HP Geography Part 2

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हिमाचल प्रदेश का भूगोल


वनस्पति , वन ,जीव-जन्तु वन्यजीव National Park

हि.प्र. में आर्दभूमि--

1971 में आईभूमियों के दिवस 1997 प्रतिवर्ष 2 फरवरी को मनाया जाता है। भारत में कुल आर्द्रभूमि क्षेत्रफल भारत के भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.63% है। अब तक भारत के 26 स्थलों को रामसर समझौते के अंतर्गत् आर्द्रभूमि क्षेत्र घोषित किया गया है। भारत सरकार ने 1985-86 में राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम चलाया और 115 आईभूमियों को चिन्हित किया। हि.प्र. के भौगोलिक क्षेत्रफल के 1% भाग में आर्द्रभूमि है।

 आर्द्रभूमि की परिभाषा-

रामसर कन्वेशन के अनुसार है। आर्द्र भूमियों को धरातल के उन क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया जा सकता हैं जो अस्थाई एवं स्थाई रूप से पानी में डूबे हुए या जलमग्न हों यह जलमग्न भूमियाँ अपनी उत्पत्ति, भौगोलिक स्थिति, जलीय संरचना तथा रासायनिकी गुणों के आधार पर बहुत अधिक विषमताएँ प्रस्तुत करती हैं। यह तर भूमियाँ धरातल पर अत्यधिक उत्पादक परिस्थितिकी तंत्र हैं। संक्षेप में धरातल पर पानी से भरे हुए भू-भाग को आर्द्रभूमि या तर भूमि कहते हैं।

आर्द्रभूमियों का महत्त्व-

  1. मानव के लिए स्वच्छ जल।

  2.  पानी के बहाव को नियन्त्रण करना एवं बाढ़ नियन्त्रण।

  3.  मछली एवं भोज्य पदार्थों के उत्पादक।

  4. वनस्पति, जैव जीव एवं सूक्ष्म स्तरीय जीव जन्तुओं के आश्रय स्थल एवं मृदा के लिए जल अवशोषक।

  5. मनोरंजन, क्रीडा स्थल एवं पर्यटन स्थल।

  6.  जल विद्युत उत्पादन एवं सिंचाई सुविधाएँ प्रदान करना।

  7. प्रदूषण को कम करना, अपशिष्ट जल उपचार तथा तलछठ की गंदगी को कम करना।

 अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि-

रामसर समझौते के अंतर्गत् आईभूमियाँ (wet lands) हैं जो भौगोलिक क्षेत्रफल का 1% हिस्सा है। इन 92 तरभूमियों में से 85 प्राकृतिक झीलें तथा 7 मानव निर्मित झीलें हैं। रेणुका को 2005 में तरभूमि के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर चयनित किया गया है। पोंग बाँध झोल को 1994 में राष्ट्रीय स्तर की तरभूमि तथा 2002 में रामसर साइट घोषित किया गया।

वनस्पति प्रकार एवं वनस्पति

प्राकृतिक रूप से मानव के हस्तक्षेप के बिना उगने वाले पेड़-पौधों को प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं। प्राकृतिक वनस्पति झड़ियों, घास एवं वनों के रूप में पायी जाती है।

  1.  वनस्पति जात (Flora)-से अभिप्राय किसी विशिष्ट जाति के पेड़-पौधों से है।

  2. वनस्पति (Vegetation)-किसी प्रदेश में पाये जाने वाले विभिन्न जाति के पेड़-पौधे, झड़ियाँ तथा घासों के समूह को वनस्पति कहते हैं। एक ही क्षेत्र के पेड़-पौधों की जातियाँ एक जैसे परिस्थितिक ढाँचे के कारण एक जैसी होती है

  3. वन (Forests)-उस बड़े भू-भाग को कहते हैं, जहाँ पर प्राकृतिक रूप से एक ही प्रकार के परस्पर निकट उगने वाले पेड़-पौधों का फैलाव होता है। इनके भू-दृश्यावली एक ही वन प्रकार के पेड़ों के रूपों में दृष्टिगोचर होती है।


