हिमाचल प्रदेश का मध्यकालीन इतिहास(Medival History)
मध्यकालीन आक्रमणकारी
महमूद गजनवी-महमूद गजनवी ने पर कब्जा 1043 ई. तक रहा जिसके बाद दिल्ली के तोमर राजा महिपाल ने नगरकोट से गजनवी शासन की समाप्ति की। महमूद गजनवी 1023 तक नगरकोट को छोड़कर काँगड़ा के अधिकतर हिस्सों पर अधिकार नहीं कर पाया था। त्रिलोचन शाल और उसके पुत्र भीम पाल की मृत्यु के उपरान्त 1026 ई. में तुर्को के अधीन काँगड़ा आया।
मुहम्मद गौरी- ने पहाड़ी राज्यों पर खास ध्यान नहीं दिया। सल्तनतकाल में तैमूर लंग ने भारत पर आक्रमण किया।
सल्तनत काल (1206 ई.-1526 ई. तक)
सल्तनत काल में गुलाम वंशदिया। तुगलक वंश के सुल्तानों ने क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य जमाने का प्रयास किया।
फिरोजशाह तुगलक (1351-1388)-1360 ई. में फरिस्ता' और 'तारीख-ए-फिरोजशाहो' में मिलता है। राजा रूपचंद और फिरोजशाह तुगलक का बाद में समझौता हो गया और नगरकोट पर से घेरा उठा लिया गया। रूपचंद ने फिरोजशाह तुगलक की अधीनता स्वीकार कर 'ली। फिरोजशाह तुगलक 1365 में समझौते के बाद ज्वालामुखी गया और 1300 पुस्तक का नाम 'दलाई-ए-फिरोजशाही' रखा। राज रूपचंद की 1375 ई. में मृत्यु के बाद उसका पुत्र सागरचंद राजा बना। सागरचंद के शासनकाल में फिरोजशाह के बड़े बेटे नसीरुद्दीन ने काँगड़ा में 1389 ई. में शरण ली।
तैमूरलंग का आक्रमण-1398 ई. में आलमचंद था जिसने तैमूरलंग की सहायता की जिसके फलस्वरूप तैमूरलंग हिण्डूर को हानि पहुँचाए बिना आगे बढ़ गया। उसने नूरपुर (धमेरी) के अलावा सिरमौर क्षेत्र पर आक्रमण किया जिसका विरोध रतन सिंह द्वारा किया गया।
सैयद वंश और लोदी वंश ने भी पहाड़ी राज्यों पर आधिपत्य जमाने का कोई प्रयास नहीं किया।
मुगल काल (1526-1857 ई.)
(Hill States and their relations with the Mughals)
बाबर-बाबर ने 1525 में काँगड़ा के निकट ' लोदी को हराकर भारत में मुगल वंश की स्थापना की।
अकबर-अकबर ने 1556 ई. में सिकंदर स्वीकार करने के लिए उनके बच्चों या रिश्तेदारों को दरबार में बंधक के तौर पर रखता था। अकबर ने काँगड़ा के राजा जयचंद को बंधक बनाया। जयचंद के पुत्र जमीनें लेकर एक शाही जमींदारी स्थापित करने के लिए नियुक्त किया। इसमें काँगड़ा के 66 गाँव और चम्बा के रिहलू छेरी, पथियार और धारों क्षेत्र शामिल थे। राजा जयचंद की 1585 में मृत्यु के बाद उसका बेटा विधीचंद राजा बना। राजा बिधीचंद ने अपने पुत्र त्रिलोक चंद को बंधक के तौर पर मुगल दरबार में रखा। चम्बा का राजा प्रताप सिंह वर्मन अकबर का समकालीन था। वह मुगलों के प्रति समर्पित था। सिरमौर का राजा धर्म प्रकाश (1538-70 A.D.)अकबर का समकालीन था।
