रित है।
सामान्य ज्ञान (हिमाचल प्रदेश)
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