 हि.प्र. में वनस्पति के प्रकार-

हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक वनस्पति की भी ऊँचाई के अनुसार कटिबन्धता (Altitudinal Zones) देखने को कटिबन्धीय तथा अल्पाइन प्रकृति की है। सामान्यतः हिमाचल प्रदेश के निम्नवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में यह वनस्पति उष्ण तथा पोष्ण कटिबन्धीय प्रकार की, मध्यवर्ती भाग में शीतोष्ण कटिबन्धीय तथा उच्च हिमालयन क्षेत्रों में अल्पाइन तथा टुण्ट्रा प्रकार हो है। साधारणतः वनों का आवरण 3500 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है इससे और अधिक ऊँचाई की ओर अल्पाइन घास भूमियों का आवरण मिलता है। इस प्रदेश के हिमालयन भू-भागों में 4500 मीटर से ऊपर हिम रेखा पाई जाती है। उपरोक्त विषमताओं के आधार पर प्रदेश को निम्नलिखित धरातलीय ऊँचाई के अनुसार 3 प्रमुख प्राकृतिक वनस्पति कटिबन्धों में विभाजित किया जा सकता है-


निम्नवर्ती उष्ण तथा उपोष्ण कटिबन्धीय वनस्पति 

(The Lower Tropical and Sub-Tropical Vegetation Zone)-इस वनस्पति प्रकार का आवरण प्रदेश के की ऊँचाई नदी नालों के आधार से लेकर पहाड़ियों की चोटियों तक 400 से लेकर 1500 मीटर के मध्य है।

  1.  इस वनस्पति कटिबन्ध में ऊष्ण कटिबन्धीय वनस्पति (Tropical Vegetation) में काँटेदार वनों का है। बबूल, खैर, फलाही, कांगू तथा शीशम आदि यहाँ के वनों में पाए जाने वाले प्रमुख पेड़ हैं। शीशम तथा रको छोड़कर इन वनों के वृक्ष के कारण उष्ण कटिबन्धीय वनस्पति का आवरण देखने को मिलता है।

  2. इसी प्रकार उपोष्ण कटिबन्धीय वनस्पति (Sub-Tropical Vegetation) का आवरण निम्नवर्ती हिमालयन पर्वत श्रेणियों तथा घाटियों में विस्तृत है। चम्बा, दिशा, मिट्टी की परत में विषमता तथा ऋतुवत उच्च वर्ण आदि सभी भौगोलिक तत्व इस वनस्पति को प्रभावित करते हैं। साल, खैर, शीशम, फर्न, हल्यु, बिल, बांस आदि यहाँ के प्रमुख वृक्ष हैं। खैर, शीशम तथा चीड़ आदि वृक्ष आर्थिक रूप से उपयोगी हैं।

 मध्यवर्ती शीतोष्ण कटिबन्धीय वनस्पति 

(The Middle Temperate Vegetation Zone) का आवरण चम्बा. काँगड़ा. मण्डी. सोलन, सिरमौर तथा शिमला जिलों में है। इस वनस्पति प्रदेश की उपस्थिति 1500 से पत्ती वाले तथा नुकीली पत्ती वाले वृक्षों के प्रकार पाये जाते हैं, जिनमें ओक, मैपल, चैस्टनट, रोडोडैरोन, इल्म, स्यूस, चीड़, देवदार, कैल तथा सिल्वर फर प्रमुख वृक्ष प्रकार हैं, धरातलीय ऊँचाइयों, भूमि की ढाल की दिशा तथा जलवायु परिस्थितियों में अंतर के कारण इस वनस्पति प्रकार में कई वनस्पति प्रकार विद्यमान हैं। जो निम्नलिखित हैं-

  1. 1. नम शीतोष्ण प्रदेश के डलहौजी, धर्मशाला, काँगड़ातथा धौलाधार पर्वतीय ढालों और 1200 से 3500 मीटर के मध्य नमयुक्त पर्वतीय ढालों पर देखने को मिलता है।

  2. 2. नमयुक्त देवदार तथा कैल वन (Moist Deodar and Kail Forests)-इन वनों का जबकि सिल्वर, फर, स्यूस तथा मिश्रित पर्णवती वन, मध्यवर्ती ढालों पर और स्यूस देवदार वन इन पर्वतीय ढालों के ऊपरी हिस्सों में केंद्रित हैं।

  3. 3. नम पर्णपाती शीतोष्ण कटिबन्धीय वन (Moist Deciduous Temperate Forests)- ये वन 2000 से 3000 मीटर की ऊँचाई तक किन्न हो हास्ट, चैस्टक्ट, अनुसार वन प्रकारों में अंतर पाया जाता है। यहाँ पर स्थित नुकोली पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इसी प्रकार सीडर वृक्ष का आवरण, अच्छी तरह से नम धूपयुक्त ढालों (Sunny Slopes) पर तथा ब्लू पाइन ठण्डी हायावृत ढालों पर सकेंद्रित हैं। पर्यावरण सन्तुलन तथा आर्थिक दृष्टि से इस वनस्पति प्रकार के वन बहुत उपयोगी हैं।