जहाँगीर-जहाँगीर 1605नूरपुर के राजा सूरजमल और शाह कुली खान मोहम्मद तकी के नेतृत्व में काँगड़ा विजय के लिए सेना भेजी। राजा सूरजमल और शाह कुली खान में झगड़ा हो जाने के कारण कुली खान को वापस बुला लिया गया। राजा सूरजमल ने मुगलों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहाँगीर ने सूरजमल के विद्रोह को दबाने के लिए राजा राय विक्रमजीत और अब्दुल अजीज को भेजा। राजा सूरजमल ने उसने अपनी पत्नी नूरजहाँ के नाम पर धमेरी का नाम नूरपुर रखा। काँगड़ा किले के एक दरवाजे का नाम 'जहाँगीरी दरवाजा' रखा गया। जहाँगीर ने काँगड़ा किले के अंदर एक मस्जिद का निर्माण करवाया। जहाँगीर के समय चम्बा के राजा जर्नाधन और जगत सिंह के बीच ‘धलोग का युद्ध' हुआ जिसमें जगत सिंह विजयी हुआ। चम्बा पर 163 ई. से लेकर 2 दशक तक जगत सिंह का कब्जा रहा। जगत सिंह मुगलों का वफादार था। सिरमौर का राजा बुद्धि प्रकाश(1605-1615) जहाँगीर का समकालीन था। काँगड़ा किले का पहला मुगल किलेदार नवाब अलीखान था।
शाहजहाँ-शाहजहाँ के शासनकाल में नवाब असदुल्ला खान और कोच कुलीखान काँगड़ा किले के मुगल किलेदान बने। कोच कुलीखान 17 वर्षों तक
मुगल किलेदार रहा। उसे बाण गंगा नदी के पास दफनाया गया था। सिरमौर का राजा मन्धाता प्रकाश शाहजहाँ का समकालीन था। उसने मुगलों के गढ़वाल
अभियान में कई बार सहायता की।
जगतसिंह-1627 में शाहजहाँ ने शाहजहाँ ने अपने पुत्र मुराद बखा को विद्रोह कुचलने के लिए भेजा। मुगलों ने मऊकोट और नूरपुर किलों पर आक्रमण कर जगतसिंह को तारागढ़ किले में शरण लेने को मजबूर कर दिया। जगतसिंह को 1642 ई. में संधि करनी पड़ी और शाहजहाँ ने उसे क्षमा कर दिया।
औरंगजेब और पहाड़ी राज्य-
चम्बा (चतर सिंह)-1678 में औरंगजेब ने चम्बा बसौली के राजाओं के साथ मिलकर एक संघ बनाया तथा पंजाब के मुगल वायसराय मिर्जा रियाज बेग को हराकर अपने खोए प्रदेश वापिस लिए।
बुशहर (केहरी सिंह)-औरंगजेब ने बुशहर के राजा केहरी सिंह को छत्रपति का खिताब प्रदान किया था।
सिरमौर (सुभग प्रकाश बुद्ध प्रकाश मेदनी प्रकाश) -सिरमौर रियासत पर मुगलों की संप्रभुता थी। इसके तथा उसके 1678 ई. में मेदनी प्रकाश को सिरमौर का राजा मानकर खिल्लत प्रदान की गई। सिरमौर रियासत को गढ़वाल के विरुद्ध मुगलों का संरक्षण प्राप्त कर
उत्तर मुगलकाल में पहाड़ी राज्य (1707-1783 ई.)