उच्चवर्ती अल्याइन कटिबन्धीय वनस्पति (The Higher Alpine Vegetation Zone)-पर्वतीय ढालों तथा नदी-नालों के इर्द-गिर्द है। धरातलीय-ऊँचाइयों, पर्वतीय ढालों को दिशा में अंतर तथा स्थाई बर्फीले क्षेत्रों के निम्नवर्ती सीमा के अनुसार वनस्पति प्रकारों में दक्षिण से उत्तर की ओर अंतर पाया जाता है।

  1. 1. उप अलपाइन वन (Sub Alpine Forests)-इन वनों का आवरण 3500 मीटर की किया जाता है। इन वनों के वृक्ष अपेक्षाकृत ऊंचे हैं।

  2. 2. नमयुक्त अल्पाइन झाड़ीदार वन (Moist-Alpine Scrub Forests)-इन वनों का पार्कलैण्ड वनस्पति प्रकार (Parkland Vegetation Type) वैरी, फूल तथा कई जड़ी-बूटियाँ; जैसे-आइको नाइट, धूप. पलसाटीलम तथा कराऊ (Aconite Dhoop Pulsatilum and Karou) पाई जाती हैं।

  3. 3. शुष्क अल्पाइन वन (Dry-Alpine Forests)-इन वनों का आवरण किन्नौर, पांगी, लाहौल-स्पीति ग्रीष्मकाल के दौरान इन क्षेत्रों में पशुचारण के लिए आते है। यह संपूर्ण क्षेत्र शीतकाल के दौरान बर्फ से ढका रहता है। ग्रीष्मकाल के समय कुछ महीनों में यहाँ कुछ वनस्पति का विकास होता है तथा बर्फ के पिघलने के साथ इन घास क्षेत्रों में अति उत्तम प्रकार की घासें उगती हैं. जो भेड़-बकरियों के लिए पौष्टिक होती है।

 हि.प्र. की वनस्पतियाँ ( फ्लोरा) की संख्या-

हि.प्र. में सम्पूर्ण भारत के प्रजातियों की जैव-विविधता का 7% हिस्सा है। एंजियोस्पर्म की 3120 प्रजातियाँ, जिम्नोस्पर्म (कोनीफर्स) की 12 प्रजातियाँ तया टेरिडोफाइट्स (फर्न) को 124 प्रजातियाँ हि.प्र. में मौजूद हैं।


वन तथा पर्यावरण-

  1.  एकीकृत वन सुरक्षा योजना-वनों में आग, अवैध कटान एवं अतिक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है, इसलिए यह आवश्यक है कि उचित स्थान पर चैकपोस्ट है जिसमें से 31.12.2016 तक रु. 142.25 लाख व्यय कर लिए गए हैं तथा शोर पारी 31.03.2017 तक व्यय कर ली जाएगी। इस योजना के तहत वर्ष 2017-18 के लिए रु. 402.00 लाख व्यय करने प्रस्तावित हैं।

  2. Middle  हिमालय जलागम विकास परियोजना-मध्य हिमालय जलागम विकास परियोजना प्रदेश में 01.10.2005 से शुरू की गई। यह योजना । सचों के लिए भी की जा रही है तथा परियोजना की लागत का 10 प्रतिशत हिस्सा लाभार्थियों द्वारा उठाया जाएगा। 

  3.  स्वा नदी एकीकृत जलागम प्रबन्धन परियोजना-स्वा नदी एकीकृत जलागम प्रबन्धन परियोजना जापान अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (ICA) द्वारा प्रदत्त वित्तीय सहायता से जिला ऊना में चलाई जा रही है। इसके अन्तर्गत् 96 ग्राम पंचायतों के 619 वर्ग किमी. क्षेत्र में 22 उप-जलागमों का चयन किया गया जिनमें परियोजना को विभिन्न गतिविधयाँ कार्यान्वित की गई। यह परियोजना 95:15 की हिस्सेदारी पर आधारित है।