• नादिरशाह -1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों का पतन शुरू हुआ। नादिरशाह ने 1739 ई. में भारत पर आक्रमण किया।
• अदिना बेग (1745 ई.)-1745 ई. में अदिना बेग उसने बीजापुर और जयसिंहपुर को धूल में मिला दिया। मण्डी रियासत ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली लेकिन कुछ समय पश्चात उसकी मृत्यु हो गई।
अहमदशाह अब्दाली और घमण्डचंद-मुगलों के पास था। नवाब सैफ अली खान काँगड़ा किले के अंतिम मुगल किलेदार थे। अहमद शाह दुर्रानी ने 1759 ई. में घमण्डचंद को जालंधर दोआब का नाजिम बना दिया। घमण्डचंद का सतलुज से रावी तक के क्षेत्र पर एकछत्र राज हो गया।
मुगलों का हिमाचल पर प्रभाव- पहाड़ी प्रचलित हुए। पहाड़ी राज्यों में निश्चित लगान प्रणाली लागू हुई। मुगल-राजपूत सैन्यविधि पहाड़ी राज्यों ने अपनाई। कला और साहित्य का भी विकास हुआ।
-वास्तुकला पर प्रभाव-मुगलों से पहले ) जैसे थे। इस किले की पच्चीकारी लाहौर किले से मिलती-जुलती है। चम्बा के भरमौर स्थित कारदार कोठी के लकड़ी के दरवाजों के उभरे हुए पैनल पर मुगलकला का गहरा प्रभाव दिखता है।
सिख गुरु (1500 ई.-1708 ई.)
गुरुनानक देव जी- पहले सिख गुरु ने की। उनकी यात्रा की याद में सबाथू के निकट जोहसर में गुरुद्वारा बना है।
गुरु अर्जुन देव जी-पाँचवे सिख गुरु ने कल्याण को मण्डी के राजा के पास भेजा जिसके बाद राजा अपनी रानी के साथ अमृतसर पहुँचकर गुरुजी का शिष्य बना।
गुरु हरगोविन्द जी-छठे सिख गुरु ने कहलूर के पित की। पहाड़ी राजाओं ने 1642 ई. में गुरुजी के सहयोग से रोपण के नवाब को हराया था।
गुरु तेगबहादुर जी-नवें सिख गुरु ने के नाम से जाना जाने लगा।
यह उनका निवास स्थान बना।
दसवें गुरु गोविंद सिंह जी और पहाड़ी राज्य-
गुरु गोविंद सिंह का जन्म पटना साहिब में शहीद कर दिया। उनका लालन-पालन आनंदपुर साहिब में हुआ।
सिरमौर प्रवास-सिरमौर के राजा मेदनी में रहे और दशम ग्रंथ की रचना की। उनका विशाल गुरुद्वारा पाँवटा साहिब में स्थित है। गुरुजी ने सिरमौर के राजा मेदनी प्रकाश और गढ़वाल के राजा फतेहचंद के बीच मैत्री करवाई।
• भगानी युद्ध (1686 ई.)-गुरुजी और 1636 ई. में 'भगानी साहिब' का युद्ध हुआ, जिसमें गुरु गोविंद सिंह विजयी हुए। हण्डूर का राजा हरिचंद गुरुजी के तीर से इस युद्ध में मारा गया। युद्ध के बाद गुरुजी ने हरिचंद के उत्तराधिकारी को भूमि लौटा दी और कहलूर के राजा भीमचंद से भी उनके संबंध मधुर हो गए।
• नदौन युद्ध-नदौन युद्ध में गुरुजी ने भीमचंद की सहायता की और मुगल सेनापति को पराजित किया। नदौन गुरुजी ने नाकाम कर दिया। गुरुजी ने गुलेर के राजा गोपाल सिंह के साथ मिलकर लाहौर के सूबेदार गुलाम हुसैन खान को पराजित किया।
• मण्डी यात्रा-गुरुजी ने मण्डी के राजा सिद्धसेन के बुलावे पर मण्डी और कुल्लू की यात्रा की।
. खालसा पंथ की स्थापना-13 अप्रैल, 1699 ई. को वैशाखी के दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने 80 हजार सैनिकों के साथ संगठित किया जिससे पहाड़ी राज्य डर गए। कहलूर के राजा ने मुगलों से सहायता मांगी। गुरुजी ने निरमोह में मुगल सेना को पराजित किया।
सामान्य ज्ञान (हिमाचल प्रदेश)
Click here to to download HP Medieval History PDF
Click here to to download HP Medieval History MCQ Series PDF
No comments