  4.  बन रोपण-जन रोपण का कार्य वनोत्पादक वन योजना तथा भू संरक्षण योजना के अन्तर्गत् किया जा रहा है। इन योजनाओं में वनाच्छादन में सुधार.विभागीय -17 के लिए 15,000 हैक्टेयर क्षेत्र में पौधरोपण का लक्ष्य रखा गया है जिसमें कैम्पा व केन्द्रीय सहायता प्राप्त योजनाएँ भी शामिल हैं जिस जाने का लक्ष्य रखा गया है।

  5. राज्य जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ-वर्ष 2015-16 में स्थापित हिमाचल प्रदेश जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ को विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के प्रकोष्ठ के लिए विकसित वेब पोर्टल के माध्यम से जलवायु परिवर्तन पर सूचना का प्रसारण किया जा रहा है। विभिन्न ज्ञान सहभाजन कार्यशालाओं एवं कार्यक्रमों को उत्तराखंड, झारखंड और असम जैसे राज्यों के साथ आयोजित किया गया है। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् से जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में कार्यरत वैज्ञानिकों के दल ने भी जलवायु परिवर्तन संबंधित ज्ञान का आदान-प्रदान करने हेतु जलवायु परिवर्तन ज्ञान प्रकोष्ठ का दौरा किया।

  6.  एन.ए.एफ.सी.सी. के तहत मंजूर परियोजना का कार्यान्वयन-राज्य के सिरमौर जिले में छोटे, सीमांत किसानों को ग्रामीण महिलाओं सहित जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन कोष में रु. 20.00 करोड़ की लागत से आरम्भ किया गया है।

  7. राज्य स्तरीय पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार को शुरू करना सरकार ने राज्य स्तरोप पर्यावरण उत्कृष्टता पुरस्कार' को प्रारंभ करने का निर्णय लिया जिसके अन्तर्गत् भविष्य में राज्य को उन संस्थाओं व्यक्तियों को विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार 125,000 नकद दिया जाएगा। हि.प्र. सरकार ने 2011 में प्लास्टिक एवं पॉलीथिन थैलियों पर प्रतिबंध लगाया।

  8.  हरित जलवायु कोष (CCE)- राज्य सरकार हरित जलवायु कोष के तहत सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य, वन क्षेत्र की निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कार्ययोजना को लागू करने हेतु बजट/वित्त प्रावधान हेतु परियोजना प्रस्तावित की जाएगी-

  9. • समुदाय आधारित जल संचयन एवं प्राकृतिक जल संसाधनों के प्रबंधन को सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग से लागू करना।

  10. • जलवायु प्रत्यास्थी संबंधित (परिणाम) प्रबंधन को वन विभाग के माध्यम से लागू करना।

जीव जन्तु (Fauna)-

हि.प्र. में सम्पूर्ण भारत के 89,451 एम्फीबिया की 17, मछली की 81, कीटों (Insects) की 4362 प्रजातियाँ हि.प्र. में पाई जाती हैं।

. हि.प्र. का राज्य पक्षी-जाजुराना (Western Tragopan)

• हि.प्र. का राज्य पशु-बर्फीला तेंदुआ

जिला सिरमौर के सुकेती में भारत का प्रथम जीवाश्म उपवन (Fossil Park) है। कस्तूरी मृग को गांगुल वन्यजीव विहार में सुरक्षित रखा गया है। कुफरीमें इसका प्रजनन केन्द्र है।

 लुप्तप्राय एवं संकटग्रस्त प्रजातियाँ-हि.प्र. राज्य जैव-विविधता बोर्ड की 1 फरवरी 2017 की बैठक (टॉलैण्ड, शिमला) में जैव-विविधता अधिनियम-2002

(2003 का 18) की धारा 38 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित पादपों एवं वन्यजीव प्रजातियों को अधिसूचित किया गया है 

जो विलुप्ति के कगार पर है- 

  1. पादप-. 1 मोहरा 2. अतीश 3. 17. बनककड़ी 18. नेर धूप 19, नाग धनु हिमालयन ब्लैडरनट 20. चिरायता 21. बिरमी/रखल 22. नगछतरी/हिमालयन ट्रिलियम।

  2. जीव-जन्तु-1. स्टैप इगल 2. तिब्बती मेढक 13. कोकलैस पोजैण्ट 14. रैड हेडेड गिद्ध 15. जाजुराना 16. बर्फीला तेंदुआ





सामान्य ज्ञान (हिमाचल प्रदेश)


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